उलूक टाइम्स: 2024

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

खा गालियाँ गिन नाले बनते बड़े छोटी होती नालियों से क्या उलझना

 

१९४७ और उससे पहले का देखा नहीं कुछ भी कही
बस कुछ पढ़ा कुछ सुना
किससे सुना ये ही मत पूछ बैठना
दिखा बना बैठा कुछ तुनतुना कुछ भुनभुना

नहीं देखा ना सुना जैसा है आसपास अभी अपने
तू गीत तरन्नुम में गा गुनगुना
लिखे में तेरे दिख रहा है साफ़ साफ़
कहीं तो बटा है और इफरात में झुनझुना

शब्द आते हैं जुबां तक बहुत ही सड़े गले
सारे रोक ले कुछ भी मत सुना
निगल ले गरल बन शिव कर तांडव घर के अन्दर
बस बाहर ना निकलना

कुत्ते को सिखा योग और आसन
खुद सीख ले कुछ काटना कुछ भौंकना
भगवान में ढूंढ थोड़ा सा आदमी और सीख ले
आदमी में भगवान को चेपना

‘उलूक’ हो जो भी दिखा कुछ और ही
सबसे बड़ा है आज का लपेटना
खा गालियाँ गिन नाले बनते बड़े
छोटी होती नालियों से क्या उलझना

चित्र साभार: https://www.alamy.com/

शनिवार, 20 अप्रैल 2024

शाबाश है ‘उलूक’ खबरची की खबर पर वाह कह के मगर जरूर आता है

 

किससे कहें क्या कहें
यहाँ तो कुछ भी समझ में ही नहीं आता है
ढूंढना शुरू करते हैं
जहां कोई भी अपना जैसा नजर नहीं आता है

सोच में तेरी ही कुछ खोट है ऐसा कुछ लगता है
सबका तुझे टेढ़ा देखना बताता है
सामने वाला हर एक सोचता है अपनी सोच
तुझे छोड़ हर कोई तालियाँ बजाता है  

मतदान करने की बातें सब ने की बहुत की
वोट देने की शपथ लेना दिखाता है
लोग घर से ही नहीं निकले जुखाम हो गया था
ऐसे में वोट देने कौन जाता है

परिवार के लोग ही नहीं दिखे
व्यस्त होंगे प्रचार में कहीं
अपना क्या जाता है
मतदान करवाने वालों की मजबूरी थी
कहना ही था ये भी आता है वो भी आता है

खबर मेरी थी मैंने बुलाये थे मीडिया वाले
चाय नाश्ता कराने में क्या जाता  है
छपा बहुत कुछ था घर की फोटो के साथ था
बस मैं ही नहीं था तो क्या हो जाता है

खबर देते हैं
जाने माने खबरची दुनिया जहां की
अपने घर में बैठ कर समझ में आता है

 वाह रे ‘उलूक’
तेरे घर तेरे शहर में हो रहे को तू देखता है
और अपना मुंह छुपाता है

 शाबाश है खबरचियों की ओर से
खबरची की खबर पर
वाह कह के मगर जरूर आता है

चित्र साभार: https://www.istockphoto.com/

रविवार, 14 अप्रैल 2024

इस बार करनी है आत्महत्या या रुक लें पांच और साल या देखना है अभी भी कोई पागल पागल खेलता हुआ पागल हो गया होगा

 

नाकारा होगा तू खुद तुझे पता नहीं होगा
नक्कारखाना कहता है जिसे तू
वहां तूती बजाना तेरे लिए ही आसान होगा

अब तक तो निगल लेनी चाहिये थी
तुझे भी गले में फंसी हड्डियां
तुझ सा बेवकूफ यहाँ नहीं होगा तो कहां होगा

सोच ले सपने में भी हर कोई जहां
किसी बीन की आवाज के बिना भी
कदम ताल कर रहा होगा

शर्म तुझे आनी चाहिए वहां
किसलिए अपने आसपास के लेनदेन को
रोज खुली आँखों से तू क्यों देखता होगा

