उलूक टाइम्स: गिद्ध
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बुधवार, 22 मार्च 2017

बेशरम होता है इसीलिये बेशर्मी से कह भी रहा होता है

शायद
पता नहीं
होता है
दूर देखने
की आदत
नहीं
डाल रहा
होता है

देख भी
नहीं रहा
होता है


गिद्ध होने
का बहुत
ज्यादा
फायदा
हो रहा
होता है

आस पास
के कूड़े
कचरे को
सूँघता ही
फिर रहा
होता है

खुश्बुओं की
बात कभी
थोड़ी सी भी
नहीं कर
रहा होता है

लाशों के
बारे में
सोचता
फिर रहा
होता है

कहीं भी
कोई भी
मरा भी
नहीं
होता है

हर कोई
जिंदा
होता है
घूम रहा
होता है

सब कह
रहे होते हैं
सब को बता
रहे होते हैं
सब कुछ
ठीक हो
रहा होता है

बेशरम
बस एक
‘उलूक’
ही
हो रहा
होता है

रात को
उठ रहा
होता है
फटी आँखों
से देख
रहा होता है

बेशरम
हो रहा
होता है
बेशर्मी से
कहना
नहीं कहना
सारा
सभी कुछ
कह रहा
होता है ।

चित्र साभार: Tumblr

शनिवार, 1 अगस्त 2015

गिद्ध उड़ नहीं रहे हैं कहीं गिद्ध जमीन पर हो गये हैं कई

गिद्ध
कम हो गये हैं
दिखते ही नहीं
आजकल
आकाश में भी 
दूर उड़ते हुऐ
अपने डैने
फैलाये हुऐ

जंगल में पड़ी
जानवरों
की लाशें
सड़ रही हैं
सुना जा रहा है

गिद्धों
के बहुत
नजदीक
ही कहीं
आस पास में
होने का
अहसास
बढ़ रहा है

कुछ
नोचा जा रहा है

आभास हो रहा है

अब
किस को

क्या दिखाई दे
किस को
क्या
सुनाई दे

अपनी अपनी
आँखें

अपना अपना
देखना

अपने अपने
भय

अपना अपना
सोचना


किसी ने
कहा नहीं है

किसी ने
बताया नहीं है


कहीं हैं
और बहुत ही

पास में हैं
बहुत से गिद्ध


हाँ
थोड़ा सा साहस

किसी ने
जरूर बंधाया

और समझाया

बहुत लम्बे समय

तक नहीं रहेंगे
अगर हैं भी तो
चले जायेंगे
जब निपट
जायेंगी लाशें

इतना समझा

ही रहा था कोई
समझ में आ
भी रहा था
आशा भी कहीं
बंध रही थी

अचानक

कोई और बोला

गिद्धों
को देख कर

नये सीख रहे हैं
गिद्ध हो जाना

ये चले भी जायेंगे

कुछ दो चार सालों में
नये उग जायेंगे गिद्ध

नई लाशों को

नोचने के लिये

आकाश में कहीं

उड़ते हुऐ पक्षी
तब भी नजर
नहीं आयेंगे

लाशें तब भी
कहीं
नहीं दिखेंगी

सोच में दुर्गंध की

तस्वीरें आयेंगी
आज की तरह ही

वहम अहसास

आभास सब
वही रहेंगे

बस


गिद्ध तब भी

उड़ नहीं
रहे होंगे कहीं

किसी भी
आकाश में ।


चित्र साभार: www.pinstopin.com

मंगलवार, 2 जुलाई 2013

कभी बड़ा ढोल पीट



कब तक पीटेगा एक कनिस्तर 

कभी बड़ा 
एक ढोल भी पीट

घर के 
फटे पर्दे छोड़ टांगना
नंगी धड़ंगी सही 
पीठ ही पीट

आती हो 
बहुसंख्यकों को समझ में 
ऎसी अब ना कोई
लीक पीट

अपने घर के 
कूडे़ को कर किनारे 
कहीं छिपा ना दिखा

दूर की एक कौड़ी लाकर 
सरे आम शहर के
बीच पीट

क ख से 
कब तक करेगा शुरु 
समय आ गया है अब 
एक महंगा शब्दकोश 
ला कर के पीट

पीट रहे हैं 
सब जब कुछ ना कुछ 
किनारे में जा कर अपने लिये ही जब 

तू अपने लिये 
अब तो पीटना ले इन से कुछ सीख 
कुछ तो पीट 

कुछ ना 
मिल पा रहा हो कहीं अगर तुझे तो 
छाती अपनी ही खोल  
और  
खुले आम 
पीट 

मक्खियाँ भिनभिनायें 
गिद्ध लाशों को खायें 
किसने कहा जा कर के देख
समझदारी बस दिखा 
महामारी फ़ैलने की
खबर पीट

घर की मुर्गी उड़ा 
कबूतर दिल्ली से ला 
ओबामा का कव्वा
बता कर
के पीट

पीटना 
है नहीं तुझको जब छोड़ना
कुछ बड़ा सोच कर 
बड़ी बातें ही पीट

कब तक पीटेगा 
एक कनिस्तर 
कभी एक बड़ा ढोल
भी पीट । 

चित्र साभार: https://www.cffoxvalley.org/