उलूक टाइम्स: 500
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बुधवार, 11 अप्रैल 2018

सौ पाँचसौ हजार के चक्कर में कौन नहीं आता है

जिन्दगी
शुरु होती है
और
गिनतियाँ
शुरु हो जाती है

शून्य कहीं भी
किसी को नहीं
सिखाया जाता है

एक से शुरु
की जाती हैं
गिनतियाँ

सारा सब कुछ
पैदा होते ही
एक
हिसाब किताब
हो जाता है

बताया ही
नहीं जाता है
समझाया भी
नहीं जाता है

फिर भी
गिनतियाँ
खुद उसी तरफ
उसी रास्ते पर
अँगुली पकड़ कर
खींच ले जाती हैं

जिस तरह
हिसाब किताब
चलता चला जाता है

हर किसी को
आता है गिनना
मौका मिलते ही
गिनना शुरु
हो जाता है

सामने वाले के
हिसाब किताब को
अँगुलियों में
कर ले जाता है

कोई पूछ बैठे 
उससे उसके
हिसाब किताब
के बारे में

गिनतियाँ करना
भूल बैठा है
किसी जमाने से
बताने में
जरा सा भी
नहीं शर्माता है

बहुत
आसान होता है
गिनना अपने
सामने वाले
की उम्र को
उसके
चेहरे पर

हर चेहरा
कुछ नहीं
कहने के
बावजूद
बहुत कुछ
बताता है

आसान होता है
गिनना सामने
खड़े पेड़ 

की उम्र भी

अलग बात है
यहाँ गोल गहरी
पड़ी रेखाओं से
समय का हिसाब
लगाया जाता है

लाखों गिनता है
करोड़ों गिनता है
अरब खरब तक
पहुँचने का
जुगाड़ लगाता है

सौ तक पहुँचने वाले
एक दो होते हैं
सोच में आने से
पहले ही गजल
गुनगुनाना चाहता है

आदत से मजबूर
लेकिन पाँच सौ
हजार दो हजार
दिखते ही
बत्तीस दाँत
एक साथ दिखाता है

‘उलूक’
उल्टी गिनतियाँ
चलती रहती
हैं साथ साथ
पता
कहाँ चलता है
राकेट
कब कहाँ
और क्यों
छूट जाता है ।

चित्र साभार: http://www.clipartpanda.com

शनिवार, 30 नवंबर 2013

और ये हो गयी पाँचसौंवी बकवास

इससे पहले 
उबलते उबलते 
कुछ छलक कर गिरे 
और बिखर जाये जमीन पर तिनका तिनका 

छींटे पड़े कहीं सफेद दीवार पर 
कुछ काले पीले धब्बे बनायें 

लिख लिया कर 
मेरी तरह रोज का रोज 
कुछ ना कुछ कहीं ना कहीं

किसी रद्दी कागज के टुकड़े पर ही सही 

कागज में लिखा बहुत आसान होता है 
छिपा लेना मिटा लेना 
आसान होता है जला लेना 

राख
हवा के साथ उड़ जाती है 
बारिश के साथ बह जाती है 
बहुत कुछ हल्का हो जाता है 

बहुत से लोग 
कुछ भी नहीं कहते हैं 
ना ही उनका लिखा हुआ 
कहीं नजर में आता है 

और
एक तू है 
जब भी भीड़ के
सामने जाता है 

बहुत कुछ लिखा हुआ 
तेरे चेहरे माथे और आँखों में 
साफ नजर आ जाता है 

तुझे पता भी नहीं चलता है 
हर कोई तुझे 
कब और किस समय 
पढ़ ले जाता है 

मत हुआ कर सरे आम नंगा
इस तरह से 

जब कागज में 
सब कुछ लिख लिखा कर 
आसानी से बचा जाता है 

कब से लिख रहा है 'उलूक' 
देखता नहीं क्या 

एक था पन्ना कभी 
जो आज लिखते लिखते 
हजार का आधा हो जाता है ।

चित्र साभार: https://www.123rf.com/