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मंगलवार, 12 अगस्त 2025
जंगल की बात कर दिखा चारों तरफ सारा हरा हरा
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रविवार, 10 अगस्त 2025
पहुंचा कर महफ़िलों में बिना भूले कि प्रश्न पाठ्यक्रम से हटा दिए गए हैं
शुक्रवार, 8 अगस्त 2025
कह नहीं देना जरा सा भी मंजूरे खुदा होता है
मुंह में कुछ और होता है
उलटने में निकलता है जो
वो कुछ और होता है
जब जलता है कुछ हौले हौले अंदर कहीं
आग किसने लगायी है
आग कैसे लगायी है से क्या होता है
लौ होती नहीं है कोयला बनता नहीं है
राख उड़ती नहीं है
दियासलाईयां कागज पर कई
एक साथ लिखने से क्या होता है
ख़लिश को कसक कह लें
टीस कह लें या चुभन भी कह लें
तोहफा किस ने दिया है
सोच लेना ही बस जरूरी होता है
तंग नजर को चश्मे दिलाने की
सोचना किस लिए
आत्मघाती के लिए
मरने मारने का जज़्बा होना
जरूरी नहीं होता है
हजार आंखें देखेंगी
एक कबूतर बैठा हुआ मुंडेर पर
समझाएंगी तीतर बटेर कौआ
आंखे खोल कर देखने से भी क्या होता है
‘उलूक’ देखना तुझ को भी है
आंखें खुली भी रखनी है
कबूतर है सोच ही लेना खाली
कह नहीं देना जरा सा भी
मंजूरे खुदा होता है |
बुधवार, 6 अगस्त 2025
हर किसी को करना है बहुत कुछ ऐसा जो तेरे हिसाब का कुछ भी नहीं
बहुत कुछ बहुत संजीदा सा
मगर इस दुनियां का
उसमें कुछ भी नहीं
तुम्हारे खुद के प्रश्नों के हैं
और हैं भी सटीक
किसी के मतलब का
उसमें कुछ भी नहीं
सवाल नहीं पूछे हैं कभी भी
बस चल दी है
लाव लश्कर के साथ
अपने ही रास्ते
तेरा कुछ हुआ क्या
कुछ भी नहीं
किसने कह दिया तुझसे
सवाल होने जरूरी होते हैं
रहने भी दे
होना नहीं है कुछ
कुछ भी नहीं
कुछ करने वालों के
लक्षणों से मिलाए जाते हैं
जैसे कुण्डली के
कुछ गुण होते हैं
कुछ भी नहीं
और कुछ भी नहीं में
अंतर किसे समझाए कोई कुछ
समझदानी किसी की छोटी
किसी की बहुत बड़ी
किसी की कुछ भी नहीं
‘उलूक’ रहने क्यों नहीं देता है
सबको अपने अपने हिसाब से
जब हर किसी को करना है
बहुत कुछ ऐसा
जो तेरे हिसाब का
कुछ भी नहीं
सोमवार, 4 अगस्त 2025
फिलम साधू साधू -दो
कुछ नहीं हो सकता है कालिये
हजूर
एक साधू दिख रहा है
सामने से नजर आता है
कौन पढ़ने आता है कौन नहीं आता है
जय श्री राधे जय श्री कृष्णा
बकने से कौन सा बाज आ रहा है
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शनिवार, 2 अगस्त 2025
नागा बाबा होना साधू साधू से अच्छा होता है का मतलब समझ में आ जाता है
सारे साधू एक ही होते हैं
पता चल जाता है
एक साधू साधू की खबर
खुद अपने पैसे
दे कर
अखबार में छपवाता है
साधू साधू
किसलिए कहा जाता है
तब समझ में आता है
जब टाई
पहना हुआ एक साधू
सामने से आके
आपसे हाथ मिलाता है
और मुस्कुराता है
साधुओं से मिलकर
अंतरात्मा खुश ही नहीं तृप्त हो जाती है
साधू ही धर्म होता है
साधू ही जाति होती है
साधू ही मानवता होती है
साधू ही कृष्ण साधू ही राम हो जाता है
सबसे बड़ा साधू
आपके आस
पास ही होता है
साधू साधू खेलता है
आपको पता ही नहीं चल पाता है
हम सब कितने भ्रमित होते हैं
कहां जा रहे होते हैं
क्या कर रहे होते हैं
साधू हमें भटकने से बचाता है
समय बदल गया है
साधू
इसे भी समझाता है
साधू साधू जपिए
फायदे गिनाता
है
साधू की एक मुहिम होती है
कुछ भी कर ले जाने के लिए
किसी भी एक साधू को
तीर बनाता
है
एक साधू धनुष हो जाता है