पढ़ने वाले तेरे लिखे को पढ़े लिखे ही होते होंगे  
उन्हें भी सारा सब कुछ सही समय पर
मालूम होता ही होगा

रेंकता रह गधा बन कर
दिखाने के लिए गधे चारों और के अपने
गधा भी इस सब के लिए कुछ तो कर रहा होगा

और 

खुदा भी जब जमीं पर आसमां से देखता होगा
इस गधे को इतना गधा किसने बनाया सोचता होगा

इक गधा इतनी आसानी से
इक इशारे के साथ घोड़ों को घसीटता
 शेर्रों को कुत्ता बना कर लपेटता होगा

‘उलूक’ लिखता होगा पागलों की किताबें
पागलों के जंगल में बैठ कर
पाठ्यक्रम 
अम्बेडकर ने भी तो सोच कर ही दिया होगा

इस बार करनी है आत्महत्या 
या रुक लें पांच और साल
या देखना है अभी भी
कि कोई पागल पागल खेलता हुआ
पागल हो गया होगा | 

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/

गुरुवार, 11 अप्रैल 2024

इंतज़ार है है मर्यादा पुरुषोत्तम दिखेगा राम नाम सत्य ज़ुबानी ज़ुबानी

 

कुछ बिल्लियाँ बिल्ले की खरीदी 
कुछ बिल्लियाँ खिसियानी
कुछ करेंगी दीवाली 
कुछ नोचेंगी खम्बे याद करेंगी फिर नानी

शातिर बिल्ला लगा हुआ है 
बाँट रहा है जगह जगह चूहेदानी
सभा कर रहा चूहों की 
जा जा कर बिलों में उनके अभिमानी

अब तो लिख दे लिखने वाले कविता उसपर 
ओ उसकी दीवानी
हम भी लिखेंगे कुछ ना कुछ 
कलम पकड़ कर क्यों है छुपानी

जग जाहिर है बिल्ला नहीं पकड़ रहा है चूहे 
चूहे करते हैं बेइमानी
लगी हुई है खरीदी बिल्लियों की फ़ौज 
कर रही है अपनी मनमानी

शब्द कई हैं बिल्ले पर कहने 
एक नहीं सारे हैं गालियों में नहीं गिनानी
खड़े हो जायेंगे सारे सफेदपोश फर्जी 
समझायेंगे कोर्ट कचहरी दीवानी

‘उलूक’ लिख आईना-ए-लेखक 
देख सकें लिखने वाले सच की कहानी
इंतज़ार है 
है मर्यादा पुरुषोत्तम 
दिखेगा राम नाम सत्य ज़ुबानी ज़ुबानी |

चित्र साभार: https://www.yourquote.in/

सोमवार, 8 अप्रैल 2024

‘उलूक’ थे और वो थे बस कुछ बेवकूफों में गिने जाते थे मगर मशहूर थे

 

किताबें तो एक सी थी लिखा भी एक सा था
शायद पढ़ाने वाले ही कुछ और थे
लिखे हुए पन्नो पर हस्ताक्षर थे एक समय के ही थे
घड़ी पहने लोग कोई और थे

सिहासन नहीं था कहीं भी ना ही था राजा कहीं
समझाने वाले थे मगर कहीं और थे
समझ अपनी थी अपनी उनकी समझ उनकी ही थी
और थे कुछ चोर मगर चोर थे

हम भी देखते थे चोर थे वो भी देखते थे चोर थे
चोर ही थे मगर जो सच में चोर थे
चोर कहाँ चोर होते थे जहां सब तरफ सुने थे बस मोर थे
मोर थे हर तरफ बस मोर थे

चोर थे ही जरूरत बन चुकी थी इस तरफ थे बेकार थे
उस तरफ आये इक शोर थे
चोर होना ही जरूरी था जो नहीं हो पा रहे थे
सच में बेचारे थे बहुत ही कमजोर थे

