उलूक टाइम्स

बुधवार, 18 मई 2016

राजशाही से लोकतंत्र तक लोकतांत्रिक कुत्ते और उसकी कटी पूँछ की दास्तान

राजा राजपाट
प्रजा शाह
शहंशाह
कहानियाँ
एक नहीं हैं
कई कई हैं
किताबों में हैं
पोथियों में हैं
पुस्तकालयों में हैं
विद्यालयों में हैं
कोने कोने पर
फैली हुई हैं
कुछ जगी हुई हैं
कुछ आधी
नींद में हैं
उँनीदी हुई हैं
कुछ अभी
तक सोई हुई हैं
राजतंत्र कहते हैं
पुरानी कहानी है
राजा रानी होते थे
एक नहीं बहुत
सारी निशानी हैं
कहीं उनकी यादें हैं
कहीं उनके ना
होने की वीरानी है
सब को ये सब
पता होता है
‘उलूक’
तेरी बैचैनी
भी समझ के
बाहर होती है
जो नहीं होता है
उसके लिये ही तू
किसलिये हमेशा
इतना जार
जार रोता है
अब तक भी
समझता क्यों नहीं है
प्रजातंत्र हो चुका है
सारे प्रजा के तांत्रिक
प्रजा के लिये ही
तंत्र करते हैं
स्वाहा: स्वाहा:
कहते हुऐ
प्रजा की परतंत्रता
के लिये अपना
सब कुछ अर्पण
तुरंत करते हैं
केवल और केवल
एक सौ आठ बार
रोज सुबह और शाम
इसी पर आधारित
सारे के सारे
मंत्र करते हैं
तंत्र करते भी हैं
तो सिर्फ प्रजा
के लिये ही
तंत्र करते हैं
राजतंत्र होता
था पहले
बस एक
राजा होता था
अब हर कोने
कोने पर होता है
राजा होता है
नहीं होता है
राजा होते हैं होता है
राजा के नीचे भी
जो होता है
वो भी राजा होता है
राजाओं की
शृंखला होती है
शृंखला की कड़ी
में हर कड़ी के
सिर पर मुकुट होता है
दिखता नहीं है
नहीं दिखने वाली
हिलती हुई कुत्ते
की पूँछ होती है
ना कुत्ता होता है
ना मालिक होता है
मालिक तो होता
ही है कुत्ता भी
राजा होता है
ऐ मालिक तेरे
बंदे हम का
अहसास यहीं
और यहीं होता है
बिना पूँछ का कुत्ता
आँखों में आँसू
लिये होता है
कुत्ता होता है
पर कुत्तों की
श्रंखला से बाहर
अपने कुत्ते होने
पर रोता हुआ
अपनी कटी पूँछ
का मातम
कर रहा होता है ।

चित्र साभार: www.parispoodles.com