शनिवार, 31 मई 2014

साथ होना अलग और कुछ होना अलग होता है

उसके
और मेरे बीच
कुछ नहीं था

ना उसने
कभी कहा था
ना मैंने कभी
कोशिश की थी
कुछ कहने की

अब 
आपस में
बात करने का
मतलब

कुछ
कहना होता है
ऐसा जरूरी भी
नहीं होता है

बहुत साल
आस पास
रह लेने से भी
कुछ नहीं होता है

साथ साथ
बड़ा होना
खेलना कूदना
घर आना जाना
कहीं घूमने
साथ चले जाना

एक रास्ते से
बहुत सालों तक
एक सी जगहों
को टटोलना

बहुत से लोग
करते हैं

रास्ते अलग
हो जाते हैं

लोग अलग
अलग दिशाओं
को चले जाते हैं

यादों
का क्या है
उनका काम भी
आना और जाना
ही होता है

वो भी आती
जाती रहती हैंं

कभी
किसी की
आ जाती है

कभी
किसी की
आ जाती है

कुछ देर के
लिये ही सही

बहुत से
लोगों के बीच
बहुत कुछ
होने से भी
क्या होता है

उससे भी
क्या होता है

अगर कोई
कभी

उसके
मेरे बीच
कभी भी
कुछ नहीं था

कह ही देता है।

शुक्रवार, 30 मई 2014

चेहरे का चेहरा



एक खुश चेहरे को देख कर
एक चेहरे का बुझ जाना

एक बुझे चेहरे का
एक बुझे चेहरे पर खुशी ले आना

एक चेहरे का बदल लेना चेहरा
चेहरे के साथ
बता देता है चेहरा मौन नहीं होता है

चेहरा भी कर लेता है बात

चेहरे दर चेहरे 
चेहरों से गुजरते हुऐ चेहरे
माहिर हो जाते हैं समय के साथ
कोशिश कोई चेहरा नहीं करता है
जरूरत भी नहीं होती है

चेहरा कोई नहीं पढ़ता है
कोई किताब जो क्या होती है

चेहरे काले भी होते हैं चेहरे सफेद भी होते हैं
बहुत बहुत लम्बे समय तक साथ साथ भी रहते हैं

चेहरे कब चेहरे बदल लेते हैं
चेहरे चेहरे से बस यही तो कभी नहीं कहते हैं
चेहरे चेहरों के कभी नहीं होते हैं ।

चित्र साभार: https://pngtree.com/

गुरुवार, 29 मई 2014

कितने तरह के लोग कितनी तरह की यादें कब लौट आयें कोई कैसे बता दे

कई बार
सामने से 
होती थी
रोज ही 
मुलाकात होती थी

मिलती थी रास्ते में 
कुत्ते का पिल्ला लिये हुऐ अपने हाथों में
 देख कर किसी को भी मुस्कुरा देती थी

कहते थे लोग
बच्चे पैदा किया करती थी
कुछ ही दिन रखती थी पास में
फिर किसी दिन 
शहर के पास की नदी में ले जा कर
उल्टा डुबा देती थी

लौट आती थी 
मुस्कुराती थी 
फिर उसी तरह

फिर वही होता था

कुत्ते का 
पिल्ला भी
बहुत दिन तक साथ में नहीं रहता था

एक दिन नदी 
में ही डूब कर मर गई

देखा नहीं था
पर
किसी को 
ऐसा जैसा ही कहते सुना था

सालों गुजर गये 
फिर सब भूल गये

कल अचानक 
रास्ते में
एक लड़की
बिल्कुल उसकी जैसे फोटो प्रतिलिपि
सामने सामने जब पड़ी
यादों की घड़ी जैसे उल्टी चल पड़ी

कुछ यादें
भूली 
नहीं जाती हैं
कहीं किसी कोने में पड़ी रह ही जाती हैं

जिनके साथ साथ

समाज में प्रतिष्ठित 
कुछ लोगों की यादें भी
लौट आती हैं ।

चित्र साभार: 
https://www.123rf.com/

बुधवार, 28 मई 2014

छोटी छोटी चीजें बहुत कुछ सिखाती हैं

आकाँक्षाओं के
महत्व को
समझती हैं

मकड़ियाँ
बहुत
महत्वाकाँक्षी
होती हैं

मकड़ियाँ
मिलकर
कभी भी
जाले नहीं
बनाया
करती हैं

मकड़ियाँ
बहुत प्रकार
और आकार
की होती हैं

अपने अपने
आकार और
प्रकार के
हिसाब से
आपस में
समझौते
करते हुऐ

साथ साथ
अगर चल
भी लेती हैं
हर मकड़ी
अपने जाल को
दूसरी मकड़ी
के साथ साझा
कभी नहीं करती है

एक मक्खी के
फंसने पर
उसे वही
मकड़ी खाती है
जिसके जाल में
फंसी हुई
पायी जाती है

महत्वा
काँक्षाओं
के जहर से
मारी गई
मक्खियाँ
जहरीली
नहीं होती हैं

मकड़ियाँ
मकड़ियों
का शिकार
करते हुऐ
बहुत ही कम
देखी जाती हैं

मकड़ी मकड़ी
के द्वारा
बस उसी समय
कभी कभी मार
दी जाती है
जब एक मकड़ी
दूसरी मकड़ी की
महत्वाकाँक्षाओं की
सीमा में घुसकर
रोढ़ा बन जाती हैं

मक्खियों को
मकड़ी और
जाल कभी भी
समझ में
नहीं आते हैं

उनकी
नियती होती है
जाल में फंसना
और मकड़ी का
भोजन बनना

किस
मकड़ी द्वारा
फंसाई और
मारी जायेगी

किसी
ज्योतिष से
भी नहीं
पूछ पाती है

बेवकूफ होती
है मक्खी
इतना सा भी
नहीं कर पाती है ।

मंगलवार, 27 मई 2014

बस थोड़ी सी मुट्ठी भर स्पेस अपने लिये


बचने के लिये
इधर उधर रोज देख लेना
और कुछ कह देना कुछ पर
आसान है

अचानक सामने टपक पड़े
खुद पर उठे सवाल का
जवाब देना आसान नहीं है

जरूरी भी नहीं है प्रश्न कहीं हो 
उसका उत्तर कहीं ना कहीं होना ही हो

एक नहीं ढेर सारे अनुत्तरित प्रश्न
जिनका सामना नहीं किया जाता है

नहीं झेला जाता है
किनारे को कर दिया जाता है
कूड़ा कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है

कूड़ेदान के ढक्कन को फिर
कौन उठा कर उसमें झाँकना दुबारा चाहता है

जितनी जल्दी हो सके
कहीं किसी खाली जगह में फेंक देना ही
बेहतर विकल्प 
समझा जाता है

सड़ांध से बचने का एकमात्र तरीका
कहाँ फेंका जाये

निर्भर करता है
किस खाली जगह का उपयोग
ऐसे में 
कर लिया जाये

बस यही खाली जगह या स्पेस
ही होता है एक बहुत मुश्किल प्रश्न

खुद के लिये जानबूझ कर अनदेखा किया हुआ

पर हमेशा नहीं होता है
उधड़ ही जाती है जिंदगी रास्ते में कभी यूँ ही
और खड़ा हो जाता है यही प्रश्न बन कर

