उलूक टाइम्स: अगस्त 2025

मंगलवार, 12 अगस्त 2025

जंगल की बात कर दिखा चारों तरफ सारा हरा हरा


सोच कर के लिख कुछ
कुछ लिख कर के सोच
सिक्का उछाल
हवा में रोज का रोज
चित भी तेरी पट भी तेरी
किसे देखना है
किसे है कुछ होश
खड़ा हो जाए अगर
दे डाल एक भोज
दे डाल एक भोज
अखबार में सिक्का जरूर छपवा
परदे के पीछे हो चुके अनर्थ को
मिट्टी डाल ले दे के पीछा छुड़ा
ले दे के पीछा छुड़ा
बर्बाद कर खुद ही घर को जरा जरा
खीसें निपोर रोज सुबह शाम को मुस्कुरा
जंगल की बात कर दिखा चारों तरफ सारा हरा हरा
पूछे कोई कुछ
आंखें लाल कर नस दबा
मोगेमबो की फ़ोटो दिखा और डरा
‘उलूक’ कथा “नौ महीने”
पटाक्षेप सुनहरा
सूंघे पत्रकार खबर फैली हुई
जो हो गया उस पर तिरंगा लहरा |

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/

वैधानिक चेतावनी : सत्य कथा पर आधारित बकवास में पात्रों का जिक्र नहीं किया गया है |




रविवार, 10 अगस्त 2025

पहुंचा कर महफ़िलों में बिना भूले कि प्रश्न पाठ्यक्रम से हटा दिए गए हैं

हां सही किया
देर से ही सही
इधर उधर देखना छोड़ दिया
और सीख लिया
नाक की सीध में चलना
नाक को ही बस देखते हुए

तुझे ज्ञान होना चाहिए
कि तेरा अस्तित्व तभी तक है
जब तक तेरी आंखें बंद हैं
जुबां सिली हुई है
और कानों में मैला जमा हुआ है

हां तेरे आने जाने में
कोई रोक टोक
कहीं भी नहीं है कभी भी नहीं है
बड़ी महफिलों में तो खासकर
पर वैधानिक चेतावनी के साथ
कि शर्तें लागू हैं

हां तू स्वतंत्र भी है
और 15 अगस्त भी
बस 5 ही दिन नजदीक है
सफेद कपड़े देख लेना
सिलवटें तो नहीं बची हैं
पिछले सालों की

आना है तुझे अनिवार्य रूप से
झंडारोहण देखने और सुनने भाषण
वो बात अलग है
तुझे रहना होगा वहां भी शशर्त

खबरदार
आदत डाल ले कि सब कुछ उत्तर होता है
प्रश्न पाठ्यक्रम से हटा दिए गए हैं

हां बकवास करने से
तुझे कोई नहीं रोक रहा है ‘उलूक’
वो भी शशर्त वैधानिक चेतावनी के साथ
कि पढ़ने के बाद कोई ये नहीं कह बैठे
समझ में आ गया है |

चित्र साभार: https://www.istockphoto.com/

शुक्रवार, 8 अगस्त 2025

कह नहीं देना जरा सा भी मंजूरे खुदा होता है

 
गले तक आता है कुछ
मुंह में कुछ और होता है
उलटने में निकलता है जो
वो कुछ और होता है

जलन होती ही है
जब जलता है कुछ हौले हौले अंदर कहीं
आग किसने लगायी है
आग कैसे लगायी है से क्या होता है

लौ होती नहीं है कोयला बनता नहीं है
राख उड़ती नहीं है
दियासलाईयां कागज पर कई
एक साथ लिखने से क्या होता है

ख़लिश को कसक कह लें
टीस कह लें या चुभन भी कह लें
तोहफा किस ने दिया है
सोच लेना ही बस जरूरी होता है

तंग नजर को चश्मे दिलाने की
सोचना किस लिए
आत्मघाती के लिए
मरने मारने का जज़्बा होना
जरूरी नहीं होता है

हजार आंखें देखेंगी
एक कबूतर बैठा हुआ मुंडेर पर
समझाएंगी तीतर बटेर कौआ
 आंखे खोल कर देखने से भी क्या होता है

‘उलूक’ देखना तुझ को भी है
आंखें खुली भी रखनी है
कबूतर है सोच ही लेना खाली
कह नहीं देना जरा सा भी
मंजूरे खुदा होता है |

चित्र साभार: https://stock.adobe.com/


बुधवार, 6 अगस्त 2025

हर किसी को करना है बहुत कुछ ऐसा जो तेरे हिसाब का कुछ भी नहीं

पता है लिख रहे हो तुम
बहुत कुछ बहुत संजीदा सा
मगर इस दुनियां का
उसमें कुछ भी नहीं

