उलूक टाइम्स: दिसंबर 2016

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

आओ खेलें झूठ सच खेलना भी कोई खेलना है



प्रतियोगिता झूठ बोलने की ही हो रही है
हर तरफ आज के दिन पूरे देश में
किसी एक झूठे के बड़े झूठ ने ही जीतना है

झूठों में सबसे बड़े झूठे को मिलना है ईनाम
किसी नामी बेनामी झूठे ने ही
खुश हो कर अन्त में उछलना है कूदना है

झूठे ने ही देना है झूठे को सम्मान
सारे झूठे नियम बन चुके हैं
झूठे सब कुछ झूठ पर पारित कर चुके हैं
झूठों की सभा में
उस पर जो भी बोलना है जहाँ बोलना है
किसी झूठे को ही बोलना है

सामने से होता हुआ नजर आ रहा है
जो कुछ भी कहीं पर भी
वो सब बिल्कुल भी नहीं देखना है
उस पर कुछ भी नहीं कुछ बोलना है

झूठ देखने से नहीं दिखता है
इसलिये किसलिये
आँख को अपनी किसी ने क्यों खोलना है
झूठ के खेल को पूरा होने तक खेलना है

झूठ ने ही बस स्वतंत्र रहना है
झूठ पकड़ने वालों पर रखनी हैं निगाहें
हरकत करने से पहले उनको
पकड़ पकड़ उसी समय
झूठों ने साथ मिलकर पेलना है

जिसे खेलना है झूठ
उसे ही झूठ के खेल पर करनी है टीका टिप्पणी
झूठों के झूठ को झूठ ने ही झेलना है

‘उलूक’ तेरे पेट में होती ही रहती है मरोड़
कभी भरे होने से कभी खाली होने से
लगा क्यों नहीं लेता है दाँव
ईनाम लेने के लिये झूठ मूठ में ही
कह कर बस कि
पूरा कर दिया तूने भी कोटा झूठ बोलने का
हमेशा सच बोलना भी कोई बोलना है ।

चित्र साभार: www.clipartkid.com

सोमवार, 26 दिसंबर 2016

पीटना हो किसी बड़ी सोच को आसानी से एक छोटी सोच वालों का एक बड़ा गिरोह बनाया जाता है

बड़ी सोच का
बड़ा कबीर
खुद को दिखा
दिखा कर ही
बड़ा फकीर
हुआ जाता है


छोटी सोच
बता कर
प्रतिद्वन्दी की
अपने जैसों
के गिरोह के
गिरोहबाजों
को समझाकर
आज किसी
की भी एक बड़ी
लकीर को
बेरहमी के साथ
खुले आम
पीटा जाता है

लकीर का
फकीर होना
खुद का
फकीर को
भी बहुत
अच्छी तरह
से समझ
में आता है

फकीर को
लकीर अगर
कोई समझा
पाता है तो
बस कबीर
ही समझा
पाता है

जरूरी नहीं
होता है तीखा
होना अँगुलियों
के नाखूँनो का
किसी की सोच
को खुरचने के लिये

खून भी आता है
लाल भी होता है
सोच समझ कर
योजना बना कर
अगर हाँका
लगाया जाता है

अकेले ज्यादा
सोचना ही
किसी का
कभी उसी
की सोच
को खा जाता है


बोलने के लिये
अकेले आता है
लेकिन
रोज का रोज
समझाया जाता है

इशारों में भी
बताया जाता है
किताबों खोल कर
पढ़ाया जाता है


एक आदमी
का बोलना
लिखने के लिये
एक दर्जन
दिमागों को
काम में
लगाया
जाता है

छोटी सोच
बताने को
इसी लिये
कोई ना कोई
फकीर कबीर
हो जाता है

बड़ी सोच में
लोच लिये ऐसे
ही फकीर को
बैचेनियाँ
खरीदना
खोदना और
बेचना आता है

आसान होता है
किसी की सोच
के ऊपर चढ़ जाना
उसे नेस्तनाबूत
करने के लिये

एक गिरोह
की सोच
का सहारा
लेकर
किसी भी
सोच का
दिवाला
निकाला
जाता है

जरूरी होता है
दबंगों की सोच
का दबंग होना
दबंगई
समझाने के लिये

अकेले
चने की
भाड़ नहीं
फोड़ सकने
की कहानी
का सार
समझ में
देर से
ही सही
मगर कभी
आता है