एक बहुत बड़ी मुश्किल बहुत बड़ी मुसीबत
कहीं कुछ खाली जगह अपने आप के लिये

सोच लेना शुरु किया नहीं कि
दिखना शुरु हो जाती हैं कंटीली झाड़ियाँ

कूढ़े के ढेरों पर लटके हुऐ बेतरतीब
कंकरीट के जंगल जैसे
मकानों की फोटो प्रतिलिपियों से भरी हुई जगहें
हर तरफ चारों ओर
मकानों से झाँकती हुई कई जोड़ी आँखे

नंगा करने पर तुली हुई
जैसे खोज रही हों सब कुछ
कुछ संतुष्टी कुछ तृप्ति पाने के लिये

पता नहीं पर शायद होती होगी
किसी के पास कुछ
उसकी अपनी खाली जगह
उसके ही लिये

बस बिना सवालों के
काँटो की तार बाड़ से घिरी बंधन रहित

जहाँ से बिना किसी बहस के
उठा सके कोई
अपने लिये अपने ही समय को
मुट्टी में
जी भर के देखने के लिये
अपना प्रतिबिम्ब

पर मन को भी नंगा कर
उसके 
आरपार देख कर मजा लेने वाले
लोगों से भरी इस दुनियाँ में
नहीं है 
सँभव होना
ऐसी कोई जगह जहाँ अतिक्रमण ना हो

यहाँ तक
जहाँ अपनी ही खाली जगह को
खुद ही घेर कर हमारी सोच
घुसी रहती है

दूसरों की खाली जगहों के पर्दे
उतार फेंकने के पूर जुगाड़ में
जोर शोर से ।

चित्र सभार: https://nl.pinterest.com/

सोमवार, 26 मई 2014

कोई ना कोई पाल बिल सबसे पहले लाया जायेगा

बहुत ही 
बेवकूफ थी 
पिछली सरकार 

कोशिश में
लगी 
हुई थी
बनाने में 
कागज के टुकड़े से 
आदमी का आधार 

इतना भी
नहीं 
समझी
देश प्रेम
को 
कैसे कागज
में 
उतारा जायेगा 

सारे कागज
ही 
एक जैसे हों जहाँ 

कौन
कितना प्रेमी है 
ऐसे में
कैसे 
हिसाब
लगाया जायेगा 

अब
लग रहा है
लेकिन 
इसका भी समाधान 
आसानी से
ही 
निकल आयेगा 

दिखने शुरु
हो जायेंगे

जैसे ही
पूत के पाँव 
पालने से बाहर 

उसी को
देख कर 
देश प्रेम निर्धारित 
कर
लिया जायेगा 

स्केल मिलेगा 
नापने का
कुछ 
पुराने प्रेमियों को 

उनसे
नापने के लिये 
इशारा दिया जायेगा 

उन में से ही
होगा 
बताने वाला भी 

कितने
अंकों के साथ 
देश प्रेमी होने के लिये 
कोई
योग्यता हासिल 
कर ले जायेगा 

देश प्रेम को
अंदर 
छुपाने वाले को 
नोटिस
दे दिया जायेगा 

लोकपाल
शोकपाल 
आये या ना आ पाये 

अपने पाल
अपने सँभाल 
बिल
सबसे पहले 
बहुमत से
पास हो कर 
सामने से आ जायेगा 

अभिमन्यु

कब से 
सीख रहे थे
पेट के अंदर 

बाहर
आने के बाद 
उनका कमाल 

‘उलूक’
देख लेना 
तू भी

बहुत जल्दी 
अपने
सामने सामने 
ही
देख पायेगा ।

रविवार, 25 मई 2014

रेखाऐं खींच कर कह देना भी कहना ही होता है

पूरी जिंदगी
ना सही
कुछ ही दिन
कभी कभी
कुछ आड़ी तिरछी
सौ हजार ना सही
दो चार पन्नों
में ही कहीं
पन्ने में नहीं
कहीं किसी दीवार
में ही सही
खींच कर
जरूर जाना
जाने से पहले
जरूरी भी
नहीं है बताना
वक्त बदलता है
ऐसा सुना है
क्या पता
कोई कभी
नाप ही ले
लम्बाईयाँ
रेखाओं की
अपनी सोच
के स्केल से
और समझ में
आ जाये उसके
कुछ बताने के लिये
हमेशा जरूरी
नहीं होती हैं
कुछ भाषाऐं
कुछ शब्द
दो एक सीधी
रेखाओं के
आस पास
पड़ी रेखाऐं
होना भी
बहुत कुछ
कह देता है
हमेशा नहीं
भी होता होगा
माना जा सकता है
पर कभी कहीं
जरूर होता है
समझ में आते ही
एक या दो
या कुछ और
रेखाऐं रेखाओं के
आसपास खींच देने
वाला जरूर होता है
रेखाऐं बहुत मुश्किल
भी नहीं होती हैं
आसानी से समझ
में आ जाती है
बहुत थोड़े से में
बहुत सारा कुछ
यूँ ही कह जाती हैं
जिसके समझ में
आ जाती हैं
वो शब्द छोड़ देता है
रेखाओं का
ही हो लेता है ।

शनिवार, 24 मई 2014

धुंध की आदत पड़ जाये तो साफ मौसम होना अच्छा नहीं होता है

कुछ होता है
घने कोहरे के
पीछे से छुपा हुआ
नजर नहीं आने
का मतलब
कुछ नहीं होना
कभी भी नहीं होता है
कोहरा हटने के
बाद की तेज धूप
खोल देती है
सारे के सारे राज
एक ही साथ
पेड़ पौँधे नदी पहाड़
सब अपनी जगह पर
उसी तरह होते हैं
जैसा कोहरा लगने से
पहले हुआ करते हैं
कोहरे के होने
या ना होने से
उस चीज का होना
या ना होना
अभिव्यक्त नहीं होता है
जो कोहरे के इस पार
या उस पार होता है
कोहरे की आदत
हो जाने वाले के लिये
तेज धूप का होना
जरूर एक भ्रम होता है
चीजों का बहुत
नजदीक से बहुत
साफ साफ दिखना
ही सबसे बड़ा
एक वहम होता है ।

शुक्रवार, 23 मई 2014

मदारी जमूरे और बंदर अभी भी साथ निभाते हैं



मदारी जमूरा और बंदर
बहुत कम नजर आते हैं

अब घर घर नहीं जाते हैं

मैदान में स्कूल में
या चौराहे के आस पास
तमाशा अब भी दिखाते हैं

बहुत हैं पर हाँ पुराने भेष में नहीं
कुछ नया करने के लिये
नया सा कुछ पहन कर आते हैं

सब नहीं जानते हैं
सब नहीं पहचानते हैं
मगर रिश्तेदारी वाले
रिश्ता कहीं ना कहीं से
ढूँढ ही निकालते हैं

तमाशा शुरु भी होता है
तमाशा पूरा भी होता है
बंदर फिर हाथ में लकड़ी ले लेता है

चक्कर लगता है भीड़ होती है
साथ साथ मदारी का जमूरा भी होता है

भीड़ बंदर से बहुत कुछ सीख ले जाती है
बंदर के हाथ में चिल्लर दे जाती है

भीड़ छंंटती जरूर है
लेकिन खुद उसके बाद बंदर हो जाती है

बंदर शहर से होते होते
गाँव तक पहुँच जाते हैं
परेशान गाँव वाले
अपनी सारी समस्यायें भूल जाते हैं

