उलूक टाइम्स: अगस्त 2023

गुरुवार, 24 अगस्त 2023

बिना पत्थर खुद को उछालता हुआ सामने से पत्थर की तस्वीर हाथ में लिए खुद को ही कोई लहरा रहा था

 

सब ही तो उछाल रहे हैं बड़ी तबीयत से उछाल रहें है
एक नहीं कई पत्थर आसमान की और बिना किसी शोर
और आसमान है
कि होने ही नहीं देता है एक भी छेद कितना भी लगाले कोई जोर

आसमान भी जानता है आसमान भी पहचानता है
पत्थर को भी और उसे उछालने वाले को भी बहुत अच्छी तरह से
वो नहीं रहा कभी भी किसी की ओर

आसमान की परेशानी आज कुछ और है
जिस पर उस का नहीं चल रहा कोई जोर है
वो वो है
जिसके पास ना कोई पत्थर रहा कभी
ना उसे किसी पत्थर से मतलब रहा
उसके मन में ही चोर है

कल जब करोड़ों पत्थर आसमान की तरफ जा रहे थे
हर किसी के ख़्वाब में होते हुए छेद महसूस किये जा रहे थे
कोई छेद की ओट में बैठा धुआं बना रहा था
किसी एक पत्थर पर छपा ले जाए खुद का नाम योजना बना रहा था
आसमान मुस्कुरा रहा था
नजर रहती है क्योंकि उसकी चारों ओर

हुआ छेद जैसे ही आसमान में
तालियों से आसमान गडगडा रहा था
एक पत्थर ने नहीं किया छेद करोड़ों छेदों से हुआ है आसमान पटा
दूरदर्शन बताना चाह रहा था
बिना पत्थर खुद को उछालता हुआ सामने से
पत्थर की तस्वीर हाथ में लिए खुद को ही कोई लहरा रहा था

देश समझ रहा था पहचान रहा था
अचानक दूरदर्शन में देखने वालों की संख्या में बहुत बडी गिरावट
आने वाले समय को अच्छी तरह समझा रहा था

चलो चंद्रयान के बहाने ही सही
 ‘उलूक’ एक पत्थर तबीयत से तो उछालो यारो का मतलब
सारे देश को आज फिर से
बहुत अच्छी तरह से समझ में आ रहा था |

सोमवार, 21 अगस्त 2023

कुछ तो सुन संजीदा ऐ डफर

 


सांप और उसके जहर को क्या लिखना
महसूस कर और सिहर
तेंदुआ शहर में घूम रहा है
दिखा कल अखबार में है एक खबर
बहुत कुछ हो रहा है हमारे आस पास
कुछ तो सुन संजीदा ऐ डफर

अवकाश में चला गया है
पेंशन भी आ गयी है पहली खाते में इधर
काम पर लेकिन अब लगा है बना रहा है बम
साथ में है सुना है जफ़र
उड़ाने का इरादा है उसका सब कुछ
जिससे मिला उसे हमेशा ही सिफर

कभी इधर की थाली का रहा बैगन
लुडकता इधर से उधर
आज उधर दिख रहा है यही बैगन
लुडकता उधर से इधर

इधर था
तो इधर की खोद देता था जड़ें सारी होकर बेफिकर
उधर भी
खोद ही रहा होगा जड़ें किसी की अभी नहीं आई है कोई खबर

बरबाद कर दूंगा
तो बस एक मुहिम है सोच है
दिखाना तो है २०२४ का एक शहर
हर शय पर है हर घर में है हर जगह है
बर्बाद कर दूंगा का नुमाइंदा दिखाने को कहर

बस ‘उलूक’ को पता है
उसका राम है उसका अल्लाह है उसका जीजस है
और सब एक है बाकी सांप है और है जहर
सांप है तो जहर भी है काटता भी है तो मरता भी है
सुबह से लेकर शाम तक जिंदगी और मौत है
लेकिन कड़क धूप है तो है दोपहर

चित्र साभार : https://www.clipartmax.com/

शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

सामने ‘उलूक’ को देख कर खुजली से भर जाता है लेकिन बाद में कही और जा कर खुजलाता है


होती है खुजली कोई अनोखी बात नहीं होती है
किसको किससे होती है किसको कब होती है और
किसको कहां होती है में जरूर कुछ बात होती है

सामने से दिखे आता हुआ कोई  
खुजली हो और खुजला ना सके कोई
गलत बात होती है
रास्ता संकरा होने से इधर उधर कहीं जा ना सके कोई
चहरे पर नजर आना शुरू हो जाए खुजली
आ रही है देख कर भी मुस्कुरा ना सके कोई
कैसे कहे कोई ये बाते बस इत्तेफाक होती हैं

बहुत ही खतरनाक होती है कुछ खुजली
अचानक शुरू हो लेती है कहीं पर भी कभी भी
गजब की खुजली होती है और बेबात होती है

कोई किसी को नहीं बताता है कि खुजलाता है
कोई किसी को नहीं दिखाता है कि खुजलाता है
खुजली को महसूस भर कर लेता है थोड़ा सा
दिमाग में अपने ही कुछ दही जमाता है
मौके का इंतज़ार करता है खुजलाने वाला
लोहा गरम देख कर हमेशा हथौड़ा चलाता है

