बेअक्ल
बेवकूफ
लोगों का
अपना
रास्ता
होता है
भीड़
अपने रास्ते
में होती है
भीड़
गलत
नहीं होती है
भीड़
भीड़ होती है
भीड़
से अलग
हो जाने वाले
के हाथ में
कुछ नहीं होता है
हर किसी
के लिये
एक अलग
रास्ते का
इंतजाम होना
सँभव
नहीं होता है
भीड़
बनने
का अपना
तरीका
होता है
इधर
बने या
उधर बने
भीड़
बनाने का
न्योता होता है
भीड़
कुछ करे
ना करे
भीड़ से
कुछ नहीं
कहना होता है
भीड़
के पास
उसके अपने
तर्क होते हैं
कुतर्क
करने
वाले के लिये
भीड़ में घुसने
का कोई
मौका ही
नहीं होता है
भीड़
के अपने
नियम
कानून
होते हैं
भीड़
का भी
वकील होता है
भीड़
में किसका
कितना हिस्सा
होता है
चेहरे में
कहीं ना कहीं
लिखा होता है
किसी
की
मजबूरी
होती है
भीड़ में
बने रहना
किसी
को भीड़ से
लगते हुए डर से
अलग होना होता है
छोटी
भीड़ का
बड़ा होना
और
बड़ी
भीड़ का
सिकुड़ जाना
इस
भीड़ से
उस भीड़ में
खिसक जाने
से होता है
‘उलूक’
किसी एक
को देख कर
भीड़ की बाते
बताने वाला
सबसे बड़ा
बेवकूफ होता है
चरित्र
एक का
अलग
और
भीड़
का सबसे
अलग होता है ।
बेवकूफ
लोगों का
अपना
रास्ता
होता है
भीड़
अपने रास्ते
में होती है
भीड़
गलत
नहीं होती है
भीड़
भीड़ होती है
भीड़
से अलग
हो जाने वाले
के हाथ में
कुछ नहीं होता है
हर किसी
के लिये
एक अलग
रास्ते का
इंतजाम होना
सँभव
नहीं होता है
भीड़
बनने
का अपना
तरीका
होता है
इधर
बने या
उधर बने
भीड़
बनाने का
न्योता होता है
भीड़
कुछ करे
ना करे
भीड़ से
कुछ नहीं
कहना होता है
भीड़
के पास
उसके अपने
तर्क होते हैं
कुतर्क
करने
वाले के लिये
भीड़ में घुसने
का कोई
मौका ही
नहीं होता है
भीड़
के अपने
नियम
कानून
होते हैं
भीड़
का भी
वकील होता है
भीड़
में किसका
कितना हिस्सा
होता है
चेहरे में
कहीं ना कहीं
लिखा होता है
किसी
की
मजबूरी
होती है
भीड़ में
बने रहना
किसी
को भीड़ से
लगते हुए डर से
अलग होना होता है
छोटी
भीड़ का
बड़ा होना
और
बड़ी
भीड़ का
सिकुड़ जाना
इस
भीड़ से
उस भीड़ में
खिसक जाने
से होता है
‘उलूक’
किसी एक
को देख कर
भीड़ की बाते
बताने वाला
सबसे बड़ा
बेवकूफ होता है
चरित्र
एक का
अलग
और
भीड़
का सबसे
अलग होता है ।
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ राजीव जी ।
हटाएंबढ़िया लेखन सर , धन्यवाद ツ
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आभार आशीष ।
हटाएंआपकी लिखी रचना बुधवार 21 मई 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
आपके दिये इस सम्मान के लिये आभारी हूँ दिग्विजय जी ।
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (21-05-2014) को "रविकर का प्रणाम" (चर्चा मंच 1619) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आभार शास्त्री जी ।
हटाएंभीड़ एक चरित्र नहीं
जवाब देंहटाएंआवाज़ नहीं
सिर्फ शोर है
भीड़ का कोई अस्तित्व नहीं होता
सिंह कभी समूह में नहीं चलता
हंस पांतों में नहीं उड़ते
आभार आप आई :)
हटाएंबिल्कुल सत्य कहा आपने
जवाब देंहटाएंआभार ।
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन जल ही जीवन है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआभार ।
हटाएंबहुत उम्दा ....सटीक रेखांकन है
जवाब देंहटाएंआभार ।
हटाएंभीड़ का कोई चरित्र, कोई चेहरा नहीं होता और कोई व्यवस्था भी नहीं.
जवाब देंहटाएंआभार ।
हटाएंभीड़ एक चरित्र नहीं
जवाब देंहटाएंआवाज़ नहीं
सिर्फ शोर है ....बहुत उम्दा...
आभार कौशल जी ।
हटाएंहाँ ये उम्दा लाईने आदरणीय रश्मि प्रभा जी की हैं जो आपने लिखी हैं :)
भीड़ का सुन्दर चित्रण !!
जवाब देंहटाएंआभार !
हटाएंkya bat hai.... bheed ka acchha warnan ......
जवाब देंहटाएंआभार !
हटाएंभीड होता है भे़डों का झुंड जिधर हांको चलेगी। फिर आदमी तो भीड में भी अकेला ही होता है।
जवाब देंहटाएंआभार !
हटाएंHmmm... sahi.
जवाब देंहटाएंDhanyawad. :)
आभार !
हटाएंभीड़ का कोई सिद्धांत नहीं होता
जवाब देंहटाएंआभार !
हटाएं