दो रोटी की फसल बचाने की खातिर

बंदर बाड़े बनवाने की अर्जी
जमूरे के हाथ मदारी को भिजवाते हैं

बंदर बाड़े बनते हैंं
बंदर अंदर हो जाते हैं

कुछ बंदर दुभाषिये बना लिये जाते हैं
आदमी और बंदरों के बीच संवाद करवाते हैं
ऐसे कुछ बंदर बाड़े से बाहर रख लिये जाते हैं

पहचान के लिये 
कुछ झंडे और डंडे
उनको मुफ्त में दे दिये जाते हैं ।

चित्र सभार: https://www.shutterstock.com/

गुरुवार, 22 मई 2014

पहचान के कटखन्ने कुत्तों से डर नहीं लगता है

पालतू
भेड़ों की
भीड़ को
अनुशाशित
करने के
लिये ही

पाले
जाते हैं
कुत्ते
भेड़ों को
घेर कर
बाड़े तक
पहुँचाने में
माहिर
हो जाने से
निश्चिंत
हो जाते हैं
भेड़ों के
मालिक

कुत्तों के
हाव भाव
और चाल
से ही रास्ता
बदलना
सीख लेती
हैं भेड़े

मालिक
बहुत सारी
भेड़ों को
इशारा करने
से अच्छा
समझते हैं
कुत्तों को
समझा लेना

भेड़ों
को भी
कुत्तों से
डर नहीं
लगता है

जानती हैं
डर के आगे ही
जीत होती है

भेड़ों को
घेर कर
बाड़े तक
पहुँचाने का
इनाम

कुछ
माँस के टुकड़े

कुत्ते
भेड़ों के
सामने से
ही नोचते हैं

भेड़े
ना तो खाती हैं
ना ही माँस
पसँद करती हैं

पर
उनको
कुत्तों को
माँस नोचता
देखने की
आदत
जरूर हो
जाती है

रोज
होने वाले
दर्द की
आदत
हो जाने
के बाद
दवा की
जरूरत
महसूस
नहीं होती है ।

बुधवार, 21 मई 2014

मुट्ठी बंद दिखने का वहम हो सकता है पर खुलने का समय सच में आता है



अंगुलियों
को 

मोड़कर 
मुट्ठी बना लेना 

कुछ भी
पकड़ 
लेने
की
शुरुआत 

पैदा होते हुऐ 
बच्चे
के साथ 

आगे भी
चलती 
चली जाती है 

पकड़
शुरु में 
कोमल होती है 

होते होते
बहुत
कठोर
हो जाती है 

किसी भी
चीज को 
पकड़ लेने की सोच 

चाँद
भी पकड़ने
के 
लिये
लपक जाती है 

पकड़ने की
यही 
कोशिश
कुछ 
ना कुछ
रंग 
जरूर दिखाती है 

आ ही
जाता है 
कुछ ना कुछ 
छोटी सी मुट्ठी में 

मुट्ठी
बड़ी और बड़ी 
होना
शुरु हो जाती है 

सब कुछ हो 
रहा होता है 

बस
आँख बंद 
हो जाती है 

फिर
आँख और 
मुट्ठी 
खुलना शुरु 
होती है

जब 
लगने लगता है 
बहुत कुछ

जैसे
हवा पानी 
पहाड़ अपेक्षाऐं 
मुट्ठी में आ चुकी हैं 

और
पकड़ 
उसके बाद 
यहीं से

ढीली 
पड़ना शुरु 
हो जाती है 

‘उलूक’
वक्र का 
ढलना
यहीं से 
सीखा जाता है 

वक्र का
शिखर 
मुट्ठी से बाहर 
आ ही जाता है 

उस समय
जब 
सभी कुछ
मुट्ठी 
में
समाया हुआ 

मुट्ठी में
नहीं 
मिल पाता है 

अपनी अपनी
जगह 
जहाँ था

वहीं
जैसे 
वापस
चला जाता है 

अँगुलियाँ
सीधी 
हो
चुकी होती हैं 

जहाज
के
उड़ने का 
समय
हो जाता है ।


चित्र साभार:
 http://www.multiversitycomics.com/

मंगलवार, 20 मई 2014

एक आदमी एक भीड़ नहीं होता है

बेअक्ल 
बेवकूफ
लोगों का 

अपना
रास्ता 

होता है

भीड़ 
अपने रास्ते
में होती है

भीड़ 
गलत
नहीं होती है

भीड़ 
भीड़ होती है

भीड़ 
से अलग
हो जाने वाले
के हाथ में
कुछ नहीं होता है

हर किसी 
के लिये
एक अलग 

रास्ते का 
इंतजाम होना
सँभव 

नहीं होता है

भीड़ 
बनने 
का अपना 
तरीका
होता है

इधर 
बने या
उधर बने

भीड़ 
बनाने का
न्योता होता है

भीड़ 
कुछ करे 
ना करे
भीड़ से 

कुछ नहीं
कहना होता है

भीड़ 
के पास
उसके अपने
तर्क होते हैं

कुतर्क 
करने
वाले के लिये
भीड़ में घुसने 

का कोई 
मौका ही
नहीं होता है

भीड़ 
के अपने
नियम 

कानून
होते हैं

भीड़ 
का भी
वकील होता है

भीड़ 
में किसका
कितना हिस्सा
होता है 


चेहरे में
कहीं ना कहीं
लिखा होता है

किसी 
की 
मजबूरी 
होती है
भीड़ में 

बने रहना

किसी 
को भीड़ से
लगते हुए डर से
अलग होना होता है

छोटी 
भीड़ का
बड़ा होना 


और
बड़ी 

भीड़ का
सिकुड़ जाना

इस 
भीड़ से
उस भीड़ में
खिसक जाने
से होता है

‘उलूक’ 
किसी एक
को देख कर
भीड़ की बाते
बताने वाला

सबसे बड़ा
बेवकूफ होता है

चरित्र 
एक का
अलग 


और
भीड़ 

का सबसे
अलग होता है ।

सोमवार, 19 मई 2014

सब कुछ लिख लेने का कलेजा सब के हिस्से में नहीं आ सकता है

सब कुछ
साफ साफ
लिख देने
के लिये
किसी को
मजबूर नहीं
किया जा
सकता है

सब कुछ
वैसे भी
लिखा भी
नहीं जा
सकता है

इतना तो
एक अनपढ़
की समझ में
तक आ
सकता है

सब कुछ
लिख लेने
का बस
सोचा ही
जा सकता है

कुछ
कुछ पूरा
लिखने की
कोशिश
करने वाला

पूरा लिखने
से पहले ही
इस दुनियाँ
से बहुत दूर भी
जा सकता है

सब कुछ
लिख देने
की कोशिश
करने में
आपदा भी
आ सकती है

साल
दो साल नहीं
सदियाँ भी
पन्नों में
समा सकती हैं

नदियाँ
समुद्र तक
जा कर
लौट कर
भी आ
सकती हैं

सब कुछ
सब लोग
नहीं लिख
सकते हैं

उतना ही
कुछ लिख
सकते हैं
उतना ही
कुछ बता
सकते हैं

जितने को
लिखने या
बताने में
कुछ
ना कुछ
पी खा
सकते हैं

कुछ
आने वाली
पीढ़ियों
के लिये
बचा सकते हैं

सब कुछ
लिख
देने वाला
अच्छी तरह
से जानता है

बाहर के
ही नहीं
अंदर के
कपड़े भी
फाड़े या
उतारे जा
सकते हैं

हमाम में
कोई भी
कभी भी
आ जा
सकता है

नहाना चाहे
नहा सकता है
डुबकी लगाने
की भी मनाही
नहीं होती है

डुबकी
एक नहीं
बहुत सारी भी
लगा सकता है

साथ
किसी के
मिलकर
करना हो
कुछ भी
किसी भी
सीमा तक
कर करा
सकता है

किसी
अकेले का
सब कुछ
किये हुऐ
की बात
शुरु करने
से ही
शुरु होना
शुरु होती है
परेशानियाँ

