फिर
हुवा हुवा
का शोर हुवा
इधर से
गजब का
जोर हुवा
उधर से
जबरजोर हुवा
हुवा हुवा
सुनते ही
मिलने लगी
आवाजें
हुवा हुवा की
हुवा हुवा में
हुवा हुवा से
माहौल
सारा जैसे
सराबोर हुवा
चुटकुला एक
एक
बार फिर
अखबार में
खबर
का घूँघट ओढ़
दिखा आज
छपा हुवा
खबरों
को उसके
अगल बगल की
पता ही
नहीं चला
कब हुवा
कैसे हुवा
और
क्या हुवा
पानी
नदी का
बहने लगा
खुद ही
नहा धोकर
सब कुछ
सारा
आस पास
ऊपर नीचे का
पवित्र हुवा
पावन हुवा
पापों
के कर्ज में
डूबों का
सब कुछ
सारा माफ हुवा
ना
बम फटे
ना
गोली चली
ना
युद्ध हुवा
बस
चुटकुला
खबर
बन कर
एक बार
और
शहीद हुवा
इन्साफ हुवा
जंगल उगे
कागज में
मौसम भी
कुछ
साफ हुवा
हवा
चली
जोर की
फोटो में
बादल उतरा
पानी
बरसा
रिमझिम
रिमझिम
गिरते गिरते
भाप हुवा
पकाने
परोसने
खिलाने
वाले
शुरु हुऐ
समझाना
ऐसा हुवा
हुवा
जो भी
सदियों
बाद हुवा
‘उलूक’
पूछना
नहीं हुवा
कुछ भी बस
करते
रहना हुवा
हुवा हुवा
हो गया
हो गया
सच्ची
मुच्ची में
है हुवा हुवा ।
चित्र साभार: https://www.123rf.com
फिर से
आ गया लिखने
एक और बकवास
चल बोल
अब क्या रह गया है
जिसे कहना है
फरवरी
का महीना है
वेतन नहीं
निकाल पायेगा
मार्च के महीने में
लग जा
भिड़ाने में
हिसाब किताब
आयकर का
बाकी
होनी को तो
अपनी जगह
उसी तरह
से होना है
जैसा
ऊपर वाले
ने करना है
प्रश्नों
को डाल दे
कबर में किसी
फिर
कभी खोद लेना
कौन सा किसी को
जवाब देने के लिये
कहीं से उतरना है
प्रश्न
दग रहे हैं
मिसाईल
की तरफ
प्रश्न करते ही
पूछने वाले पर
हवा में ही
जमीन
में वैसे भी
कौन सा
किसी को
मारना मरना है
चुन
ली गयी है
सरकारों
की सरकार
हजूर
इस प्रकार
और उस प्रकार
फर्क
कौन सा
जमीर बेचने
वाले के लेन देन
नफा नुकसान पर
जरा सा भी
कहीं पड़ना है
दो हजार
उन्नीस पर
नजर गड़ाये
हुऐ हैं सारे तीरंदाज
बिना
धनुष तीर के
अर्जुन ने लगाना
निशान आँख पर
मछली
की छोड़
ऊँट को करवट
बदलते देखना
उसी
तरफ लोटने
के लिये कहीं
नंगे किसी के
पाँवों पर
लुढ़कना है
‘उलूक’
कुछ नहीं
होना है तेरी
आदत को अब
इस ठिकाने
पर आकर
कौन सा
तूने भी
बकबास
करना छोड़ कर
तागा
लपेटने वाले
पतंग उड़ाते
देश के
पतंगबाजों से
पेच लड़ाने के लिये
अपनी
कटी पतंग
हाथ में लेकर
हवा में उड़ना है ।
चित्र साभार: https://www.shutterstock.com
तेज
दौड़ते रहने से
दिखायी नहीं
देती है प्रकृति
रुक लेना
जरूरी होता है
कहना
अपनी बात
और लिखना
उसी को
मजबूरी
हो सकता है
उसके लिये
जो बोलना
और लिखना
सीखते सीखते
भटक जाता है
कवि और
साहित्यकारों
के बीच में
रहने से भ्रम
हो ही जाता है
सामान्य लोग
और मानसिक
रूप से बीमार
साथ में
चलते रहते हैं
समय
समय देता है
समझने के लिये
पागलों को भी
एक ही
रास्ते में
चलने का
नुकसान
पागल
को ही
