उलूक टाइम्स: जनवरी 2021

शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

बकवास करने वाले हैं कुछ बेगार ही सही बेगार लिख रहे हैं


सबसे अच्छा है
कुछ नहीं लिखना
कई कई दिनों तक
पन्नों में नहीं दिखना

किसी ने पूछना नहीं है
 क्यों नहीं दिख रहे हो
किसे मतलब है
कहने से
किसलिये
बकवास करने से आजकल बच रहे हो

लिखने लिखाने वाले सभी
कुछ ना कुछ लिख रहे हैं
सब अपनी अपनी जगह पर
अपने हिसाब से दिख रहे हैं

कोई देश लिख रहा है
कोई प्रदेश लिख रहा है
कोई शहर लिख रहा है
कोई प्रहर लिख रहा है

किस ने रोका है तुझे लिखने से
नहर लिख
किसी ने नहीं कहना है
किसलिये नहर लिख रहा है

जो हो रहा है
उसे उसी तरह किसने लिखना है
कुछ हिसाब किताब
बही खाते के हिसाब से लिख
और पूछ
लिखने वाले से
क्या जी एस टी दे कर आया है
जो किताब लिख रहा है

कुछ सरकार लिख रहे हैं
कुछ बेकार लिख रहे हैं
बेगार लिखना गुनाह नहीं है
राग दरबार लिख रहे हैं
लिख ‘उलूक’ लिख
तेरे लिखने से
कुछ नहीं कर सकने वाले
लिखने लिखाने के तरीके के
कारोबार लिख रहे हैं

समझ में आना ना आना
अलग बात है
कुछ तो है कहीं यहीं
लिखने लिखाने वालो के लिये
बकवास करने वाले हैं कुछ
बेगार ही सही
बेगार लिख रहे हैं।

चित्र साभार: http://clipart-library.com/


सोमवार, 18 जनवरी 2021

एक चोर का डैमेज कंट्रोल वाह वाही चाहता है अखबार उसकी एक पुरानी खबर के बाद बस चुप हो जाता है

 


बहुत
हो गया है

कूड़ा
हो ही जाता है
कूड़े का डिब्बा
गले गले तक भर जाता है

होना
कुछ नहीं होता है
पता होता है

फुसफुसाने में
सब खो जाता है

बड़ी खबर
किसने कह दिया
आपके सोचने से होगी

आदमी
देख कर
खबर का खाँचा
बनाया जाता है

प्रश्न
प्रश्न होता है
क्या होता है
अगर किसी को
बता दिया जाता है

किसने बताया
किसको बताया
किसलिये पूछना चाहता है

जहाँ
कुछ नहीं होना होता है

वहाँ
एक कबूतर
हवा में उड़ा दिया जाता है

सजा
जरूरी होती है
मिलती भी है उसे

जिसको
पूछने की आदत के लिये
तमगा कभी दिया जाता है

शरीफ और नंगे
का अंतर
बहुत बारीक है

जमाना
किसे आगे देखना चाहता है

अभी अभी
देख कर उड़ा है
‘उलूक’
कुछ मुँह छुपा कर अपना

जो हुआ है
सब को पता है
जीत किसकी हुई
चोर चोर मौसेरे
घूँम रहे हैं खुले आम

एक शरीफ
अपना मुँह चुल्लू में डुबाना चाहता है ।

चित्र साभार: http://www.onlineaudiostories.com/

शनिवार, 9 जनवरी 2021

नंगा सच है नंगई ईश्वरीय है

मत लिखा कर
हर समय गीला सा
सुखा लिया कर
लिखा अपना सीला सा

आग नहीं लगती है
लिखा गीला होता है
सीलन सुलगती नहीं है

रोज लिखना
हर समय दिखना
इसलिये ठीक नहीं होता है
लिखाई भी हर समय बहकती नहीं है

लिखा कर
कोई नहीं कहता है नहीं लिख
बस फूँक लिया कर लिखते लिखते लिखे को
स्याही सूखे बिना चमकती नहीं है

आग लिख या राख लिख
किसे मतलब है
लगी आग से बनती राख तक
जरूरी है खबर बनना
अखबार बिकता है
पकी पकाई से
कच्ची खबर बिकती नहीं है

किसलिये लिखना
हो रहे को यूँ ही
बिना मिर्च बिना मसाले के

शाम के गिलास में
शराब
बिना बात के
यूँ ही कहीं
जा गिरती नहीं है

सबको
पता होता है
सब जानते हैं लिखावट
हर लिखे की
चिट्ठियाँ आती है
किसी और के नाम से
लिखने वाले के
शहर में नहीं होने की खबर
कहीं छपती नहीं है

‘उलूक’
नोच
अपने गंजे सर के बचे बालों को
नगों की मौज रहेगी हमेशा

नंगा सच है
नंगई करना ईश्वरीय है

मंदिर बना कहीं भी 
नंगे का किसी 
कोई रोक है कहीं
कहीं दिखती नहीं है।

चित्र साभार: ttps://www.gograph.com
/

सोमवार, 4 जनवरी 2021

फिर फटेंगे ज्वालामुखी फैलेगा लावा भी कहीं बैठा रह मत लिखा कर कोई कहे भी अगर लम्बी तान कर बैठा है

 



कलम अपनी
ढक्कन में
कहीं डाल कर बैठा है 

एक लम्बे समय से
आँखें निकाल कर बैठा है 

कान खुले हैं मगर
कटोरा भर तेल डाल कर बैठा है 

बड़बड़ाना जारी है
मुँह में रुमाल डाल कर बैठा है 

सारे पूछ कर
कुछ करने वालों को
सलाम मार कर बैठा है 

पूछने वालों के
कुछ अलग ही होते काम हैं
मान कर बैठा है ।

सब पूछते हैं
सबके पास कुछ है पूछने के लिये
खुद भी पूछना है
कुछ ठान कर बैठा है 

किसी के लिये
पूछने में भी लगा है
सुबह से लेकर शाम पूछने की दुकान पर
कुँडली मार कर बैठा है 

मोटी खाल
समझने में लगा है आजकल
मोटी खाल का मोटी खाल के साथ
संगत
कमाल कर बैठा है 

शरम बेच कर
मोटी खाल बेशरम
मोटी खालों के संगम के प्रबंधन का
बेमिसाल इंतजाम कर बैठा है 

बैठने बिठाने के चक्कर में बैठा
कोई कहीं जा बैठा है
कोई कहीं जा बैठा है 

‘उलूक’
अभी बहुत कुछ
सिखायेगी तुझे जिंदगी

इसी तरह बैठा रह
शाख पर किसी टूटी
श्मशान के सूखे पेड़ की 

शरम करना
छोड़ दे अभी भी
देख और मौज ले नंगई के
और कह
अट्टहास के साथ

नंगा एक
नंगों के साथ मिलकर
कितनी शान से
हमाम लूट कर बेमिसाल बैठा है ।

चित्र साभार: https://www.canstockphoto.com/