‘उलूक’
ठहर जाता है
आजकल
पढ़ते समझते
गोडसे सोचों
की गाँधीगिरी

लिखा लिखाया
खुद के लिये
उसका खुद
के पास ही
छूट जाता है

समझ जाता है
पीटना हो किसी
बड़ी सोच को
आसानी से

एक छोटी
सोच वालों
का एक
बड़ा गिरोह
बनाया जाता है ।

चित्र साभार: Clipart Panda

मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

‘उलूक’ गुंडा भी सत्य है और सत्य है उसकी गुंडई भी भटक मत लिख

गुंडे की
गुंडई
होनी ही
चाहिये
अब गुंडा
गुंडई
नहीं
करेगा
तो क्या
भजन
करेगा

वैसे ऐसा
कहना भी
ठीक नहीं है

गुंडे भजन
भी किया
करते हैं

बहुत
से गुंडे
बहुत
अच्छा
गाते हैं

कुछ गुंडे
कवि भी
होते हैं

कविता
करना
और
कवि होना
दोनो
अलग
अलग
बात हैंं

गुंडई
कुछ
अलग
किस्म
की
कविता है

गुंडई
के गीतों
की
धुनें भी
होती हैं
महसूस
भी
होती हैं
कपकपाती
भी हैं

बातें
सब ही
करते हैं

गुंडई का
प्रतिकार
करना भी
जरूरी
नहीं है

क्यों किया
जाये
प्रतिकार भी

जब बात
करने से
काम
निपट
जाता है

गुंडे
पालना
भी एक
कला
होती है

गुंडा नहीं
होने का
प्रमाणपत्र
होना और
गुंडो का
सरदार
होना

एक
गजब
की कला
नहीं
है क्या ?

अखबार
के पन्नों
पर गुंडों
की खबरें
भरत नाट्यम
करती हैं

पता नहीं

पूजा
मंदिर
भगवान
और
गुंडे
कुछ कुछ
ऐसा
जैसे
औड मैन
आउट
करने
का
सवाल

किसे
निकालेंगे ?

सनक की
क्या करे
कोई
किसी की
उस पर
खाली
गोबर सना
गोबर भरा
‘उलूक’
हो अगर

भटक
जाता है
कई बार
कोई
शरमाकर

गुंडो
और
उनकी
गुंडई
पर नहीं
उनके
रामायण
बांंचने की
तारीफ करते
हुए लोगों के
उपदेशों पर

लिखना
इसलिये
भी
जरूरी है
क्योंकि
गुंडा
और
गुंडई
खतरनाक
नहीं
होते हैंं

खतरनाक
होते हैं
वो सारे
समाज के
लोग जो
मास्टर
नहीं होते हैं
पर शुरु
कर देते हैं
हेड मास्टरी
समझाने
और
पढ़ाने को
गुंडई
समाज को।

चित्र साभार: http://i.imgur.com/iWre2oh.jpg

गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

आओ धमकायें नया उद्योग लगायें

नये
जमाने
के साथ
बदलना
सीखें

कुछ
उद्योग
धन्धे नये
धन्धों से
अलग
खींच कर

धन्धों के
खेत में
खींच
तान कर
अकलमंदी के
डंडे से सींचें
पनपायें

आओ
धमकायें

धमकाने के
धन्धे से
किसी की
किस्मत
चमकायें

आओ बुद्ध
बन जायें
ऊपर कहीं
बैठ कर
ऊँचाई
अपनी
लोगों को
समझायें

नये नये
उद्योगों
की
लम्बी
लम्बी
कतारें
लगायें

आओ
पीछे कहीं
खड़े खड़े
आगे
चल रहे
को
गलियाएं

आओ
लोगों का
बोलना
बन्द
करवायें

बोलती
बन्द करने
की मशीनें
ईजाद करें
देश आगे
ले जायें

अपना
मुँह खोलें
दांत दिखायें
ना देखना
चाहे कोई
काट खायें

आओ
कटखन्ने
हो जायें
काट खाने
के तरीके
समझें
समझायें

नये नये
काटखाने के
उपकरण
तैयार करें
कटखन्ने
उद्योग
उगायें

आओ
सीखें
सिखाने
वालों से
उनके
समझे
बूझे को

‘उलूक’
की तरह
बकवास
कर कर
लोगों को
ना पकायें

आओ
नये जमाने
के
नये लोगों
के नये
ज्ञान का
लाभ उठायेंं

आओ
खुद के
लिये नहीं
किसी
के लिये
लोगों को
धमकायें
धमकाने के
उद्योग
फलें फूलें
राग धमकी
में ढले
गीत गायें ।