चोर होना था यही सन्देश होना था मशहूर होना था
नहीं कहना था बस मजबूर थे
‘उलूक’ की किताबें थीं बंद थीं दिमाग था मगर बस था
वो कुछ  बेवकूफों में गिने जाते थे मगर मशहूर थे |

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

अवतार है इक चुनाव मैदान में ब्रह्मा विष्णु महेश को कौन बताएगा

 

ये अध्याय बाद में कभी ग्रन्थ में जोड़ा जाएगा
भगवान ने लीला की थी इतिहास ये बताएगा
किये होंगे युद्ध रामायण और गीता में कभी
एक अवतार चुनाव से कलियुग में सब निपटायेगा

गीता और मानस पुरानी कहानी हो गयी है
आगे बातों बातों में बस बातों का जिक्र आयेगा
भगवान कृष्ण ने शंख फूँका होगा मैदान में
अभी तो बिगुल बजा है कहने से काम हो जाएगा

पढ़ा लिखा एक बेवकूफ है ‘उलूक’ ही है केवल
उसको पता है और समझ में भी आ गया है उसके
उसने पढ़ा ही नहीं ना ही लिखा कहा वो जाएगा
भीड़ का उन्माद दिखता नहीं जिसे ज़रा सा भी
कैसे उस की बात पर कोई ध्यान दे पायेगा

राम त्रेता युग में रहे और कृष्ण द्वापरयुग में रहे
तुलसी ने लिखा कुछ भी कैसे मान लिया जाएगा
व्यास ने भी लिखा था कुछ अंड बंड
नहीं था मगर ऐसा समय पर बताया जाएगा

कविता बहुत लिख रहे कवि भी हैं अद्भुद है यहां पर
चिट्ठे खुल के लिख रहे हैं मौसम और बारिश भी
पुलिस चोरों के साथ दिख रही है कौन कह पायेगा
एक जज इस्तीफा देगा और चुनाव लड़ने चले जाएगा

जो हो रहा है बहुत अच्छा हो रहा है
जो होगा अच्छा होगा ही कहा जाएगा
मत देने जाना है सभी को
मत कहां जा कर गिरेगा पता चल जाएगा
लोकतन्त्र है बहुत मजबूत भी है
चिंता किसी को हो ना हो क्या फर्क पड़ता है
लेकिन डरपोक का डर
इतिहास में पक्का दर्ज किया जाएगा |

 चित्र साभार: https://pngtree.com/



रविवार, 31 मार्च 2024

ईश्वर है है ईश्वर मंदिर मूरत छोड़ कर आज वो एक नश्वर हो गया है


सारी किताबें खुली हुई हैं
स्वयं बताएं खुद अपना पन्ने को पन्ने
शक्कर देख रही कहीं दूर से
लड़ते सूखे सारे गन्नों से गन्ने

सच है सारा पसर गया है
झूठ बेचारा यतीम हो गया है
बता गया है बगल गली का
एक लंबा लंबा सा नन्हे

चश्मा लाठी धोती पीटे सर अपना ही
एक चलन हो गया है
बुड्ढा सैंतालिस से पहले का एक
आज बदचलन हो गया है

बन्दर सारे ही सब खोल कर बैठे हैं
अपना सारा ही सब कुछ
आँख नहीं है कान नहीं है
मुंह पर भी अब कपड़ा भींचे सारे बन्ने

आँखे दो दो ही सबकी आँखें
कौआ ना अब वो कबूतर हो गया है
मत लिख मत कह अपनी कुछ
उससे पूछ जो तर बतर हो गया है

ईश्वर है है ईश्वर मंदिर मूरत छोड़ कर
आज वो एक नश्वर हो गया है
नश्वर है ईश्वर ईश्वर है नश्वर ‘उलूक’
कर कोशिश लग ले ईश्वर कुछ जनने


चित्र साभार: https://pngtree.com/


 

शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2024

‘उलूक’ अच्छा है रात के अँधेरे में देखना दिन में रोशनी को पीटने से

 

