रविवार, 31 दिसंबर 2023

‘उलूक’ बदतमीज है गांधी गांधी करता है मौक़ा लगे उसे एक लात कभी मार कर आयें



घास ना भी खाएं कोई ऐसी बात नहीं है
बस जुगाली जरूर करते चले जाएं
दांत खट्टे कर भी दिए हों किसी ने
जरा सा भी ना घबराएं थोड़ी हवा चबाएं

दीमकों ने खोखली कर भी दी हो
चारों तरफ की सारी कुर्सियां
बस मुस्कुराएँ
पालथी मार कर बैठने की जमीन पर करें कोशिश
बस एक दरी घर से ले आयें

हो रहा है हो रहा है बहुत कुछ हो रहा है ही बस कहें
देखें सुने और केवल यही फैलाएं
बातें बनाना सीखने सिखाने के स्कूल कालेज खोलें
खुद भी इनाम लें मशहूर हो जाएँ

करें कुछ भी घर में अपने गली में बस शेर हो जाएँ
शेर के ऊपर भौंके उसे कुत्ता बनाएं
सर्वश्रेष्ठ होने का ढिंढोरा खुद भी पीटे
जेबें भर कर पिटे पिटवाये भी इस काम में लगाएं

ज़माना कम से कम कपड़ों का है रुमाल पहनें
पर घर घर एक हम्माम जरूर बनवाएं
शेर और शायरी करते रहें मुहावरे याद करें
और लोगों को बुला कर कहीं मंच से सुनाएँ

दूध से धुले लोग हैं सम्मानित हैं
इज्जत उतारें उतारने दें
परेशान ना होवें खिलखिलाएं
‘उलूक’ बदतमीज है
गांधी गांधी करता है
मौक़ा लगे उसे एक लात
कभी मार कर आयें |

चित्र साभार https://www.dreamstime.com/

शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

और कर भी क्या सकता है वो जो है हड्डी में कबाब

 

सुना है फिर जा रहा है
एक दो दिन में एक पुराना हो चुका एक नया साल
सोच में बैठा है  हो ना पाया आबाद

साल पैदा होते हैं यूं ही बूढ़े हो लेने के लिए
बस कुछ दो चार दिन में ही
या कहें कि हो लेते हैं खुद ही बरबाद

खबर ये भी है
कि आ भी रहा है इक नया साल
पुराने की जगह लेने के लिए
और है बहुत ही बेताब

आदमी है कि
आदमी होने की सोचता ही रह जाता है
और साल निकल लेता है किनारे से
बस यूं ही चुपचाप

कोई कह रहा है
कि और भी बहुत कुछ अच्छा होगा इस साल
हो चुके सारे अच्छे के बाद

इतना अच्छा हो चुका है इस साल  
शायद कुछ बचा भी हो
सोच में बैठा है पर लगा एक सुरखाब

सपने बोना कई
सींचना सपनों को और उगाना पेड़ सपनों का
फिर खाना तोड़ कर सपने बेहिसाब

सीख लेना अच्छा है
सिखा कर जा रहा है कम से कम
सपना हो लेने से बचने की पढ़ाकर
कोई अपनी किताब

कितना कुछ लपेटा है
लपेटने वाले ने साल भर जी भर के
सच में जादूगरी है कि कमाल है
अभी तो और बहुत कुछ देखना है जनाब

‘उलूक’ फिर से खिसियायेगा
फिर से नोचेगा खम्बे कई आने वाले साल में यूं ही
और कर भी क्या सकता है वो
जो है हड्डी में कबाब


चित्र साभार: 

गुरुवार, 28 दिसंबर 2023

बातें करिए बातें बोइये बातें खेलिए करना किसी को नहीं है कुछ कहीं

कोशिश करते रहिये
कहने की सच
बात अलग है
कहने भर से ही बस काम नहीं हो जाएगा
जो कहा गया है उसको
किसी हजूर के तराजू में तोला भी जाएगा
बांट लिखने वाले के होंगे भी नहीं
कोर्ट कचहरी की अंधी मूर्ती से भी
काम नहीं चल पायेगा
आप से बस
हमेशा जोर लगा कर पूछा जाएगा
आप क्या सोच रहे हो
आपकी सोच को
इस तरह
सार्वजनिक किया जाएगा
सब शामिल हैं
इस खेल में घर से लेकर मैदान तक
बल्ला आपको दिए बिना
आपसे क्रिकेट खेलने को कहा जाएगा
बातें करिए बातों मैं कहीं भी आपको
आयकर लगा नजर नहीं आयेगा
जो जितना लंबा फेंकेगा
सोने का मैडल उसी के हाथ नजर आयेगा
प्रतिस्पर्धा कहीं है ही नहीं
मुकाबला करने आने वाले की
मुट्ठी गरम कर उसे
गीता का ज्ञान दिया जाएगा
एक ही चेहरे के साथ जीने वाले को
नरक ज्ञान की आभासी दुनियाँ
से भटका कर स्वर्गलोक में
होने का आभास
बातों से ही दे दिया जाएगा
बातें करिए बातें बोइये बातें खेलिए
करना किसी को नहीं है कुछ कहीं
‘उलूक’ तू खुद सोच ले
अपने दिन का सपना
तेरा रात का बकबकाना ही कहीं
तेरा फांसी का फंदा
तेरे लिए तो नहीं एक बन जाएगा ?

