उलूक टाइम्स: अफसाने. जमाने
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गुरुवार, 16 मार्च 2017

रखा तो है शमशान भी है कब्रगाह भी है और बहुत है दो गज जमीन है सुकून से जाने के लिये

अब
छोड़ भी
दे नापना
इधर
और उधर
अपने
खुद के
पैमाने से
 
कभी पूछ
भी लिया कर
अभी भी
सौ का
ही सैकड़ा है
क्या जमाने से

लगता नहीं है
कल ही तो
कहा था
किसी ने
शराब लाने
के लिये
घर के
अन्दर से

लड़खड़ाता
हुआ कुछ
ही देर पहले
ही शायद
निकल के
आया था वो
मयखाने से

ना पीना
बुरा है
ना पिलाने
में ही कोई
गलत बात है

साकी खुद ही
ढूँढने में लगी
दिख रही है
इस गली और
उस गली में
फिरती हुई

उसे भी
मालूम हो
चुका है
फायदा है
तो बस
बेशर्मी में

नुकसान ही
नुकसान है
हर तरफ
हर जगह
हर बात पर
बस शरमाने से

निकल चल
मोहल्ले से
शहर की ओर
शहर से
जिले की ओर
जिले से छोटी
राजधानी की ओर

 छोटी में होना
और भी बुरा है
निकल ले
देश की
राजधानी
की ओर

किसी
को नहीं
पता है
किसी को
नहीं मालूम है
किसी को
नहीं खबर है

किस की
निविदा
पर लग रही
मुहर है

बात ठेके की है
ठेकेदार बहुत हैं
किस ने कहा है
टिका रह
मतदाता के
आसपास ही

कुछ नहीं
होना है अब
किसी का
दरवाजा बेकार
में खटखटाने से

कोशिश जरुरी हैं
तोड़ने की किसी
भी सीमा को

बत्तियाँ जरूरी हैं
लाल हों
हरी हों नीली हों

देश भक्ति का
प्रमाण बहुत
जरूरी है
झंडे लगाने
का ईनाम
ईनाम नहीं
होता है
खाली बातों
बातों में ही
बताने से

चयन
हो रहा है
दिख रहा है
जातियों से
उसूलों के
दिखावों वालों
के बीच भी

आदमी के
लिये है रखा है
उसने शमशान
और कब्रगाह
बहुत है
दो गज जमीन
सुकून से
जाने के लिये
आभार आदमी
का आदमी को
आदमी के लिये
रहने दे
किस लिये
उलझता है
किसी फसाने से

बहक रहा हो
जमाना जहाँ
किस लिये डरना
बहकने से
कलम के लिखने से
खुद की अच्छा है
‘उलूक’
कहे तो सही
कोई
तुझसे कुछ
यही होता है
छुपाने से
कुछ भी
किसी भी
बनते हुऐ
किसी
अफसाने से ।

चित्र साभार: news.myestatepoint.com