सारी खिडकियों पर परदे खींच लेना
और देख लेना
कहीं किसी झिर्री से
घुसने की कोशिश ना कर रही हो रोशनी

फिर इत्मीनान से बैठ कर
उजाले पर एक कविता लिखना

लिखना
बंद कर के किताबें सारी
कोई एक किताब

जिसके सारे पन्नो पर लिखा हो हिसाब
हिसाब ऐसा नहीं
जिसे समझना हो किसी को
हिसाब ऐसा ना हो
जिससे पता चल रहा हो
खर्च किये गए रुपिये पैसे
या हिसाब
किसी रेजगारी को नोटों में बदलने का

वो सब लिख देना
जिसे किसी ने कहीं भी
नजरअंदाज कर देना हो पढ़ लेने से

साथ में लिखना 
कुछ प्रश्न खुद से पूछे गए
जिसका उत्तर पता नहीं हो किसी को भी

ऐसी सभी बातें 
नोट कर लेना किसी नोट बुक में
और जमा करते चले जाना

सूरज पर लिखना चाँद पर लिखना
तारों और गुलाब पर लिखना
नशे पर लिखना शराब पर लिखना

खबरदार
वो कुछ भी कहीं मत लिखना
जो हो रहा हो तेरे आसपास
तेरे घर में तेरे पड़ोस में
तेरे शहर में तेरे जिले में तेरे प्रदेश में
और तेरे बहुत बड़े से
रोज का रोज और बड़े हो रहे देश में

रोज लिखना 
लाल गुलाब हरे पेड़ सुनहरे सपने
या
कुछ गुलाबजामुन
या
कुछ भी ऐसा
जो भटका सके लिखने को
लेखकों को 
और छापने वालों को
उस सब पर
जो लिखा हुआ हो इधर उधर किधर किधर
गली गली शहर शहर

‘उलूक’ रातें अच्छी होती हैं
और वो आँखें भी
जो रात के अन्धेरें में
कोशिश करती है देखने की रोशनी
उन सब से
जो दिन के उजाले में रोशनी पीटते हैं |

चित्र साभार:  https://www.gettyimages.in/


रविवार, 21 जनवरी 2024

कभी भेड़ों में शामिल हो कर के देख कैसे करता है कुत्ता रखवाली बन कर नबी

शीशे के घर में बैठ कर
आसान है बयां करना उस पार का धुंआ
खुद में लगी आग
कहां नजर आती है आईने के सामने भी तभी

बेफ़िक्र लिखता है
सारे शहर के घोड़ों के खुरों के निशां लाजवाब
अपनी फटी आंते और खून से सनी सोच
खोदनी भी क्यों है कभी

हर जर्रा सुकूं है
महसूस करने की जरूरत है लिखा है किताब में भी
सब कुछ ला कर बिखेर दे सड़क में
गली के उठा कर हिजाब सभी

पलकें ही बंद नहीं होती हैं कभी
पर्दा उठा रहता हैं हमेशा आँखों से
रात के अँधेरे में से अँधेरा भी छान लेता है
क़यामत है आज का कवि 

कौन अपनी लिखे बिवाइयां
और आंखिर लिखे भी क्यों बतानी क्यों है
सारी दुनियां के फटे में टांग अड़ा कर
और फाड़ बने एक कहानी अभी

‘उलूक’ तूने करनी है बस बकवास
और बकवास इतिहास नहीं होता है कभी
कभी भेड़ों में शामिल हो कर के देख
कैसे करता है कुत्ता रखवाली बन कर नबी 

नबी = ईश्वर का गुणगान करनेवाला, ईश्वर की शिक्षा तथा उसके आदेर्शों का उद्घोषक।
चित्र साभार: https://www.istockphoto.com/

गुरुवार, 18 जनवरी 2024

कितना बहकेगा तू खुद उल्लू थोड़ा कभी बहकाना सीख

 