सारे जवाब हैं
तुम्हारे खुद के प्रश्नों के हैं
और हैं भी सटीक
किसी के मतलब का
उसमें कुछ भी नहीं

नदी ने
सवाल नहीं पूछे हैं कभी भी
बस चल दी है
लाव लश्कर के साथ
अपने ही रास्ते
तेरा कुछ हुआ क्या
कुछ भी नहीं

कविता लिखने में
किसने कह दिया तुझसे
सवाल होने जरूरी होते हैं
रहने भी दे
होना नहीं है कुछ
कुछ भी नहीं

कुछ होने के लक्षण
कुछ करने वालों के
लक्षणों से मिलाए जाते हैं
जैसे कुण्डली के
कुछ गुण होते हैं
कुछ भी नहीं

कुछ भी
और कुछ भी नहीं में
अंतर किसे समझाए कोई कुछ
समझदानी किसी की छोटी
किसी की बहुत बड़ी
किसी की कुछ भी नहीं 

‘उलूक’ रहने क्यों नहीं देता है
सबको अपने अपने हिसाब से
जब हर किसी को करना है
बहुत कुछ ऐसा
जो तेरे हिसाब का
कुछ भी नहीं

चित्र साभार:https://www.shutterstock.com/


सोमवार, 4 अगस्त 2025

फिलम साधू साधू -दो


 पिछला 
साधू साधू 
अभी कोई समझ नहीं पाया 
तू दूसरा एपिसोड 
साधू साधू का ले कर के क्यों आया 

तेरा
कुछ नहीं हो सकता है कालिये 
कुछ भी लिखने की आदत से 
बता रहे हैं
हजूर 
खुद को निकालिए 

आज खबर में
एक साधू दिख रहा है 
सारा मीडिया साधू के खिलाफ 
लिखा लिखाया कुछ बक रहा है 

जनता को वैसे भी 
कुछ समझ में नहीं आता है 
उसे तो बस वोट देते समय 
एक दाड़ी वाला साधू
सामने से नजर आता है 

लिखना सबको आता है 
कोई कहानी लिखता है 
कोई एक अपने  लिखे  कूड़े को 
कविता है बताता है 

कौन पढ़ने आता है कौन नहीं आता है 
पेज हिट गजब की चीज होती है 
बकवासी के लाखों हो गए होते हैं 
वो बताने में इतराता है 

एक कथावाचक की कहानी 
टी वी आज चला रहा है 
जनता रस ले रही है 
सबको मजा आ रहा है 

जय श्री राम वाले 
जय श्री राधे जय श्री कृष्णा 
अब सुना रहे हैं 
दाड़ी बाबा को नई कहानी सुना रहे हैं 

बकवासी 
बकवास करने से बाज नहीं आ रहा है 
अंधा रात का 
दिन की कहानी 
यहां किसलिए लेकर के आ रहा है 

बूझिए कभी 
लिखने पढ़ने में कौन सा जो हो जा रहा है 
‘उलूक’ भी
बकने से कौन सा बाज आ रहा है  

चित्र साभार:
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शनिवार, 2 अगस्त 2025

नागा बाबा होना साधू साधू से अच्छा होता है का मतलब समझ में आ जाता है

 

सारे साधू एक ही होते हैं
पता चल जाता है
एक साधू साधू की खबर
खुद अपने पैसे दे कर
अखबार में छपवाता है
साधू साधू
किसलिए कहा जाता है
तब समझ में आता है
जब टाई पहना हुआ एक साधू
सामने से आके
आपसे हाथ मिलाता है
और मुस्कुराता है
साधुओं से मिलकर
अंतरात्मा खुश ही नहीं तृप्त हो जाती है
साधू ही धर्म होता है
साधू ही जाति होती है
साधू ही मानवता होती है
साधू ही कृष्ण साधू ही राम हो जाता है
सबसे बड़ा साधू
आपके आस पास ही होता है
साधू साधू खेलता है
आपको पता ही नहीं चल पाता है
हम सब कितने भ्रमित होते हैं
कहां जा रहे होते हैं
क्या कर रहे होते हैं
साधू हमें भटकने से बचाता है
समय बदल गया है
साधू इसे भी समझाता है
साधू साधू जपिए
फायदे  गिनाता है
साधू की एक मुहिम होती है
कुछ भी कर ले जाने के लिए
किसी भी एक साधू को
तीर बनाता है
एक साधू धनुष हो जाता है
एक साधू अर्जुन हो जाता है
एक साधू मछली की आंख हो जाता है
साधू साधू है
सभी साधुओं के लिए
‘उलूक’ को गर्व है
कलयुगी ऐसे सारे साधुओं में
उसे नागा बाबा होना
साधू साधू से अच्छा होता है
का मतलब समझ में आ जाता है |

चित्र साभार:
https://www.vecteezy.com/