उलूक टाइम्स: मित्रता दिवस
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रविवार, 2 अगस्त 2015

मित्रता दिवस मना भी लीजिये कम से कम मन ही मन में तो मनाना ही चाहिये

रोज के दिमाग में
दौड़ते फालतू चित्रों
की सोचने की छोड़
किसी दिन कुछ नया
कुछ खुश्बूदार
भी पकाना चाहिये
अच्छे होते हैं दिनों
के बीच के कुछ दिन
उनको भी भुनाना चाहिये
पिता का दिन माता का दिन
गुरु का दिन भ्राता का दिन
प्यार का दिन दुलार का दिन
झगड़े का दिन मनुहार का दिन
तीन सौ पैंसठ नहीं हुऐ हैं
गिन के देख लीजिये जनाब
इतना तो कम से कम
गिनती करना आना ही चाहिये
सभी नहीं भरे हैं अभी बचे हैं
कुछ आधे हैं कुछ अधूरे हैं
पूरे होने होने तक एक दिन
छोड़ के एक नया कुछ नया दिन
किसी ना किसी का बनाना चाहिये
खुश्बू के लिये कुछ इत्र छिड़कने
में भी कोई बुराई नहीं है
थोड़ा खुद को थोड़ा इस को
उस को भी लगाना चाहिये
इस से पहले भूलना शुरु
हो जाये कोई साल का एक दिन
उसका भी एक दिन मनाना चाहिये
मित्रों के मित्र को मित्रता
को निभाना चाहिये
दो चारों से तो रोज हो ही
जाती है मुक्का लात यहाँ
उनको भी रोज रोज आने
में थोड़ा सा शर्माना चाहिये
हजारों में हजार नहीं
मिल पाते हैं एक बार
कम से कम आज के दिन
आ कर मिल कर जाना चाहिये
मित्रता दिवस की शुभकामनाऐं
रख दी हैं सामने से मित्रो
आज नहीं कल नहीं साल में
किसी एक दिन उठा
के ले जाना भी चाहिये ।

चित्र साभार: oomlaut.com