खुजली हुई थी बहुत जोर से हुई थी
खुजला लिया गया है साफ़ साफ़ पता चल जाता है
एक नोटिस छोटा झंडा फहराने का
और एक नोटिस झंडे पर ज़रा  सा टेड़ा डंडा लगाने का
एक डंडे वाला हाथ में जब थमा जाता है

‘उलूक’ कुछ दवा क्यों नहीं खाता है
कुछ ईलाज अपना क्यों नहीं करवाता है
बहुत से लोगों को किसलिए होने लगती है खुजली
जब भी कभी उन्हें तू
सामने से मुस्कुराता हुआ आता नजर आ जाता है ?

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/



 

मंगलवार, 15 अगस्त 2023

आजादी के मायने सबके लिये उनके अपने हिसाब से हैं बस हिसाब बहुत जरूरी है

 


आजादी दिखने दिखाने तक ही ठीक नहीं है
आजादी है कितनी है उसे लिखना भी उतना ही जरूरी है

जब मिली थी आजादी सुना है एक कच्ची कली थी 
आज के दिन पूरा खिल गयी है फूल बन गयी है
स्वीकार कर लेना है
आज की मजबूरी है

बात देश की करते हैं नौजवान आजकल के 
झंडा फहराते हैं एक संगठन का
समझाते है राष्ट्र तिरंगे के फहराने के समय
अपनी अपनी श्रद्धा है अपनी अपनी जी हजूरी है 

ना सैंतालीस मैं पैदा हुऐ ना गांधी से रूबरू कभी
धोती लाठी नंगा बदन तीन बंदरों की टोली
समझने की कोशिश भर रही
गांधी वांगमय समझ में आया या ना आया
सच को समझने की कोशिश भर रही
कह ले कोई कितना फितूरी है

समय दिख रहा है दिखा रहा है सारा सब कुछ
ठहरे स्वच्छ जल में बन रही तस्वीर की तरह
लाल किले पर बोले गए शब्द कितने आवरण ओढे
तैरते सच की उपरी परत पर
देख सुन रही है एक सौ चालीस करोड जनता
दो हजार चौबीस के चुनाव के परीक्षाफल
चुनाव होना ही क्यों है उसके बाद
किसने कह दिया जरूरी है

‘उलूक’ चश्मा सिलवाता क्यों नहीं अपने लिये
पता नहीं क्यों उनके जैसा
टी वी अखबार वालों के पास होता है जैसा
पता नहीं क्या देखता है क्या सुनता है

आँख से अंधा कान से बहरा
पैदा इसी जमीन से हुआ
कुछ अजीब सा हो गया
इस में कहीं ना कहीं कोई तो गड़बड़ है
कागज़ कागज़ भर रहा है लेकिन
कलम कुछ बिना स्याही है
और सफ़ेद है कोरी है | 

चित्र साभार: https://in.pinterest.com/

रविवार, 6 अगस्त 2023

फटी सोच से फटी किताब में लिखे गए कुछ फटे शेर 'उलूक' ले कर के आता है

 


 कितना कुछ कुलबुलाता है
भटक कर अँगुलियों के पोरों तक आ जाता है
कलम की नोक तक सुरसुराता हुआ
सामने पड़े सफ़ेद पर बस फ़ैल जाता है

खून लाल होता है कहा जाता है
सफ़ेद होकर कब पानी में बदल जाता है
कहीं जिक्र नहीं करता है कोई
इंसान होने में अब किसे फक्र हो पाता है

कूंची लिए हाथ में कसमसाता है
रंगों से इन्द्रधनुष बनाना चाहता है
एक रंग काफी होता है
पागल बादशाह  जब जाल अपना फैलाता है

सीधे तू चोर है कभी भी नहीं कहना चाहिए
 ना ही किसी से सीधे कहा जाता है
अलीबाबा के समय चालीस रहे होंगे
अब तो पांच सौ चालीस से देश चल पाता है

सीवर जरूरी नहीं सब बहा कर ले जाए
बहुत कुछ सब के हिस्से का बचा रह जाता है
सफाई और गन्दगी के बीच की लाइन खींचना ठीक नहीं
अब माना जाता है
सब कुछ हम्माम हो चला  है देख रहे हैं खुद को नहाते हुए इसी में
कौन हडबड़ाता है
गांधी को सोचना और उसकी बात करने वाला
अब एक निहायती गंवार माना जाता है

खोदना जरूरी है सारी खूबसूरत इमारतों को एक बार
और ये उसे करना है
तू किसलिए लरबराता है
ईट बहुत  है औकात बताने  के लिए
क्यों पगलाता है
चर्च मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारा अगर भरभराता  है

बहुत सारी गन्दगी है बहुत बदबूदार है
फेंकना भी होता है हर कोई फेंकना भी चाहता है
‘उलूक’ आसान नहीं होता है शब्द नहीं होते हैं पास में
एक वाक्य तक नहीं बनाया जाता है |
 

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/