सब कुछ
लिखने
लिखाने की
हिम्मत करने
वाले का कुछ
या
बहुत कुछ
नहीं
सब कुछ भी
भाड़ में
जा सकता है

‘उलूक’
कुछ कुछ
लिखता रह
पंख नुचवाता रह

सब कुछ
लिखने का
जोखिम
तू भी नहीं
उठा सकता है

अभी
तेरी उड़ान
रोकने की
कोशिश
से ही
काम चल
जाता है
जिनका

तेरे
सब कुछ
लिख देने से
उनका हाथ
तेरी गरदन
मरोड़ने के
लिये भी
आ सकता है ।

रविवार, 18 मई 2014

लिख लिया कर लिखने के दिन जब आने जा रहे होते हैं

घर पर गिरने
गिरने को हो
रहे सूखे पेड़ों
को कटवा लेने
की अनुमति
लेने की अर्जी
पिछले दो साल से
सरकार के पास
जब कहीं सो
रही होती है
पता चलता है
सरकार उलझी होती है
कहीं जिंदा पेड़ों के
धंधेबाजों के साथ
इसी लिये मरे हुऐ
पेड़ों के लिये
बात करने में
देरी हो रही होती है
देवदार के जवान पेड़
खुले आम पर्दा
महीन कपड़े
का लगाकर
शहीद किये
जा रहे होते हैं
जरूरत ही नहीं
पड़ती है धूल की
आँखों में झोंकने
की किसी के
कटते पेड़ों के
बगल से
गुजरते गुजरते
आँखें जब कहीं
ऊपर आसमान
की ओर हो
रही होती हैं
बहुत लम्बे समय
से चल रहा होता
है कारोबार
पेड़ों की जगह
उगाये जा रहे होते हैं
कंक्रीट के खम्बे
एक की जगह चार चार
शहर के लोग ‘महान’ में
कट रहे जंगलों की
चिंता में डूबते
जा रहे होते हैं
अपने घर में हो रहे
नुकसान की बात कर
अपनी छोटी सोच का
परिचय शायद नहीं
देना चाह रहे होते हैं
उसी के किसी आदमी
के आदमी के आदमी
ही होते हैं जिसके लिये
लोग आँख बंद कर
ताली बजा रहे होते हैं
ऐसे ही समय में
‘उलूक’ कुछ
तेरे भी जैसे होते हैं
जो कहीं दूर किसी
दीवार पर कबूतर
बना रहे होते हैं ।

शनिवार, 17 मई 2014

कुछ भी कह देने वाला कहाँ रुकता है उसे आज भी कुछ कहना है

एक सपने बेचने
की नई दुकान का
उदघाटन होना है
सपने छाँटने के लिये
सपने बनाने वाले को
वहाँ पर जरूरी होना है
आँखे बंद भी होनी होगी
और नींद में भी होना है
दिन में सपने देखने
दिखाने वालों को
अपनी दुकाने अलग
जगह पर जाकर
दूर कहीं लगानी होंगी
खुली आँखों से सपने
देख लेने वालों को
उधर कहीं जा कर
ही बस खड़े होना है
अपने अपने सपने
सब को अपने आप
ही देखने होंग़े
अपने अपनो के सपनों
के लिये किसी से भी
कुछ नहीं कहना है
कई बरसों से सपनों
को देखने दिखाने के
काम में लगे हुऐ
लोगों के पास
अनुभव का प्रमाण
लिखे लिखाये कागज
में ही नहीं होना है
बात ही बात में
सपना बना के
हाथ में रख देने
की कला का प्रदर्शन
भी साथ में होना है
सपने पूरे कर देने
वालों के लिये दूर
कहीं किसी गली में
एक खिलौना है
सपने बनने बनाने
तक उनको छोड़िये
उनकी छाया को भी
सपनों की दुकान के
आस पास कहीं पर
भी नहीं होना है ।

शुक्रवार, 16 मई 2014

लो आ गई अच्छे दिन लाने वाली एक अच्छी सरकार

घर से निकलना
रोज की तरह
रोज के रास्ते से
रोज के ही वही
मिलने वाले लोग

रोज की हैलो हाय
नमस्कार पुरुस्कार

बस कुछ हवा का
रुख लग रहा था
कुछ कुछ अलग
बदला बदला सा

सबसे पहले वही
तिराहे का मोची
जूता सिलता हुआ

उसके बाद
चाय के
खोमचे वाला
दो महीने से
सर पर रखी
उसकी वही टोपी
पार्टी कार्यालय
से मिली हुई

नगरपालिका के
दिहाड़ी कर्मचारियों
के द्वारा खुद
दिहाड़ी पर रखे हुऐ
अट्ठारह बरस के
हो चुके लड़के

अच्छे लोगों के
खुद के घरों को
साफ कर सड़क
पर फेंके गये
पालीथीन में
तरतीब से बंद कर
मुँह अंधेरे फेंके गये
कूड़े के ढेरों से
उलझते हुऐ

उसी सब के बीच
तिराहे पर मेज पर
रखा रँगीन टी वी
और उसके चारों
ओर लगी भीड़
गिनते हुऐ
हार और जीत

भीख माँगने वाले
अपनी पुरानी
उसी जगह पर
पुराने समय के
हिसाब से
रोज की तरह
चिल्लाते हुऐ
नमस्कार
कुछ दे जाते
सरकार

