उलूक टाइम्स

"बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा " :- शौक़ बहराइची

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शनिवार, 13 जुलाई 2019

एक भीड़ को देखते देखते भीड़ में शामिल हो लेने का खामियाजा भुगतना ही पड़ता है मुस्कुराना ठीक है रोने ले से भी वैसे कुछ नया होना भी नहीं है

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लिखना लिखाना ठीक है सब लिखते हैं लिखना भी जरूरी है सही है गलत कुछ कहीं वैसे भी होता ही नहीं है वहम है है कह लेने में कोई बेशर्मी भी नही...
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सुशील कुमार जोशी
Almora, Uttarakhand, India
ना कविता लिखता हूँ ना कोई छंद लिखता हूँ अपने आसपास पड़े हुऎ कुछ टाट पै पैबंद लिखता हूँ ना कवि हूँ ना लेखक हूँ ना अखबार हूँ ना ही कोई समाचार हूँ जो हो घट रहा होता है मेरे आस पास हर समय उस खबर की बक बक यहाँ पर देने को तैयार हूँ ।
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