ज़िंदगी
में
में
कितनी बार
मरे
कोई
कोई
बार बार
मर के
जिंदा
रहे
कोई
कोई
मरने के बाद
ज़न्नत की
बात करे
कोई
कोई
ज़न्नत
और
दोज़ख
ज़िंदा
ज़िंदा
रह कर
भोगे
कोई
कोई
मांगने
को
हिकारत से
देखे
कोई
कोई
फिर भी
ताज़िंदगी
मंगता रहे
कोई
कोई
एक
भिखारी
को कौड़ी
दे कर
कोई
कोई
कर्ण बनने
का दम
भरता
कोई
कोई
पैदा होते
दे दे
कहता
कोई
कोई
माँ बाप
बहन भाई
से
लेता
कोई
लेता
कोई
औरत बच्चे
झूठे सच्चे
से
मांगे
कोई
मांगे
कोई
मंदिर मस्जिद
चर्च गुरुद्वारा
झांके
कोई
कोई
बुड़ापे में जवानी
जवानी में रवानी
मांगे
कोई
कोई
मांगे मांगे
भिखारी
बन गया
कोई
कोई
फिर भी
भिखारी
को कौड़ी
दे कर
कोई
कोई
आता जाता
पीता खाता
खुशफहम
रहता कोई।
ye meri samajh se bahar he
जवाब देंहटाएंजैसा दीखा
जवाब देंहटाएंजैसा सोचा
वैसा ही
शब्दों में
उतार दिया।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार (06-08-2013) के "हकीकत से सामना" (मंगवारीय चर्चा-अंकः1329) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
फिर भी भिखारी
जवाब देंहटाएंको कौडी़
दे कर कोई
आता जाता
पीता खाता
खुशफहम
रहता कोई
कोई क्यूं हम सब इस खुश फहमी के शिकार हैं ।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 06 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहमेशा की भांति उत्कृष्ट रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआता जाता
जवाब देंहटाएंपीता खाता
खुशफहम
रहता कोई।
–उस कोई में शामिल हर कोई को सलाम... खुशफहम में जीना बड़ा कठिन काम है
–उम्दा लेखन
सुन्दर
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