सड़क पर
सुनसानी
और उससे लगे
हुऐ घरों से
लगातार
आ रहा चुनाव
विश्लेषण का शोर

माल रोड में
गाड़ियाँ और
दौड़ते हुऐ
दुपहियों पर
लहराते झंडे

खुशी से झूमते
कुछ लोग
दिमाग में लगता
हुआ बहुत जोर

बस यह समझने
की कोशिश कि
कुछ बदल गया है
और वो है क्या

लौटते लौटते
अचानक समझ में
जैसे कुछ चमका
कुछ समझ आया

‘उलूक’ को अपने
पर ही गुस्सा
ऐसे में आना
ही था आया

बेवकूफ था
पता था
पर इतना ज्यादा
सोच कर अपनी
बेवकूफी पर
खुद ही मुस्कुराया

फिर खुद ही
खुद को ही
इस तरह से
कुछ समझाया

आज का दिन
आने वाले
अच्छे दिनों का
पहला दिन है

कितने लोग
इस दिन को
कब से रहे
अंगुलियों
में गिन हैं
किसके आने
वाले हैं

इस सब के
गणित के
पीछे पीछे
मत जा
बस तू भी
सबकी तरह
अब तो
हो ही जा

शुरु हो जा
अच्छे दिनों को
आना है सोच ले
और खुश हो जा ।

गुरुवार, 15 मई 2014

बहुत जोर की हँसी आती है जब चारों तरफ से चोर चोर की आवाज आती है

सारे हैं शायद
चोर ही हैं
चोर जैसे
दिख तो
नहीं रहे हैं
पर लग रहा है
कि चोर हैं
इसलिये क्योंकि
सब मिलकर
चोर चोर
चिल्ला रहे हैं
किसको कह रहे
हैं चोर चोर
बस यही नहीं
बता रहे हैं
कुछ ऐसा जैसा
महसूस हो रहा है
चोर उसको चोर
कह रहा है
जो चोरों को
बहुत लम्बे
समय से चोरी
करते हुऐ
देख रहा है
कौन क्या क्या
चोर रहा है
उसको सब
पता है
उसको क्या
पता है
ये चोरों को
भी पता है
अब चोरों की
दुनियाँ में
जो चोर नहीं है
सबसे बड़ा
चोर तो वही है
अच्छा है चोरों
की दुनियाँ में
पुलिस नहीं होती है
चोर के पास ही
चोर को सजा में
ईनाम देने की
एक धड़ी होती है
घड़ी घंटी तभी
बजाती है जब
कहीं किसी दिन
चोरी नहीं होने की
खबर आती है
‘उलूक’ को वैसे तो
रात में ही आँख
खोलने में
विश्वास होता है
दिन में उसका
देखा हुआ
देखा जैसा भी
नहीं होता है
उसके घर से
शुरु होते हैं चोर
और कोई भी
मैं चोर हूँ
बिल्कुल भी
नहीं कहता है
मौका मिलता है
जैसे ही थोड़ा
सा कहीं भी
किसी के साथ
मिलकर चोर चोर
जरूर कह लेता है ।

बुधवार, 14 मई 2014

स्वर्ग जाना जरूरी नहीं होता है जब उसके बारे में बताने वाला आस पास ही पाया जाता है

काला चश्मा
पहन कर
अपने आस पास
की गंदगी को
रंगीन कपड़े
से ढक कर
उसके ऊपर से
खुश्बू छिड़क कर
उसके पास पूरी
जिंदगी बिता देना

बहुत से लोगों को
बहुत अच्छी तरह
से आता है

सबकी नहीं भी
होती होगी
पर बहुतों
की होती है
एक ऐसी ही आदत

उसमें शामिल
होते हैं हम भी
पूरी तरह
एक नहीं
कई बार

कथा भागवत
करने में माहिर
ऐसे लोगों को
गीता से लेकर
कुरान का भी ज्ञान
रुपिये पैसे के ऊपर
लगने वाले ब्याज
की तरह आता है

कीचड़ के ऊपर से
धोती को समेरते हुऐ
बातों बातों में एक
बहुत लम्बे रास्ते से
ध्यान हटाने की
कला में पारँगत
ऐसे ही लोग
स्वर्ग के बारे में
बताते चले जाते हैं

बहुत से लोगों की
इच्छा भी होती है
जिंदा ही स्वर्ग
भ्रमण करने की

उनके लिये ही
सारा इंतजाम
किया जाता है

देखते सुनते
सब लोग हैं
जानते बूझते
सब लोग है

यही सब लोग
बहुत दूर के
बजते हुऐ
ढोलों और
नगाड़ों की तरफ
कान लगाये हुऐ
खड़े होकर
काट लेते हैं समय

इनमें से कोई
भी कभी स्वर्ग
ना जिंदा जाता है
ना ही मरने के
बाद ही इनको
वहाँ आने
दिया जाता है

नगाड़ों
की आवाज
सुनाई भी
नहीं देती है

कुछ बज रहा है
कहीं दूर बहुत
बता दिया जाता है

क्या करे
कोई उनका
जिनको अपने
आसपास के
पेड़ पौंधों
को तक पागल
बनाना आता है

वो बताते
चले जाते हैं
स्वर्ग के इंद्र
के बारे में

कब वो स्वर्ग के
लायक नहीं
रह जाता है

ऐसे समय में
स्वर्ग को फिर से
स्वर्ग बनाने के लिये
नये इंद्र को लाने
ले जाने का ठेका
दूर कहीं बैठ कर
ही हो जाता है

कथाऐं
चलती रहती है
कथा वाचक
बताता चला जाता है

फिर से एक बार
स्वर्ग बनने बनाने की
कथा शुरु हो चुकी है

सीमेंट और रेत के
शेयरों का बहुत
तेजी से ऊपर चढ़ना
शुरु हो जाने का अब
और क्या मतलब
निकाला जाता है ।

मंगलवार, 13 मई 2014

बहुत कुछ ऐसे वैसे भी कह दिया जाता है बाद में पता चल ही जाता है

कई बार समझ में
नहीं आ पाता है
खाली स्थान
ही स्थान है या
किसी का गोदाम है
बिना किराये का
जिसमें कोई आ कर
रोज भूसा रख जाता है
कुछ कीमती सामान
रख कर जा रहा हूँ
पोटली में बांध कर
खोल कर बिल्कुल भी
नहीं देखना है जैसी
राय जाते जाते
जरूर दे जाता है
अक्ल हीनता का
आभास कभी
नहीं होता जिनको
उनसे आदतन
हो ही जाता है
भरोसा करना
ऐसे में ही हमेशा से
बहुत ज्यादा महँगा
पढ़ जाता है
कागज कलम दवात
लेकर रोज पेड़ के
नीचे बैठा जाता है
अब सोच का
क्या किया जाये
ऐसा जैसा भी तो
सोचा ही जाता है
रोज सबेरे मुँह अंधेरे
भी तो दिशा मैदान
आदमी ही जाता है
क्या निकाला कैसा था
क्या कभी किसी घर के
आदमी को भी
आकर कोई बताता है
अपनी पेट की बात
अपने तक रख
ही ले जाता है
पर उसमें एक सच
तो जरूर समाहित
माना ही जाता है
जैसा खाया होता है
उसी तरह का
बाहर भी आता है
कलम से निकलने
वाला लेकिन
बहुत बार वो सब
नहीं निकल पाता है
पोटली खाली थी या
किरायेदार गोबर सँभाल
कर निकल जाता है
पता ही नहीं चलता
होनी लिखने की जगह
कब बहुत कुछ
अनहोनी हो जाता है
ढोल की पोल खोलने
वाला खोल तो
बहुत कुछ जाता है
बाद में आता है और
पक्का अंदाज आ पाता है
कुछ ढोलों को तो
पहले से ही पूरा ही
खुला रखा जाता है ।