मयकशी ही जरूरी है किस ने कह दिया
समय के साथ भी कभी कुछ बहकना सीख

कदम दिल दिमाग और जुबां लडखडाती हैं कई बिना पिए 
थोड़ा कुछ कभी महकना सीख
दिल का चोर आदत उठाईगीर की जैसी बताना मत कभी
साफ़ पानी के अक्स की तरह चमकना सीख

आखें बंद रख जुबां सिल दे
उधड़ते पल्लुओं की ओर से मुंह फेर कर
फट पलटना सीख

अच्छी आदतें अच्छी इबादतें सब अच्छे की बातें कर
कर कुछ उल्टा सुल्टा लंगडी लगा पटकना सीख

सब कुछ ठीक है बहुत बढ़िया है समझा जनता को
घर के परदे के अन्दर रहकर झपटना सीख

सकारात्मक रहो सकारात्मक कहो समझा कर सबको
खुद दवाई खा अवसाद की भटकाना सीख

घर गली मोहल्ले में घर घर जा धमका कर सबको
कौन देख रहा है कौन सुन रहा है किसे पडी है समझाना सीख

घर में मंदिर पूजा घर की जगह जगह घेरेगी
कोई एक भगवान पकड़ कर लोगों को पगलाना सीख

राम राम हैं राम राम थे राम राम में राम रमे है
आगे बढ़ ‘उलूक’ अब राधे राधे भी तो है ना मत आंखें मींच 
तू भी तो कुछ कहीं कभी कुछ तो ऐसा कुछ चमकाना सीख

चित्र साभार: https://in.pinterest.com/

सोमवार, 15 जनवरी 2024

निमंत्रण देते हैं सबके कांव कांव कर देने के अभिलाषी

 

सारे काले कौवे
सारे कहना ठीक नहीं
बहुत सारे कहें ज्यादा अच्छा है
बहुत सारे भी कहें 
फिर भी प्रश्न उठता है 
कितने सारे
एक झुण्ड ढेर सारे कौवों का
नीले आसमान में 
कांव कांव से गुंजायमान करता 
हर दिशा को
क्या दिशाहीन कहा जाएगा 
नहीं 
झुण्ड का कौआ नाराज नहीं हो जाएगा
हर किसी काले के लिए संगीतमय है 
ये शोर नहीं है 
ये तो समझा करो यही भोर है
एक चमगादड़ उल्टा लटका हुआ 
कोने में अपने खंडहर के किसी 
सोच रहा पता नहीं क्यों 
बस मोर है
मोर कहां झुण्ड में रहते हैं 
मस्त रहते हैं नाचते गाते पंख फैलाते 
गला मिला कर
करते नहीं ज़रा सा भी शोर हैं 
इतने सारे कौवे 
इतनी सारी कांव कांव
कोशिश करने की
उसी तरह की कुछ आवाजें
चमगादड़ का
फिसल जैसा रहा है पाँव पाँव
साहित्यकारों की कारें
सारी की सारी बीच सड़क पर
कदमताल करती
समानांतर कौवों के साथ जैसे उड़ती
सब संगीतमय सब गीतमय
ता धिन धिन ना ता तिरकट
अरे अरे कट कट
चित्र पूरा हुआ
चित्रमय हो चली सारी धरती
‘उलूक’ बकवासी
लेता आधी नींद से उठा जैसा
आधी कुछ बेसब्री सी उबासी
कुछ भीड़ कुछ भेड़ें
कुछ कौवे कुछ कबूतर
हर तरफ अफरा तफरी
किसको खबर कौन बेखबर
दुनियां नई
नई दुल्हन कहीं
कहीं कौवों के झुण्ड
निमंत्रण देते हैं सबके
कांव कांव कर देने के
अभिलाषी |

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

 