चित्र साभार: WorldArtsMe

बुधवार, 14 दिसंबर 2016

करने वालों को लात नहीं करने वालों के साथ बात सिद्धान्ततह ही हो रहा होता है

बेवकूफों
की
दिवाली

समझदारों
की
अमावस
काली

बाकी
लेना देना
अपनी
जगह पर

होना
ना होना
होने
ना होने
की
जगह पर
पहले
जैसा ही
होना
होता है
हो रहा
होता है

अवसरवाद
को
छोड़ कर
कोई भी वाद
वाद नहीं
होता है
किसे
इस बात
से मतलब
हो रहा
होता है

किसे
समझाये
आदमी
इस
बात को
जहाँ
आदमी ही
आदमी को
खुद
खुरचता
और
खुद ही
रो रहा
होता है

पानी नहीं
होता है
फिर भी
कोई भी
किसी
को भी
खुले आम
धो रहा
होता है

सारे
हम्माम
बुला रहे
होते हैं
सब कुछ
उतारे
हुओं
को ही
फिर
किस लिये
कोई
उतारा हुआ
कुछ
ओढ़ कर
उधर
घुसने
के लिये
रो रहा
होता है

पढ़ने
पढा‌ने में
किस लिये
लगे हुए हैं
नासमझ लोग

जब
समझदार
कभी भी
नहीं
पढ़ाने वाला
पढा‌ई लिखाई
कराने वालों
की लाईन
बनाने के
लिये लाईने
बो रहा होता है

केवल एक
दो हजार
के नोट
को
निकालने
में लग
रहे होते
हैं जहाँ
सारे
समझदार लोग

लाईन लगा
कर एक
बेवकूफ
ही होता
है जो
हजारों
दो हजार
के नोटों की
लाईन
पर लाईन
अपने घर पर
कहीं लगा कर
सो रहा होता है

समझने
में लगा है
देश
समझदारी
समझदार की
जो हो
रहा होता है
वो हो
रहा होता है

कोई
नया भी नहीं
हो रहा होता है
घर मोहल्ले में
हर दिन
हर समय
हो रहा होता है
चोर के
हाथ में
चाबियाँ
खजानों
की दिख
रही होती हैं

अंधा ‘उलूक’
अलीबाबा के
खुल जा
सिमसिम
मंत्र को
कागज में
लिख लिख
कर कहीं
बिना बताये
जमीन में
बो रहा
होता है

रोना बन्द
हो रहा
होता है
सभी रोने
वालों का
छातियाँ पीटने
वालों का
काला सोना
सफेद ‘सोना’
हो रहा होता है

क्रांतिकारियों
के चित्र और
कहानियों का
उजाला लिये
हाथ में
सर पीटता
अँधेरा कहीं
कोने में रो
रहा होता है ।

चित्र साभार: Dragon Alley Journals - WordPress.com

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

बेवकूफ हैं तो प्रश्न हैं उसी तरह जैसे गरीब है तो गरीबी है



जब भी कहीं कोई प्रश्न उठता है 
कोई ना कोई 
कुछ ना कुछ कहता है 

प्रश्न तभी उठता है 
जब उत्तर नहीं मिलता है 

एक ही विषय होता है 
सब के प्रश्न
अलग अलग होते हैंं 

होशियार के प्रश्न 
होशियार प्रश्न होते हैंं 
और 
बेवकूफ के प्रश्न 
बेवकूफ प्रश्न होते हैं 

होशियार 
वैसे प्रश्न नहीं करते हैं 
बस प्रश्नों के उत्तर देते हैं 

बेवकूफ 
प्रश्न करते हैं 
फिर उत्तर भी पूछते हैं 
मिले हुऐ उत्तर को 
जरा सा भी नहीं समझते है 