सोमवार, 12 मई 2014

सियार ने खड़े किये हुऐ हैं कान होशियारी जरूर दिखायेगा

आज हो ही गया
लग पड़ कर पूरा
बहुत दिन से
लग रहा था
कहीं है कुछ तो
अधूरा अधूरा
कल से दो चार
दिन के लिये
कोई कहीं
नहीं जायेगा
उसके बाद कौन
कहाँ पहुँच जायेगा
ये सब मशीनों का
मूड ही बता पायेगा
किस ने खर्च किया है
और कुछ खरीदा है
किस को मौका मिला
है बेचने का जिसने
बेच भी दिया है
बहुमत बनेगा और
सौ आना पक्का बनेगा
पर शक्ल उसी तरह
की ही तो ले पायेगा
जिस तरह का बहुमत
रोज कोई अपने
आसपास हमेशा
अपने जैसों के
साथ मिल बैठ
कर बनायेगा
कान का पूँछ से
वैसे तो कम ही
पड़ता है मतलब
कान पूँछ के पास
हो सकता है
नहीं भी जायेगा
काम निकालने
निकलवाने की भी
प्रैक्टिस करनी
पड़ती है जनाब
काम निकालने
के लिये बिना
पूँछ वाला भी
किसी और की
पूँछ मोड़ कर
अपने कान के
पीछे से भी
निकाल ले जायेगा
अँगुली में लगा
हुआ काला निशान
इतनी जल्दी भी
फीका नहीं हो जायेगा
कहीं खिलेगा चमकेगा
कहीं नीला होते होते
काला पड़ जायेगा
जो भी होगा
अच्छा होगा
अच्छे को ही
आगे ला
कर दिखायेगा
नहीं भी होगा
तो अच्छा
ही आया है
मान कर तसल्ली
करने का
संदेश दे जायेगा
कितनी बार
हो चुका है
इसी तरह का
क्या पता
इस बार
कुछ नया
इतिहास बनायेगा
छोटे छोटे गाँवों से
मिलकर बने देश ने
हमेशा गाँव दिखाया है
इसी बार बताया
जा रहा है
शहर से
होता हुआ शहर
अपनी चाल दिखायेगा
सोलहवाँ सावन
है सरकार
सरकार बनने
बनाने में
देख लीजियेगा
सोलह गुल
जरूर खिलायेगा
इसकी बने तो इसकी
उसकी बने तो उसकी
जैसी कहने वालों का
बोलबाला हमेशा ही
जलवा बिखेरता रहा है
इस बार भी नहीं चूकेगा
अपना दाँव चलाने का
मौका जरूर
निकाल ले जायेगा ।

रविवार, 11 मई 2014

किताबों के होने या ना होने से क्या होता है

किताबें सब के
नसीब में
नहीं होती हैं
किताबें सब के
बहुत करीब
नहीं होती हैं
किताबें होने से
भी कुछ
नहीं होता है
किताबों में जो
लिखा होता है
वही होना भी
जरूरी नहीं होता है
किताबों में लिखे को
समझना नहीं होता है
किताबों से पढ़ कर
पढ़ने वालो से बस
कह देना ही होता है
किताबों को खरीदना
ही नहीं होता है
किताबों का कमीशन
कमीशन नहीं होता है
किताबें बहुत ही
जरूरी होती है
ऐसा कहने वाला
बड़ा बेवकूफ होता है
किताबें होती है
तभी बस्ता
भी होता है
किताबें डेस्क
में होती है
किताबें अल्मारी
में सोती हैं
किताबे दुकान
में होती हैं
किताबे किताबों के
साथ रोती हैं
किताबों में
लिखा होना
लिखा होना
नहीं होता है
किताबों में
इतिहास होता है
किताबों में हास
परिहास होता है
किताबों की बातों को
किताबों में ही
रहना होता है
जो अपने
आस पास होता है
किताबों से नहीं होता है
किसी को पता
भी नहीं होता है
होना या ना
होना भी
किताबों में
नहीं होता है
सब पता होना
इतना भी जरूरी
नहीं होता है
इतिहास
पुराना हो
बहुत अच्छा
नहीं होता है
नया होने
के लिये
ही कुछ
नया होता है
जो पहले से
ही होता है
उसका होना
होना नहीं होता है
किताबों को पढ़ना
और पढ़ाना होता है
बताना कुछ
और ही होता है
जिसको इतना
पता होता है
गुरुओं का भी
गुरु होता है ।

शनिवार, 10 मई 2014

आईडिया आ रहा है तो मेरे बाप का क्या जा रहा है

कहते हैं एक
अच्छा आईडिया
बदल सकता है
किसी की भी दुनिया
पर आईडिया
आये कहाँ से
प्रश्न उठ रहा हो
अगर किसी के
खाली दिमाग में
ऐसे ही समय में
तो लगता है
प्रश्न भी बेरोजगार
हो सकते है
कहीं भी मन करे
उठ खड़े भी
हो सकते हैं
इसलिये कभी कभी
पाठक के ऊपर भी
भरोसा कर ही
लेना चाहिये
कुछ बात जो
समझ में नहीं
आ रही हो
बेझिझक होकर
पूछ लेना चाहिये
अब मजाक
मत उड़ाइयेगा
अपना समझ कर
ही बताइयेगा
सोच में आ रहा है
देश भक्ति के
छोटे छोटे पैकेट
बनाकर फुटकर में
बेचने का मन
चाह रहा है
दाम बहुत ज्यादा
नहीं रखे जायेंगे
आजकल वैसे भी
एक के साथ एक
फ्री लेने देने का
जमाना छा रहा है
अब किसी एक को
तो लेनी ही
पड़ेगी सारे देश में
ऐजैंसियाँ बाटने
की जिम्मेदारी
किससे सौदा
किया जाये
बस यही समझ
में नहीं आ पा रहा है
रोज लाता है ‘उलूक’
कौड़ी बेकार की
आज भी कोई
नई चीज नहीं
उठा रहा है
आभारी रहेगा
जिंदगी भर
अगर आपके
दिमाग में भी
कोई नया आईडिया
इस मुद्दे पर
आ जा रहा है
मुफ्त में बाँटने की
बात नहीं कह रहा हूँ
सौदा देशभक्ति
का होना है
कर लेंगे कम बाकी
बाद में मिल बैठ कर
कौन किसी को
इस बात को
जनता को बताने
के लिये जा रहा है ।

शुक्रवार, 9 मई 2014

सँभाल के रखना है सपनों को मुट्ठी के अंदर फना होने तक

मुट्ठियाँ
बंद रखना
बस
कोशिश करके
कुछ ही दिन
और
बहुत कुछ है
जो
अभी हाथ में है
जिसे कब्जे में
लिया है सभी ने

अपने अपने
सपनों से
अपनी अपनी
सोच और
अपनी औकात के
हिसाब किताब से

कुछ ना कुछ
थोड़ा थोड़ा
गणित
जोड़ घटाना
नहीं आते हुऐ भी

समझ में आ
ही जाता है
अंधा भी
पहचान
लेता है
खुश्बू से
बदलते हुऐ
रंगों को

कान बंद
करने के
बाद भी
आवाजों की
थरथराहट
बता देती है
संगीत मधुर है
या कहीं
तबाही हुई
है भयानक

