उलूक टाइम्स: टावर
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शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

ध्वनी तरंगें अब रिश्ते जोड़ती और घटाती हैं

फोन की
घंटी बजती है
एक नया नम्बर
दिखता है

लड़की बात
शुरु करती है
लड़का जवाब
देता है

घर में एक नहीं
कई फोन हैं
कई तरह की
घंटियों की आवाजें

अलग अलग धुनें
अलग अलग
समय पर
सुनाई देती हैं

सब को पता
होती हैं
आदत में
जैसे शामिल
जैसे मन और
शरीर के लिये
जरूरी होती हैं

कभी राम धुन
बजती है
कभी गायत्री मंत्र
सुनाई देता है
घंटी बजना
शुरु करते ही
सुनने वाला
फोन सुनना
शुरु कर देता है

मंत्र या भजन
शुरु होते ही
बंद कर
दिया जाता है

फोन करने वाला
सीधे मुद्दे की
बात पर
आ जाता है

एक दूसरे को
समझने समझाने
के प्रयास शुरु
हो जाते हैं

बिना देखे ही
बहुत ही करीब
आ जाते हैं

फोन आते ही
लड़की घर की
छत पर
चली जाती है

कोई ध्यान
नहीं देता है
फोन की घंटी
बजना और
फोन आने की
आवृतियाँ ही
अड़ोस पड़ोस में
घर की बड़ती हुई
साख का संदेश
पहुँचाते हैं

शहरों की बात
ही अलग है
दूर पहाड़ों के
गाँवों में रोटी
शाम की बने
या ना बने

फोन तरह तरह के
पाये जरूर जाते हैं

बलिहारी सूचना तंत्र
और सूचना विज्ञान के
होकर सभी झूमते
और गाते हैं

पानी का नल
सड़क अस्पताल
स्कूल नहीं भी
होते हैं पर
मोबाइल के
विशालकाय टावर
गाँव गाँव में
लगे हुऐ दूर से ही
नजर आ जाते हैं

गाँव के ही किसी
एक धनाड्य के लिये
दुधारी एक गाय
हो जाते हैं

कहानी लड़की की
फोन से शुरु होती है
फोन पर ही
खतम हो जाती है

ज्यादा नहीं कुछ
ही दिनों में
लड़की भाग गई
की खबर आती है

उसके बाद ताजिंदगी
लड़की गाँव में
नजर नहीं आती है

कुछ दिन की ही
शांति रहती है
फिर कहीं और किसी
लड़की के फोन पर
एक अंजान आवाज
आना शुरु हो जाती है

सिलसिला जारी है
खबरें अखबार में
रोज ही आती हैं

वो बात अजीब भी
नहीं लगती है
जिसकी रोज की
आदत जैसी
हो जाती है ।