उलूक टाइम्स

"बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा " :- शौक़ बहराइची

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सोमवार, 19 अगस्त 2019

कलम की भी आँखें निकल सकती हैं कभी चश्मे भी आ सकते हैं बाजार में पढ़ देने वाले निराश नहीं होते हैं

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कुछ लिखते बहुत कुछ हैं मगर किताब नहीं होते हैं  कुछ लिखी लिखायी किताबों के पन्ने साथ नहीं होते हैं  कुछ किताबें देखते हैं लि...
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रविवार, 10 नवंबर 2013

सोच तो होती ही है सोच

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अपनी अपनी होती है सोच सुबह होते अंगडाई सी लेती है सोच सुबह की चाय के कप से निकलती भाप होती है सोच दूध की दुकान की लाईन में हो रही भगदड़ से ...
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सुशील कुमार जोशी
Almora, Uttarakhand, India
ना कविता लिखता हूँ ना कोई छंद लिखता हूँ अपने आसपास पड़े हुऎ कुछ टाट पै पैबंद लिखता हूँ ना कवि हूँ ना लेखक हूँ ना अखबार हूँ ना ही कोई समाचार हूँ जो हो घट रहा होता है मेरे आस पास हर समय उस खबर की बक बक यहाँ पर देने को तैयार हूँ ।
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