उलूक टाइम्स: मुट्ठी बंद दिखने का वहम हो सकता है पर खुलने का समय सच में आता है

बुधवार, 21 मई 2014

मुट्ठी बंद दिखने का वहम हो सकता है पर खुलने का समय सच में आता है



अंगुलियों
को 

मोड़कर 
मुट्ठी बना लेना 

कुछ भी
पकड़ 
लेने
की
शुरुआत 

पैदा होते हुऐ 
बच्चे
के साथ 

आगे भी
चलती 
चली जाती है 

पकड़
शुरु में 
कोमल होती है 

होते होते
बहुत
कठोर
हो जाती है 

किसी भी
चीज को 
पकड़ लेने की सोच 

चाँद
भी पकड़ने
के 
लिये
लपक जाती है 

पकड़ने की
यही 
कोशिश
कुछ 
ना कुछ
रंग 
जरूर दिखाती है 

आ ही
जाता है 
कुछ ना कुछ 
छोटी सी मुट्ठी में 

मुट्ठी
बड़ी और बड़ी 
होना
शुरु हो जाती है 

सब कुछ हो 
रहा होता है 

बस
आँख बंद 
हो जाती है 

फिर
आँख और 
मुट्ठी 
खुलना शुरु 
होती है

जब 
लगने लगता है 
बहुत कुछ

जैसे
हवा पानी 
पहाड़ अपेक्षाऐं 
मुट्ठी में आ चुकी हैं 

और
पकड़ 
उसके बाद 
यहीं से

ढीली 
पड़ना शुरु 
हो जाती है 

‘उलूक’
वक्र का 
ढलना
यहीं से 
सीखा जाता है 

वक्र का
शिखर 
मुट्ठी से बाहर 
आ ही जाता है 

उस समय
जब 
सभी कुछ
मुट्ठी 
में
समाया हुआ 

मुट्ठी में
नहीं 
मिल पाता है 

अपनी अपनी
जगह 
जहाँ था

वहीं
जैसे 
वापस
चला जाता है 

अँगुलियाँ
सीधी 
हो
चुकी होती हैं 

जहाज
के
उड़ने का 
समय
हो जाता है ।


चित्र साभार:
 http://www.multiversitycomics.com/

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-05-2014 को चर्चा मंच पर अच्छे दिन { चर्चा - 1620 } में दिया गया है
    आभार

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  2. ओह, ... पानी में मिल के पानी, अफसोस ये के फ़ानी ...

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 24 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. जैसे
    हवा पानी
    पहाड़ अपेक्षाऐं
    मुट्ठी में आ चुकी हैं


    जहाज
    के
    उड़ने का
    समय
    हो जाता है ।

    आज के हालात में तो चेत जाएं... छ साल पहले की भविष्यवाणी सच साबित हो रही..

    सार्थक लेखन

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  5. गज़ब!!
    मुठ्ठी बंद होकर खुलने का सफर है जिंदगी ।
    सच !! विमान उड़ान के समय अंगुलिया खुल जाना या कहो हाथ पसारे जाना ।
    शानदार।

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  6. बहुत ही सुंदर रचना. जीवन का सुंदर संदेश और सबक़ बड़ी ख़ूबसूरती से उभारती है आपकी लाजवाब रचना.
    सादर प्रणाम आदरणीय सर.

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