चैन से सोने
के दिनों में
सपनो को
आजाद कर देना
अच्छी बात नहीं है

सपने
आसानी से
मरते भी नहीं हैं

ताजमहल
पक्का बनेगा
बनना ही
उसकी नियति है

हाथों को
कटना ही है
और
खाली हाथों के
कटने से अच्छा है
बंद मुट्ठियाँ कटें

पूरे नहीं होने हों
कोई बात नहीं
कम से कम
सपने दिखें तो

बंद अंगुलियों के
पोरों के पीछे से
ही सही कहीं

जैसे
दिखता है
सलाखों
के पीछे
एक मृत्यूदंड
पाया हुआ
अपराधी
कारागार में ।

गुरुवार, 8 मई 2014

इतने में ही क्यों पगला रहा है जमूरे हिम्मत कर वो आ रहा है जमूरे

अरे जमूरे सुन
हुकुम मालिक
आ गया
बजा के ड्यूटी
बजा ली मालिक
कहाँ बजाई
बहुत बड़े मालिक की
बजाई मालिक
नहीं बजाता
तो मेरी बजा देता मालिक
खेल कैसा रहा जमूरे
बढ़िया रहा मालिक
मशीन के तो
मौज ही मौज थे मालिक
बाकी जैसे पिटी हुई
फौज के कुछ
फौजी थे मालिक
कोई किसी को
कुछ नहीं बता
रहा था मालिक
काम अपने आप
हो जा रहा था मालिक
रहने सहने की
कौन कहे मालिक
डर के मारे वैसे ही
नींद में सो
जा रहा था मालिक
कोई डंडा बंदूक से
नहीं डरा रहा था मालिक
अपने आप दिशा
जाने का मन
हो जा रहा था मालिक
मशीन भगवान जैसी
नजर आ रही थी मालिक
अपने आप ही
हनुमान चालिसा
पढ़ी जा रही थी मालिक
बस एक बेचारा
तीस साल का जमूरा
हार्ट अटैक से
मारा गया मालिक
तीन महीन पहिले ही
डोली से उतारा
गया था मालिक
कोई बात नहीं मालिक
एक नेता बनाने के लिये
एक ही शहीद हुआ मालिक
काम नहीं रुका
ऐसे में भी
जो जैसा होना था
उसी तरह से हुआ मालिक
तुरंत हैलीकाप्टर से
शरीर को उसके घर
तक पहुँचा
दिया गया मालिक
दुल्हन को भी
बीमे की रकम का
झुनझुना दिखा
दिया गया मालिक
नेता जी की वाह वाह को
अखबार में छपवा
दिया गया मालिक
बस एक बात
समझ में नहीं
कुछ आई मालिक
मजबूत सरकार
ही नहीं अभी तक
आई है मालिक
फिर सारा काम
कौन सी सरकार
निपटवाई है मालिक
जूता किसी ने
किसी को नहीं
दिखाया मालिक
भाग्य भाग्यहीनो का
गिने चुने किस्मत
वालो के लिये
डब्बे में बंद
फिर भी
करवाया मालिक
खर्चा पानी बिल सिल
कहीं भी नहीं
दिखाया मालिक
सारा काम हो गया
पता भी नहीं
किसी को चला मालिक
आप मालिक हो
थोड़ा हमें भी
समझा दिया करो मालिक
चुनाव आयोग को ही
लोकसभा विधानसभा में
बैठा लिया करो मालिक
हर पाँच साल बाद
होने वाले तमाशे से
छुटकारा दिलवा
दिया करो मालिक
जमूरे
जी मालिक
बहुत बड़बड़ा रहा है
चुनाव का असर
दिमाग में पड़ गया है
जैसा ही कुछ
समझ में आ रहा है
दो चार दिन बस
और रुक जा
परीक्षाफल आने
ही जा रहा है
उसके बाद सब
ठीक हो जायेगा
धंधा शुरु होने के
बाद कौन किसे
पूछने को आ रहा है
तू और मैं
फिर से शुरु हो जायेंगे
कटोरा भीख माँगने
का कहीं नहीं जा रहा है ।

बुधवार, 7 मई 2014

सच्चाई लिखने का ही बस कोई कायदा कानून नहीं होता है

दिल ने कहा गिन
अरे कुछ तो गिन
गिनती भूल गये
पता नहीं क्यों
इसी बार बस
दिन गिने
ही नहीं गये
बहुत देर में
पहुँचे आँखिरकार
आया बटन
दबाने का दिन
उसकी सोचो
उसे भी तो
चादर से ढके
गधों को
हाँकते हाँकते
हो गये हैं
कितने दिन
मान कर
चलना पड़ेगा
किसी ने किसी
गधे को नहीं
देखा होगा
आगे क्या
होने वाला है
पता नहीं किसी
को शायद
पता भी होगा
उसको देख कर
ही तसल्ली
कर रहा होगा
काफिला सही
जगह पर जाकर
पहुँच रहा होगा
गधे आश्वस्त होंगे
बहुत खुश होंगे
व्यस्त होंगे
मन ही मन
बेचैन होंगे
दावत के सपने
काले सफेद नहीं
सभी रंगीन होंगे
होता है होता है
ऐसा ही होता है
किसी को कहाँ
मतलब होता है
जब गधे के
आगे गधा और
गधे के पीछे भी
गधा होता है
गधे चल या
दौड़ रहे होते हैं
देखने सुनने वाले
भी गधे होते हैं
क्या करे बेचारा
उस ही के बारे में
हर कोई कुछ ना कुछ
सोच रहा होता है
मानना पड़ता है
जाँबाज होता है
गधे हैं पता
होने पर भी
खुशी खुशी
हाँक रहा होता है
अनगिनत गधों में
एक भी गधा
ऐसा नहीं होता है
जिसके गले में
कोई पट्टा या
रस्सी का फंदा
दिख रहा होता है
उसकी सोचो जरा
जो इतनो को
इतने समय से
एक साथ खींच
घसीट रहा होता है
गधों में से एक गधा
तब से अब तक
गधों की बात ही
सोच रहा होता है
गुब्बारों में हवा
भरने का भी
कोई सहूर होता है
ज्यादा भर गई
हवा को भी तो
कहीं ना कहीं से
निकलना ही होता है
आदमी का इस सब में
कोई कसूर नहीं होता है
जहाँ कुछ भी होना
मंजूरे खुदा के होने
से ही होना होता है
कुछ नहीं कर
सकता है कोई
उसके लिये
जिसकी किस्मत
में बस यही सब
लिखना लिखा
होता है
पढ़ने वाले के
लिये दुआऐं
ढेर सारी लिखने
के साथ साथ
'उलूक' हमेशा
बहुत सारी जरूर
माँग रहा होता है ।

