उलूक टाइम्स: फंडा
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मंगलवार, 23 दिसंबर 2014

सुधर क्यों नहीं जाता है छोटी सी बात करना सीखने के लिये क्यों नहीं कहीं दूर चला जाता है


छोटी छोटी बातों के ऊपर बातें बनाने से 
बात बहुत लम्बी हो जाती है 

अपने आस पास की धुंध गहरी होते होते 
धूल भरी एक आँधी हो जाती है 

बड़ी बात करने वाले को देखने सुनने से 
समझ में आ जाता है 

अच्छी 
मगर एक छोटी पक्की बात 
एक छोटे आदमी को 
कहाँ से कहाँ उठा ले जाती है 

एक छोटी बात से चिपका हुआ आदमी 
अपनी ही बनाई आँधी में आँखें मलता रह जाता है 

एक दिमागदार 
छोटी सी बात का मसीहा 
साल के हर दिन क्रिसमस मनाता है 

सोचने में अच्छा लगता है 
और बात भी समझ में आती है 

मगर 
छोटी छोटी बातों को खोजने परखने में 
सारी जिंदगी गुजर जाती है 

अपने आस पास के देश को देख देख कर 
देश प्रेम उमड़ने से पहले गायब हो जाता है 

देशभक्ति करने की सोच बनाने से पहले 
पुजारी को धंधा और धंधे का फंडा 
कदम कदम पर उलझाता है 

समझदार अपनी आँखों पर दूरबीन 
नाक पर कपड़ा और कान में रुई अंदर तक घुसाता है 

उसका दिखाना दूर आसमान में 
एक चमकता तारा 
गजब का माहौल बनाता है 
तालियों की गड़गड़ाहट में 
सारा आसमान गुंजायमान हो जाता है 

‘उलूक’ आदतन अपनी 
अपने अगल बगल के 
दियों से चोरे गये तेल के 
निशानों के पीछे पीछे 
इस गली से उस गली में चक्कर लगाता है 

कुछ भी हाथ में नहीं लगने के बाद 
खीजता हुआ 
एक लम्बे रास्ते का नक्शा बना कर 
यहाँ छाप जाता है 
छोटे दिमाग की छोटी सोच का 
एक लम्बा उदाहरण और तैयार हो जाता है । 


चित्र साभार: www.gograph.com