उठाना
पड़ जाता है
तरक्की
ऐसे ही
नहीं होती है
छोटा
बहुत जल्दी
बहुत बड़ा
हो जाता है
शतरंज
के मोहरे भी
ऊब जाते हैं
कब तक
चले कोई
एक ही
तरह से
किसी के
चलाने से
सीधा आढ़ा
या तिरछा
बिसात को
छोड़ कर
एक ना
एक दिन
हर कोई
बाहर
चला आता है
मौत
शाश्वत है
जीवन
चला जाता है
मोहरे
मरते नहीं हैं
बिसात से
बाहर
निकल आते हैं
बिसात में
बिताये समय का
सदउपयोग कर
मौत बेचना
शुरु हो जाते हैं
खेलने वाले
जब तक
समझ पाते हैं
शतरंज
मोहरे
समझाने वाले
खिलाड़ियों
की पाँत में
बहुत आगे
पहुँच जाते हैं
चुनाव
हार और जीत
शतरंज और मोहरे
हर तरफ फैल कर
अमरबेल की तरह
जिंदगी से
लिपट कर उसे चूसते हैं
कहीं हीमोग्लोबिन
चार पहुँच जाता है
कुछ शूरवीर
पन्द्रह सोलह
के पार हो जाते हैं
देश
देशभक्ति
शहीद याद आते ही
घर के दरवाजे
शोक में बन्द
कर दिये जाते हैं
‘उलूक’
देखता रहता है
ठूँठ पर बैठा
रात में दौड़ते चूहों को
सड़क दर सड़क
अच्छी बात है
कुछ होता है तब
जली मोमबत्ती लेकर
अपनी अपनी
चाल
बहुत धीमी
कर ले जाते हैं
बलिहारी हैं
बिल्लियाँ
जिनकी
नम आखों से
टपकते आँसू
चूहों का उत्साह
इस आसमान से
उस आसमान
तक पहुँचाते हैं
लाशों के बाद वोट
या
वोट के बाद लाश
क्या फर्क पड़ता है
बेवकूफ
हराम के
खाने वाले
हरामी
हमेशा
सामने वाले के
मुँह पर टार्च जला कर
शीशा सामने से
ले कर आते हैं ।
चित्र साभार: https://herald.dawn.com
विश्व
के एक
विद्यालय में
जल्द ही
संघ का
चुनाव होने
जा रहा है
मजे
की बात है
हर
लड़ने वाला
इस चुनाव में
अपना
झंडा
छुपा रहा है
बुद्धिजीवी
बड़ी बात है
किसी एक
बुद्धिजीवी को
वोट देने
जा रहा है
मुद्दे
किसी के
पास हैं
और क्या हैं
पूछने पर
कोई
कुछ नहीं
बता रहा है
विश्व का
यही एक
विद्यालय
जल्दी ही
दो में टूटने
जा रहा है
किसलिये
और क्यों
तोड़ा
जा रहा है
अलग बात है
अच्छा है
किसी से
उसकी
औकात के
बाहर का प्रश्न
पूछा भी
नहीं जा रहा है
शहर
जिले प्रदेश
से छाँट कर
किसी
एक को
दूसरी
ऐसी ही
किसी एक
ऊँची दुकान में
सामान
बेचने
के लिये
भेजा
जा रहा है
अखबार
शहर का
बेचने और
खरीदने की
बात छोड़ कर
दुकानदार
बनाये गये
बुद्धिजीवी के
गाये गये
गाने को
समझा रहा है
सब
पके
पकाये हैं
हर कोई
एक दूसरे को
पका रहा है
विश्व के
विद्यालय के
विख्यात
व्याख्याताओं को
दो हजार उन्नीस
नजर आ रहा है
समझ में
नहीं आती हैं
कुछ बातें
तो लिखने
चला आ रहा है
लिखना
नहीं आता है
फिर क्यों
और
किसलिये
पढ़ा रहा है
लूटना
सिखाना
गिरोह बनाना
नहीं सिखा
पा रहा है
बेकार है
जिन्दगी उसकी
जो खाली
विषय
पढ़ा रहा है
‘उलूक’
तेरी बात है
मान लेते हैं
तू खुद भी
नहीं समझ
पा रहा है
दुआ
उसको दे
जो
ऐसे कूड़े पर
फिर भी
टिप्पणी
दे कर
जा रहा है ।
चित्र साभार: www.thebiharnews.in