बुधवार, 10 जनवरी 2024

लिख कुछ भी लिख लिखे पर ही लगायेंगे मोहर लोग कुछ कह कर जरूर लिख कुछ भी लिख


लिख और लिख कमाल का कुछ लिख
लिख और लिख बबाल सा कुछ लिख
कुछ लिख जरूर लिख
मगर कभी सवाल भी कुछ लिख
लिखेगा कुछ तभी तो सुनेगा भी कुछ तो लिख
कोई कहेगा कुछ लिखे पर
कोई सहेजेगा लिखे का कुछ इसलिए लिख
जमा मत कर
अन्दर कुछ लिख बाहर बेमिसाल कुछ लिख
चाहे किसी पेड़ किसी दीवार में लिख
डर मत बेधड़क कुछ लिख
अपने सभी सवाल कुछ लिख
जवाब में मिलेगा उधर से भी सवाल कुछ लिख
चढ़ेंगे शरीफ ही कलम लेकर
लिखेगा तब भी नहीं लिखेगा तब भी
ढाल रहने दे तलवार कुछ लिख
गुलाब लिखे कोई लिखे झडे पत्ते
गिन और बेहिसाब लिख
दिमाग में भरे गोबर को साफ़ कर
थोड़ा कभी जुलाब कुछ लिख
लिखते हैं लोग मौसम लिखते हैं लोग बारिश
लिखते हैं पानी भी गुलाब भी और शराब भी
लाजवाब लिखते हैं और बेहिसाब लिखते हैं
पर देखा कर तेरे थोड़ा सा इतिहास लिखते ही
रोम रोम खड़े दिखते हैं और जवाब लिखते हैं
कोई नहीं फिर भी लड़खड़ा मत किताब लिख
लिखने से आजाद होता है आदमी बेहिसाब लिख
आदत है किसी को गुलामी की उसका हिजाब लिख
‘उलूक’ बेधड़क लिखता है धड़कनें
दिखता है लिखा 
किसी के लिखे से है तुझे कुछ परेशानी
तो रहने दे अपनी ही हिसाब की कोई किताब लिख
चित्र साभार: https://www.freepik.com/

शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

लिखना जरूरी है इतिहास ताकि वो बदल सकें समय आने पर उसे


जरूरत है
फिर से देखने की फिर से सोचने
और फिर से मनन करने की
विक्रमादित्य को भी और उसके बेताल को भी

यहाँ तक
उस वृक्ष को भी खोजना जरूरी है इतिहास में
जहां जा कर बार बार बेताल
फिर फिर लटक जाया करता था

उम्र बढ़ने के सांथ सुना है
सांथ छूटने लगता है यादाश्त का
वो बात अलग है कि अब जो भी याद है
पता नहीं याद है या नहीं याद है

पर याद दिलाया जरूर जा रहा है
कि हम सब अपनी अपनी
यादाश्त खो चुकें हैं

बहुत कुछ गिराया गया था
कुछ नया बनाए जाने के लिए
अभी सब कुछ
जमीन पर चल रहा है

‘उलूक’ रात में भी पता नहीं
कैसे देख लेता है जमीन के नीचे तक
उसे मालूम है राख तो बह चुकी है
कई शरीरों की पानी में
पहुँच चुकी हैं समुन्दर के अनंत में
पर लाशें जमीन में दबी हुई
अभी भी देखी जा सकती हैं कि
ज़िंदा है या मर चुकी है वाकई में

बहुत कुछ खोदा जाना है
बहुत कुछ पर मिट्टी डाली जानी है
अभी व्यस्त है समय
और मशीने लगी है नोट गिनने में
पकडे गए जखीरों के

कुछ भी है
लेकिन बेताल और 
विक्रमादित्य को भी
सबक सिखाना जरूरी है
और समझना है कि 
भगवान कल्कि का 
कलयुगी अवतार
इसीलिए पैदा किया गया है |



गुरुवार, 4 जनवरी 2024

हथियार किसी के हाथ में ना कभी थे ना अभी हैं


हथियार
किसी के हाथ में
ना कभी थे ना अभी हैं
पर कुछ तो
डाल चुकें है लोग
क्या ?
बस इसी का आभास नहीं है

बहुत कुछ
उबल रहा है पर भाप नहीं है
ना कोई
हंस रहा है ना कोई रो रहा है
सबके पास
काम है कुछ महत्वपूर्ण
जो दिया गया है
उन्हें
अपने होने का ही आभास नहीं है

रास लीला के समय
सुना है कुछ ऐसा ही हुआ था
गोपियां
थी तो सही कहीं
पर उन्हें पता ही नहीं था

क्या वही समय
अपने को दोहरा रहा है ?

