उलूक टाइम्स: पञ्चतन्त्र
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सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

पञ्चतन्त्र में सुधार: कूदना छोड़ उड़ना सीख मेंढक

समुद्री जीव 
आक्टोपस
बना दिया गया एक कुऎं का राजा

मिलने जा पहुँचा 
मेंढकों से
जब सबने उससे बोला 
एक बार तो यहां आजा

कतार में खडे़ मेंढक
एक एक 
कर
अपना 
परिचय उसे देते ही जा रहे थे

कुछ
कुऎं ही में 
रहे हुऎ थे हमेशा
कुछ
अंदर बाहर 
भी
कभी कभी 
आ जा रहे थे

अपनी अपनी 
जीभों की लम्बाई
बता बता कर इतरा रहे थे
किस किस तरह के 
कीडे़ मकौडे़ मच्छर
वो कैसे कैसे खा रहे थे

महाराज लेकिन 
ये सब
कहाँ 
सुनने जा रहे थे

व्हेल एक 
पाल क्यों नहीं लेते
सब मेंढक मिल बाट कर
अच्छी तरह समझाये जा रहे थे

साथ में बता रहे थे
जिस समुद्र को
वो 
यहाँ के राज पाट के लिये
छोड़ 
के आ रहे थे

वहाँ
एक हजार 
समुद्री व्हेलों को 
खुद पाल के आ रहे थे

सारे समुद्र के 
समुद्री जन
व्हेल का तेल ही तेल बना रहे थे

कीडे़ मकौडे़ नहीं 
बड़ी मछली का मांस भी
साथ में खा रहे थे

वहाँ की
तरक्की का 
ये उपक्रम
वो मेंढकों 
से कुऎं में भी 
करवाना चाह रहे थे

मेंढक
शर्मा शर्मी 
हाँ में हाँ मिला रहे थे

मन ही मन
अपने 
कूदने की लम्बाई भी
भूलते जा रहे थे

बेचारों को
याद भी 
नहीं रह पा रहा था
कि
नम्बर एक और 
नम्बर दो करने भी 
अभी तक वो लोग
खेतों की ओर ही तो जा रहे थे

कितने कुऎं से 
बना होता होगा 
वो समुद्र
जहाँ 
से उनके राजा जी यहाँ आ रहे थे

कुंद हो रही थी 
बुद्धि अब 

सोच रहे थे
कुछ सोच भी क्योंं नहींं
 पा रहे थे ।

चित्र साभार: 
https://in.pinterest.com/

शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

क्षमा विष्णु शर्मा : संशोधन पञ्चतन्त्र के लिये


कल
की दावत में 
बस लोमड़ी दिखी थाली के साथ

पर
नजर नहीं आया 
कहीं बगुला अपनी सुराही के साथ 

विष्णु शर्मा 
तुम्हारा पञ्चतन्त्र 
इस जमाने में पता नहीं क्यों 
थोड़ा सा कहीं पर कतरा रहा है 

पैंतरे 
दिखा दिखा कर के नये 
नये छेदों से पता नहीं 
कहाँ से कहाँ घुस जा रहा है 

कुछ दिनों से 
क्योंकि
लोमड़ी और बगुला साथ नजर आ रहे हैं 

दावत में 
एक दूसरे को अपने अपने
घर भी नहीं बुला रहे हैं 

किसी तीसरी जगह 
साथ साथ दोनो अपनी उपस्थिति 
जरूर दर्ज करा रहे हैं 

लोमड़ी
अपनी थाली ले कर चली आ रही है 

बगुला भी 
सुराही दबाये बगल में 
दिख जा रहा है 

ना बगुला 
अपनी सुराही 
लोमड़ी की तरफ बढ़ाता है 

ना ही लोमड़ी
बगुले को 
थाली में खाने के लिये बुलाती है 

पर मजे की बात है 
दोनो ही मोटे होते जा रहे हैं 

दोनो ही 
कुछ ना कुछ लेकिन जरूर खा रहे हैं 

बहुत 
समझदार 
हो गये हैं सारे जानवर जंगल के 

विष्णु शर्मा जी 
फिर से आ जाओ 
नया पञ्चतन्त्र लिखो और देख लो 

जंगल राज 
कैसे जंगल से 
आदमी में घुस के आ गया है 

और 
जानवर 
आदमी बन के आदमी के अंदर 
पूरा का पूरा छा गया है । 

चित्र साभार: https://hubpages.com/