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सोमवार, 2 जून 2014

एक रेल यहाँ भी रेलमपेल

लिखता
चलना
इस तरह
कि बनती
चली जाये
रेल की पटरी

और हों
पास में
ढेर सारे
शब्द

बन सकें
जिनके
इंजन डब्बे

और
बैठने के
लिये भी
हों कुछ
ऐसे शब्द
जिनको
बैठाया
जा सके
शब्दों की
ही बनी
सीटों पर

शब्दों की
ही बर्थ हो
सोने के लिये
भी हों शब्द
कुछ रात
भर के लिये

शब्दों के
सपने बनें
रेल के डब्बों
के अंदर ही
और
सुबह
हो जाये

उसके बाद
ही उठें शब्द
के ही प्रश्न
भी नींद से

कहाँ तक
पहुँचाई जा
सकती है
ऐसी रेल

जहाँ
बहुत ही
रेलमपेल हो
शब्दों के बने
डब्बों की
छत पर
शब्दों के
ऊपर चढ़े
शब्द हों

हाल हो
भारतीय रेल
का ही जैसा
सब कुछ

गंतव्य तक
पहुँचने ना
पहुँचने का
वहम ही
वहम हो

कुछ हो
या ना हो
कहीं
बस यात्रा
करते
रहने का
जुनून हो

सोचने में
क्या हर्ज है
जब शब्द ही
टी टी हों
और
शब्द ही चला
रहे रेल हों ।