समझ गये हैं 
जैसे कुछ का 
अभिनय करते हैं 
बहस नहीं करते हैं 

मिले हुए उत्तर के चारों ओर 
बस सर पर हाथ रखे 
परिक्रमा करते हैं 

समय भी प्रश्न करता है समय से 
समय ही उत्तर देता है समय को 

समय होशियार और बेवकूफ नहीं होता है 
समय प्रश्नों को रेत पर बिखेर देता है 

बहुत सारे 
रेत पर बिखरे हुऐ प्रश्न 
इतिहास बना देते हैं 

रेत पानी में बह जाती है 
रेत हवा में उड़ जाती है 
रेत में बने महल ढह जाते हैं 
रेत में बिखरे रेतीले प्रश्न 
प्रश्नों से ही उलझ जाते हैं 

कुछ लोग 
प्रश्न करना पसन्द करते हैं 
कुछ लोग उत्तर के डिब्बे 
बन्द करा करते हैं 

बेवकूफ 
‘उलूक’ 
की आदत है जुगाली करना 
बैठ कर कहीं ठूंठ पर 
उजड़े चमन की 
जहाँ हर तरफ उत्तर देने वाले 
होशियार 
होशियारों की टीम बना कर 
होशियारों के लिये 
खेतों में हरे हरे 
उत्तर उगाते हैं 

दिमाग लगाने की ज्यादा जरूरत नहीं है 
देखते रहिये तमाशे 
होशियार बाजीगरों के
घर में बैठे बैठे 

बेवकूफों के खाली दिमाग में उठे प्रश्न 
होशियारों के उत्तरों का कभी भी 
मुकाबला नहीं करते हैं । 

चित्र साभार: Fools Rush In

शनिवार, 3 दिसंबर 2016

हर तरफ फकीर हैं फकीर ही फकीर

अचानक

सामने से
आ पड़ा

अभी आज

पता नहीं
कहाँ से

शब्द
फकीर

अब
आ ही
बैठा
फकीर

तो
आ बैठा

जब तक
फकीर से
बैठने की
गुजारिश
करता

चाय नाश्ते
पानी की
पेशकश
करता

अपने
आस पास
के सारे

फकीर
आ गये

घूमना
शुरु
हो गये

सामने से
पर्दे में

और

दिखा

सूट में
चमचमाता

फकीर

दिखा

हैलीकौप्टर
में आता जाता 


फकीर

दिखा

सीटी
बजाता 


फकीर

दिखा

भजन
गुनगुनाता

फकीर

दिखा

राकेट 
हो जाता 

फकीर

दिखा

गंगा 
धोने जाता 

फकीर

दिखा

चुनाव
जीत जाता

फकीर

दिखा

संसद में
बैठने आता

फकीर

दिखा

भाषण
फोड़ जाता

फकीर

दिखा

हर तरफ
हर आदमी
हो जाता 

फकीर

दिखा

घर में
मोहल्ले में
शहर में
जिले में
राज्य में

अपनी
जगह
बनाता

फकीर

दिखा

स्कूल में
कालेज में
पढ़ाता

फकीर

दिखा

परीक्षाएं
करवाता

फकीर

दिखा

विश्वविद्यालय
चलाता

फकीर

दिखा

नेता
बनाता

फकीर

दिखा

अस्पताल में
दवा दारू
दिलवाता 


फकीर

दिखा

न्याय
दिलवाता

फकीर

दिखा

इज्जत
बचवाता

फकीर

दिखा

चोर
पकड़वाता

फकीर

दिखा

सजा
दिलवाता

फकीर

दिखा

नोट
बदलवाता

फकीर

दिखा

हर तरफ

फकीर

और
फकीर

दिखा

फकीरी
सिखलाता

फकीर

बस कर

‘उलूक’
रुक भी जा
मत देख

फकीर
दर
फकीर

फकीरों
के देश में

खुश
रह कर
हमेशा
की तरह
बैठ कर
पीटता
चला चल

अपनी
लकीर
दर
लकीर ।

चित्र साभार : Kids Coloring Book