आँखे
देख नहीं रही है कुछ भी
कानों से
सुना नहीं जा रहा है
जिह्वा
चिपक चुकी है तालुओं के साथ

शायद कहीं
समुंदर से भी बड़ा कुछ मथा जा रहा है
उसी में से
निकला अमृत हर एक के हिस्से का
उसके गले से
जैसे नीचे की और खिसकाया जा रहा है

अब
इससे बड़ा और क्या चाहिए ?

आदमी सम्मोहन में है
आदमी ध्यान में है
आदमी समाधिस्थ है

‘उलूक’
कितना अजीब है तू
ऐसे में भी
बकवास करने से
बाज नहीं आ रहा है ?

चित्र साभार: https://www.istockphoto.com/

बुधवार, 3 जनवरी 2024

रोज पढ़े फिर याद करे ‘उलूक’ उल्लू का अखबार


उल्लू के अखबार में छपे सफ़ेद ही समाचार
काले पढ़ नहीं पाते कुछ गोरे डालें बस अचार

काला काला देखता सफ़ेद देखता एक के चार
इन्द्रधनुष छुट्टी ले बैठा बंद कर पानी की बौछार

मतलब लिखता बेमतलब का रोज बजाता पौने चार
किसने पढ़ना किसने गुनना पत्ते खेल रहे सरकार

जोकर के हाथों में सब कुछ इक्के गुलाम बादशाह बेकार
याद करें कुछ बाराहखडी कुछ करें दिन फिरने का इंतज़ार

फिर से फिर फिर आयेंगे अच्छे दिन बारम्बार हर बार
खींच तान कर नींद निकालो चिन्ता चिता मान कर यार

लिख कर मिटा मिटा कर लिख रेत रेत सपने हजार
रोज पढ़े फिर याद करे ‘उलूक’ उल्लू का अखबार

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

मंगलवार, 2 जनवरी 2024

ऐसे ही २०२४ नहीं है आया कल्कि आयेंगे सुना है अभी तो मंदिर ही है आया



लिखना बंद हुआ ‘उलूक’ कुछ दिन
मगर क्यों हुआ समझ में ही नहीं आया
पढ़ना बंद किया लोगों ने
क्यों कोई आस पास लिखे के नजर नहीं आया

सोचेंगे ही नहीं अब पढ़ने वालों के बारे में
एक नया साल है अब आया
लिखेंगे मनमौजी कुछ भी कहीं भी
लिखने वाला आँखिर क्यों कर शरमाया

लिख रहे है ‘रविकर’ लिख रहे हैं ‘विश्वमोहन’
‘रूपचन्द्र’ का लिखना कौन रोक पाया
विद्वानों की पंक्ति इतनी सी भी नहीं है
एक से एक हैं यहाँ ये आया वो भी आया

दूरदर्शन अखबार समाचार सब ही आभासी हैं 
सब जानते हैं लोग किस ने है कब्जाया
चिट्ठा ज़िंदा है अभी कुछ
कुछ कुछ हैं चिट्ठाकार
लिखते हैं निर्भीक कुछ नहीं कमाया

कुछ लिखते अपनी कुछ लिखते हैं पतंग
कुछ ने दिनचर्या लिखने का मन है बनाया
‘उलूक’ लिखता है भडास हमेशा
बकवास को पढ़ने कौन इच्छा से सामने है आया

चित्र साभार: https://in.pinterest.com/pin/607493437217436922/