सोमवार, 25 दिसंबर 2023

मतलब शे'र-ओ-सुख़न का बस यूँ ही कुछ भी नहीं है बरबाद हुए कारोबार की तरह

 



फिर एक और दिसम्बर
तैयार खडा है जाने के लिए इस बार हर बार की तरह
फिर घिसे पिटे पन्ने तुड़े मुड़े कई बेकार के
कूड़ेदान में पड़े हैं बीमार की तरह

किसे उठायें किसे पेश करें ज़रा बताइये तो हजूर
एक खरीददार की तरह
किसे आता है कह देना सटीक और बेबाक दिल खोल कर
दिलदार की तरह

उठती हैं लहरें
समुन्दर की सबके अन्दर
नदियाँ भी बहती हैं सरे बाजार की तरह
कोई समेट लेता है  रेत के टीले भी
कोई फैला देता है खबर एक अखबार की तरह

इतना आसान नहीं है हो लेना एक शायर सरे आम
किसी लबे बीमार की तरह
ईलाज है हर लाईलाज का
कोशिश जरूरी है दिल से एक पागल तीमारदार की तरह

फिर लौट के आना है दिसंबर को
गया है अभी अभी इमरोज एक जाँ-निसार की तरह
‘उलूक’ फितरत से किसे मतलब है
कौन समेट रहा है यहां कुछ एक जमादार की तरह


चित्र साभार: https://pixabay.com/photos/cleaning-sweeper-housework-2650469/


5 टिप्‍पणियां:

  1. गया है अभी-अभी इमरोज़ एक जां-निसार की तरह...।
    सर,आप जब इस तरह लिखते हैं बहुत जोरदार लिखते हैं।
    प्रणाम सर।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २६ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।


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  2. फिर लौट के आना है दिसंबर को
    गया है अभी अभी इमरोज एक जाँ-निसार की तरह
    समय का चक्र चलता रहता है और घटनाएँ अतीत बन टंगी रह जाती हैं उस चक्र से..। हृदयस्पर्शी सृजन सर ! सादर वन्दे!

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  3. किसे उठायें किसे पेश करें ज़रा बताइये तो हजूर
    एक खरीददार की तरह
    वाह!!!
    फिर लौट के आना है दिसंबर को
    गया है अभी अभी इमरोज एक जाँ-निसार की तरह
    अद्भुत एवं लाजवाब ।
    👌👌👌🙏🙏🙏

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  4. दिसंबर जाने वाला है, पर फिर लौट कर आएगा, ऐसे ही शायर पिछली बार की तरह इस बार भी कलम उठाएगा, समेट लेगा जमादार जो भी बेकार है, तभी तो दुकानदार नया बाज़ार लगाएगा

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