चित्र साभार : https://navbharattimes.indiatimes.com/

सोमवार, 25 दिसंबर 2023

मतलब शे'र-ओ-सुख़न का बस यूँ ही कुछ भी नहीं है बरबाद हुए कारोबार की तरह

 



फिर एक और दिसम्बर
तैयार खडा है जाने के लिए इस बार हर बार की तरह
फिर घिसे पिटे पन्ने तुड़े मुड़े कई बेकार के
कूड़ेदान में पड़े हैं बीमार की तरह

किसे उठायें किसे पेश करें ज़रा बताइये तो हजूर
एक खरीददार की तरह
किसे आता है कह देना सटीक और बेबाक दिल खोल कर
दिलदार की तरह

उठती हैं लहरें
समुन्दर की सबके अन्दर
नदियाँ भी बहती हैं सरे बाजार की तरह
कोई समेट लेता है  रेत के टीले भी
कोई फैला देता है खबर एक अखबार की तरह

इतना आसान नहीं है हो लेना एक शायर सरे आम
किसी लबे बीमार की तरह
ईलाज है हर लाईलाज का
कोशिश जरूरी है दिल से एक पागल तीमारदार की तरह

फिर लौट के आना है दिसंबर को
गया है अभी अभी इमरोज एक जाँ-निसार की तरह
‘उलूक’ फितरत से किसे मतलब है
कौन समेट रहा है यहां कुछ एक जमादार की तरह


चित्र साभार: https://pixabay.com/photos/cleaning-sweeper-housework-2650469/


मंगलवार, 19 दिसंबर 2023

जब भी करेगा ‘उलूक’ कुछ फालतू सी बकवास ही करेगा

कितना भी पोत लिया जाए
एक सफ़ेद पन्ने को कूंची से या कलम से
आंखे मानती नहीं है देखने वाले की यूं ही
कुछ भी कभी भी कसम से

काला लिखा हुआ होता है कुछ खूबसूरत सा सामने से
क्या फर्क पढ़ता है
पलकें खुली होती हैं मगर ढकी हुई आँखे होती हैं
किसी और की सोच से 
सपने कोई और गढ़ता है

उछालते रहिये सिक्के जिन्दगी पड़ीं है
एक तरफ हेड दूसरी और टेल ही रहेगा
सिक्का खडा करने की ताकत के साथ खडा है
सामने से कोई आज
तू क्या करेगा

सोचने और करने में बहुत साफ दिखाई देता है अंतर
किसी का सामने से
बातों में जलेबी बना के परोसने वालों का
कौन क्या कभी कुछ कर सकेगा

 पाप किये हैं पापी भी है साथ में बह रही गंगा भी है
मन आयेगी तो कभी नहा भी लेगा
‘उलूक’ तेरे सोचने और करने में फर्क ही नहीं है  
जो भी उखाडेगा तेरा ही कुछ उखाड़ लेगा |

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/



 

रविवार, 10 दिसंबर 2023

बेवकूफ है बस एक ‘उलूक’ होशियार सारा जहां है

 

कुछ नहीं कह रहे हैं कुछ कहने की जरूरत ही कहां है
सब कुछ तो ठीक है किसी को बताने की फुर्सत ही कहां है

कुछ उसके आदमी हैं कुछ इसके आदमी है जो जहां है वो वहां है
अभी उधर वाला इधर वाले की खाल खीचे खाल है अभी और यहाँ है

जो उधर है वो सबसे होशियार है उसको भी पता है वो कहाँ है
वो इधर वाले के कपडे उतारे किस ने देखना है कौन है कहा है

कल इधर वाला उधर होगा तब देख लेंगे किसने क्या कहा है
सजा किस को हुई है या होने वाली है मौज में हैं जो हैं जहां हैं

गाली गांधी को दे दो गाली नेहरू को दे दो वो कौन सा यहां हैं
गाली देने में कौन से पैसे खर्च होते हैं गाली देने वाले शहंशाह हैं

जो कह रहा है बस वो ही सिर्फ एक बेवकूफ है सुनने वाला मेहरबां है
होशियार ‘उलूक’ तेरे अलावा बाकी बचा है जो सारा और सारा जहां है |

चित्र साभार: https://pixabay.com/



शुक्रवार, 8 दिसंबर 2023

जूते फटे भी रहें तब भी कुछ पालिश तो होनी ही चाहिए



अच्छी होती हैं खुशफहमियां बनी भी रहनी चाहिए
घर के आईने में धूल हमेशा जमीं ही रहनी चाहिए

गलतफहमियां भी हों थोड़ी कुछ तो होनी ही चाहिए
शेर का चित्र ही सही घर में बिल्लियाँ भी होनी चाहिए

सूरत बस चमकती ही दिखे दिखाई देनी भी चाहिए
जूते फटे भी रहें तब भी कुछ पालिश तो होनी ही चाहिए

दुकाने खोली हुई किसी की भी हों खुली रहनी भी चाहिए
जमीर हो कहीं भी रखा हुआ किस्मत धुली होनी ही चाहिये

नोचने का जज्बा जरूरी है उंगलियाँ खडी होनी भी चाहिए
नाखून हों से मतलब नहीं खबर जहरीली होनी ही चाहिए

तमन्नाऐ दिखाई दें बातों में बस तहरीर होनी भी चाहिए
कौन लिख गया किस के लिए क्या तकदीर होनी ही चाहिए

दबे होंठों में मुस्कराहट हो कुछ खिसियाहट भी होनी चाहिए
‘उलूक’ तमीज हमेशा नहीं कभी बदतमीजी सी होनी चाहिए

चित्र साभार: https://www.hiclipart.com/