उलूक टाइम्स: हताश
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सोमवार, 19 अगस्त 2019

कलम की भी आँखें निकल सकती हैं कभी चश्मे भी आ सकते हैं बाजार में पढ़ देने वाले निराश नहीं होते हैं




कुछ
लिखते
बहुत कुछ हैं

मगर
किताब
नहीं होते हैं 

कुछ
लिखी
लिखायी
किताबों के

पन्ने
साथ
नहीं होते हैं 

कुछ
किताबें
देखते हैं

लिखते हैं
दिन
और रात
नहीं होते हैं 

किताबों
को
लिखना
नहीं होता है

उनके
हाथ नहीं होते हैं 

कुछ
बस
लिखते
चले जाते हैं

रुकने के
हालात
नहीं होते हैं 

चलती
कलम होती हैं

और

पैर
कभी
किसी के
आँख
नहीं होते हैं 

अजीब
सा रोते हैं

कुछ
रोने वाले
हमेशा
सोच कर

बेबात
नहीं रोते हैं 

लिखें
और
पढ़ें भी

पढ़ें और
लिखें भी

दो रास्ते

एक
साथ
नहीं होते हैं 

सीखने वाले
सीख लेते हैं
लिखते पढ़ते

कुछ ना कुछ
लिखना पढ़ना
‘उलूक’

इतना
भी
हताश
नहीं होते हैं

कलम
की भी

आँखें
निकल
सकती हैं
कभी

चश्मे भी
आ सकते हैं
बाजार में
पढ़
देने वाले

निराश
नहीं होते हैं ।

चित्र साभार: https://www.123rf.com