मंगलवार, 6 मई 2014

जिसको काम आता है उसको ही दिया जाता है

अपनी
प्रकृति के
हिसाब से

हर
किसी को

अपने
लिये काम
ढूँढ लेना

बहुत
अच्छी तरह
आता है

एक
कबूतर
होने से
क्या होता है

चालाक
हो अगर

कौओं को
सिखाने
के लिये भी
भेजा जाता है

भीड़
के लिये
हो जाता है
एक बहुत
बड़ा जलसा

थोड़े से
गिद्धों को
पता होता है

मरा
हुआ घोड़ा
किस जगह
पाया जाता है

बहुत
अच्छी बात है

अगर कोई
काली स्याही
अंगुली में
अपनी
लगाता है

गर्व करता है

इतराता हुआ
फोटो भी
कई खिंचाता है

चीटिंयों की
कतार चल
रही होती है
एक तरफ को

भेड़ो
का रेहड़
अपने हिसाब से

पहाड़ पर
चढ़ना चाहता है

एक
खूबसूरत
ख्वाब

कुछ दिनों
के लिये ही सही
फिल्म की तरह
दिखाया जाता है

देवता लोग
नहीं बैठते हैं
मंदिर मस्जिद
गुरुद्वारे में

हर कोई
भक्तों से
मिलने
बाहर को
आ जाता है

भक्तों
की हो रही
होती है पूजा

न्यूनतम
साझा कार्यक्रम
के बारे में

किसी
को भी
कुछ नहीं
बताया जाता है

चार दिन
शादी ब्याह
के बजते
ढोल नगाड़ों
के साथ

कितना भी
थिरक लो

उसके बाद

दूल्हा
अकेले दुल्हन के
साथ जाता है

तुझे
क्या करना है

इन
सब बातों से
बेवकूफ ‘उलूक’

तेरे पास
कोई
काम धाम
तो है नहीं

मुँह उठाये
कुछ भी
लिखने को
चला आता है ।

सोमवार, 5 मई 2014

चमक से बच चश्मा काला चाहे पड़ौसी से उधार माँग कर पास में रख

काँच के रंगीन
महीन टुकड़े
दिख रहे हैं
रोशनी को
बिखेरते हुऐ
चारों तरफ
इंद्रधनुष
बन रहे
हों जैसे
हर किसी
के लिये
अपने अपने
अलग अलग
टुकड़ा टुकड़ा
लालच का
लपकने के लिये
बिखर कर
फैल रही
चमक और रंगीन
रोशनी में थोड़ी देर
के लिये सही
आनंद तो है
हमेशा के लिये
मुट्ठी में बंद
कर लेने के लिये
आकर्षित कर रहे हैं
हीरे जैसे काँच
ये जानते बूझते हुऐ
रोशनी छिर जायेगी
उँगलियों के पोरों से
अंधेरे को छोड़ते हुऐ
हथेली के बीचों बीच
काँच के टुकड़े
घालय करेंगे
कुछ नाजुक पैर
रास्ते के बीच में
रहते हुऐ भी
हथेली में रख लेना
बिना भींचे उनको
महसूस नहीं
किया जायेगा
उनका स्पर्श
रिसना ही है
दो एक बूंद
लाल रँग
अंधेरी हथेली
के बीच से
अपनी तृष्णा
को साझा
कर लेने
का रिवाज
ही नहीं हो
जिस जगह
कोयले के
अथाह ढेर पर
बैठे अब
किसी और ने
बाँसुरी बजानी
शुरु कर दी है
हीरे पहले
कभी नहीं बने
अब बनेंगे
कोयले बता रहे हैं
ऐसा कहीं किसी
अखबार में
छपा था
किसी पेज में
अंदर की तरफ
‘उलूक’ उड़ के
निकल लेना
रास्ते के ऊपर
से बच कर
तेरे लिये यही
सबसे बेहतर
एक रास्ता है ।

रविवार, 4 मई 2014

बहुत पक्की वाली है और पक्का आ रही है

आसमान से
उतरी आज
फिर एक चिड़िया
चिड़िया से उतरी
एक सुंदर सी गुड़िया
पता चला बौलीवुड से
सीधे आ रही है
चुनाव के काम
में लगी हुई है
शूटिंग करने के लिये
इन दिनों और जगहों
पर आजकल नहीं
जा पा रही है
सर पर टोपियाँ
लगाये हुऐ एक भीड़
ऐसे समय के लिये
अलग तरीके की
बनाई जा रही है
जयजयकार करने
के लिये कार में
बैठ कर कार के
पीछे से सरकारी
नारे लगा रही है
जनता जो कल
उस तरफ गई थी
आज इसको देखने
के लिये भी
चली जा रही है
कैसे करे कोई
वोटों की गिनती
एक ही वोट
तीन चार जगहों
पर बार बार
गिनी जा रही है
टोपियाँ बदल रही है
परसों लाल थी
कल हरी हुई
आज के दिन सफेद
नजर आ रही है
लाठी लिये हुऐ
बुड़िया तीन दिन से
शहर के चक्कर
लगा रही है
परसों जलेबी थी हाथ में
कल आईसक्रीम दिखी
आज आटे की थैली
उठा कर रखवा रही है
काम पर नहीं
जा रहा है मजदूर
कई कई दिन से
दिखाई दे रहा है
शाम को गाँव को
वापस जाता हुआ
रोज नजर आ रहा है
बीमार हो क्या पता
शाम छोड़िये दिन में
भी टाँगे लड़खड़ा रही हैं
‘उलूक’ तुझे क्यों
लगाना है अपना
खाली दिमाग
ऐसी बातों में जो
किसी अखबार में
नहीं आ रही हैं
मस्त रहा कर
दो चार दिन की
बात ही तो है
उसके बाद सुना है
बहुत पक्की वाली
सरकार आ रही है ।

शनिवार, 3 मई 2014

सब पी रहे हों जिसको उसी के लिये तुझको जहर के ख्वाब आते हैं

रेगिस्तान की रेत के
बीच का कैक्टस
फूलोंं के बीज बेच रहा है

कैक्टस 
बहुत कम लोग पसंद करते हैं

कम से कम
वास्तु शास्त्री की बातों को
मानने वाले तो कतई नहीं

कुछ रखते हैं गमलों में
क्योंकि फैशन है रखने का

पर किंवदंतियों के भूत से भी
पीछा नहीं छुड़ा पाते हैं
गमले 
घर के पिछवाड़े रख कर आते हैं

कैक्टस के कांटे निकलने
का मौसम अभी नहीं है
आजकल उनमें फूल आते हैं

फूल के बीज बिक रहे हैं बेतहाशा भीड़ है

और भीड़ की
बस दो ही आँखें होती हैं
उनको कैक्टस से कोई मतलब नहीं होता है
उनके सपने में फूल ही फूल तो आते हैं

काँटो से लहूलुहान ऐसे लोग
भूखी बिल्ली की तरह होते हैं

जो बस दूध की फोटो देख कर ही तृप्त हो जाते हैं

इसी भूख को बेचना सिखाने वाले कैक्टस
उस मौसम में 
जब उनके काँटे गिर चुके होते हैं

और कुछ फूल
जो उनके बस फोड़े होते हैं 
सामने वाले को फूल जैसे ही नजर आते हैं

सारे फूलों को फूलों के बीज बेचना सिखाते हैं

फूल कैक्टस को महसूस नहीं करते हैं
उसके फूलों पर फिदा हो जाते हैं

और बेचना शुरु कर देते हैं कैक्टस के बीज

‘उलूक’
बहुत दूर तक देखना अच्छा नहीं है
कांटे तेरे दिमाग में भी हैं
जिनपर फूल कभी भी नहीं आते हैं

कैक्टस
इसी बात को बहुत सफाई के साथ
भुना ले जाते हैं

और यूँ ही खेल ही खेल में
सारे के सारे बीज बिक जाते हैं

देखना भर रह गया है
कितने बीजों से 
रक्तबीज फिर से उग कर आते हैं ।