एक साधू अर्जुन हो जाता है
एक साधू मछली की आंख हो जाता
है
साधू साधू है
सभी साधुओं के लिए
‘उलूक’ को गर्व है
कलयुगी ऐसे सारे साधुओं में
उसे
नागा बाबा होना
साधू साधू से अच्छा होता है
का मतलब समझ में आ जाता है |
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गुरुवार, 31 जुलाई 2025
नमी का धुआं धुआं सा हुआ है जैसे भी हुआ है
सूखी कलम से
न जाने ऐसा क्या हुआ है
रेत के सन्नाटे ने भी करवट ली है
कुछ धूल सी उड़ी है
ऐसा क्यों हुआ है
हुआं हुआं बरसों हो गए हैं सुने
शहर के जंगलों में फिर कुछ हुआ है
कितना हुआ है
कागज में चले हैं आभास कुछ हुआ है
खाली बोतलों ने कुछ कहा है
कैसे कुछ हुआ है
पागल हो चुका है कोई
पागलपन नापने का थर्मामीटर
कहीं कल ईजाद ही हुआ है
टपकेगा आसमान से पानी सुना है
अभी बादलों के बीच में
कोई समझौता हुआ है
कहां पर हुआ है
पन्ने भरें हैं लिखे हुए से
पढ़ दी गई हैं किताबें सारी
फिर से लिखने को कहा है
किसने कहा है किससे कहा है
किसका लिखना अपना सा हुआ है
चू लेता है ‘उलूक’ भी
यूं ही घिसते घिसते
कहीं किसी छिद्र से गीला भी हुआ है
नमी का धुआं
धुआं सा हुआ है जैसे भी हुआ है |
मंगलवार, 29 जुलाई 2025
मगर आज गांधी खुद अपनी ही लकड़ी लेकर भी खड़ा हो नहीं पाता है
और वो पसर भी जाता है
कोई ढूंढे मशाल ले कर के इंसान
मगर दूर तक नजर नहीं आता है
बड़ी शिद्दत से लिख कर
शब्दों में आईने उतार लाता है
अफसोस उसका खुद का चेहरा
कलम की रोशनाई में डूबा रह जाता है
दर्द गम खुशी सब होते हैं
लबालब भी होते हैं और छलकते भी हैं
अपने हिसाब से समय देखकर
लिखने वाले के बटुवे में
आंख कान मुंह ही केवल
और केवल बंद नजर आता है
पढ़ते समय वो अपने साथ ले ही आता है
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान
गाने के बोल लब से फिसलते हैं मगर
आज गांधी खुद अपनी ही लकड़ी लेकर भी
खड़ा हो नहीं पाता है
इतनी बेशर्मी भी अच्छी नहीं ‘उलूक’
जब समझना सब कुछ के बाद भी
नासमझी से
झूठ की वैतरणी को पार किया जाता है |
रविवार, 27 जुलाई 2025
चिट्ठों और चिट्ठाकारों का क्या होगा
बुधवार, 23 जुलाई 2025
हरी बूंद सावन के अंधे को ललचाती है
मन भरता जाता है
इतना भरता है कि बहने लगता है हरा हरा
समझ में नहीं आ रही है लकीर कहता हुआ
शनिवार, 19 जुलाई 2025
शेख ही जब गुबार हो गया है
बुधवार, 9 जुलाई 2025
छील कुछ दिखा कुछ हाथी के ही सही
चोंच लड़ाना भी गणित ही है
वो बात अलग है
गुरुवार, 26 जून 2025
शुभकामनाएं जन्मदिन की पाँच लिंक्स
शनिवार, 11 जनवरी 2025
जद्दोजहद होने ना होने के बीच
नहीं होने से होने तक पहुंचना
ये किसी ने कभी नहीं बताया
धन्यवाद दिया उसे
सभी पर लागू हो ये जरूरी है या नहीं
ये किस से पूछा जाए
किसी और के लिए भी होना ही हो
या एंवें ही कुछ भी
खयाली पुलाव
ना शरम ना लिहाज
जिंदगी किस मोड़ पर
कहां ले जा कर पटक देगी
तो अब तक कई किस्म के
हेलमेट बाजार में आ चुके होते
धड़ाधड़ बिकवाली
और पड़ोसन जल रही होती
सभी चोटी दिखाते हैं
सारे गुरु घण्टाल समझाते हैं
पहुंचते पहुंचते समय पूरा हो गया की घंटी
सुनाई देना शुरू हो जाती है
ऊपर से रास्ते की ठोकरें
कहां बाज आया जाता है
एक नहीं हजार मिलते हैं
आउट होते समय भी
अंततः हो जाना बहुत बड़ी बात है
हमारे होने ना होने के
बीच का अगर कुछ है
आप के पास
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