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रविवार, 17 मई 2015

शिव की तीसरी आँख और उसके खुलने का भय अब नहीं होता है

शिव की
तीसरी आँख
और उसके
खुलने का भय
अब नहीं होता है
जब से महसूस
होने लगा है
खुद को छोड़
हर दूसरा शख्स
अपने सामने का
एक शिव ही होता है
और
नहीं होता है
अर्थ
लिखी हुई
दो पंक्तियों का
वही सब जो
लिखा होता है
शिव तो
पढ़ रहा होता है
बीच में
उन दोनो
पंक्तियों के
वही सब
जो कहीं भी
नहीं लिखा
हुआ होता है
उम्र बढ़ने
या आँखें
कमजोर होने
का असर भी
नहीं होता है
जो दिखता
है तुझे
तुझे लगता
है बस
कि वो
वही होता है
तू पढ़ रहा
होता है
लिखी इबारत
पंक्तियों में
शब्द दर शब्द
पंक्तियों के बीच
में नहीं लिखे
हुऐ का पता
पता चलता है
तुझे छोड़ कर
हर किसी
को होता है
भूल तेरी ही है
अब भी समझ ले
दो आँखे एक जैसी
होने से हर कोई
तेरे जैसा
नहीं होता है
हर कोई
तुझे छोड़ कर
शिव होता है
तीसरा नेत्र
जिसका
हर समय ही
खुला होता है
तू पढ़
रहा होता है
लिखे हुऐ को
शिव उधर
पंक्तियों के
बीच में
नहीं लिखे
हुऐ को
गढ़ रहा
होता है ।

चित्र साभार: www.fotosearch.com