उलूक टाइम्स: सुलझ
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सोमवार, 11 नवंबर 2013

उलझन उलझी रहे अपने आप से तो आसानी हो जाती है

उलझाती है
इसीलिये तो
उलझन
कहलाती है

सुलझ गई
किसी तरह
किसी की तो
किसी और
के लिये यही
बात एक
उलझन
हो जाती है

अब उलझन का
क्या किया जाये
कुछ फितरत में
होता है किसी के
उलझना किसी से

कुछ के नहीं होती है
अगर कोई उलझन
पैदा कर दी जाती हैं
उलझने एक नहीं कई

कहीं एक सवाल
से उलझन
कहीं एक बबाल
से उलझन

किसी के लिये
आँखें किसी की
हो जाती हैं उलझन

किसी के लिये
जुल्फें ही बन
जाती हैं उलझन

सुलझा हुआ
है कोई कहीं
तो आँखिर है कैसे
बिना यहां
किसी उलझन

उलझनों का
ना होना किसी
के पास ही
एक आफत
हो जाती है

अपनो को तक पसंद
नहीं आती है ये बात

इसीलिये पैर
उलझाये जाते है
किसी के किसी से

घर ही के अपने
बनाते हैं कुछ
ऐसी उलझन

सबकी होती है
और जरूर होती है
कुछ ना कुछ उलझन

अपनी अपनी अलग
तरह की उलझन
देश की उलझन
राज्य की उलझन
शहर की उलझन
मौहल्ले घर
गली की उलझन

उलझन होती है
होने से भी
कुछ नहीं होता है
वो अपनी जगह
अपना काम करती है
उलझाने का

पर उलझने को कौन
कहाँ तैयार होता है
अपनी उलझन से
उसे तो किसी
और की उलझन
से प्यार होता है

सारी जिंदगी
उलझने यूं ही
उलझने रह जाती हैं

सबकी अपनी
अपनी होती हैं
कहाँ फंसा पाती हैं

अपनी जुल्फों को
देखने के लिये
आईना जरूरी होता है
सामने वाले की जुल्फ
साफ नजर आती है

आसानी से
सुलझाई जाती हैं
अपनी उलझन
अपने में ही
उलझी रह जाती है ।