उलूक टाइम्स: राम
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गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

मैरी क्रिसमस टू यू

पितामह
और
संध्याकाल

गणेश
स्तुति
रामरक्षा
हनुमान
चालीसा
और
ध्यान

कहीं
अंधेरे में
कुछ कुछ
दिखता हुआ

शायद
भगवान

सुबह
की दौड़
बस्ता

प्रार्थना सभा
ईशू के गीत

चमकता
चेहरा
दाड़ी
कुछ कथाऐं

बलिदान
करता हुआ
एक भगवान

पच्चीस दिसम्बर
सजी हुई
एक इमारत

मोमबत्तियाँ
केक चर्च
कहानियाँ
और
कहानियों
में ही कहीं
कोई
एक शैतान

चर्च की
बजती घंटियाँ
मंदिर की
आरतियाँ

सलीब
पर लटका
कोई
एक ईश्वर
गुदा हुआ
कीलों से

रिसता
हुआ खून

बलिदान
करता
एक भगवान

राम में ईशू
ईशू में राम
भगवान ईश्वर
धनुष तलवार
शंखनाद घंटियाँ
मधुर आवाज

बचपन
से पचपन
की ओर
धर्म और
अधर्म

आदमी
और शैतान
आदमी से
आदमी
की कम
होती पहचान

ना दिखे राम
ना मिले ईशू
होते चले
इसके उसके
और
मेरे भगवान

बाकी
कुछ नहीं
रह गया
कहने को

क्या कहूँ
बस
कुछ भूलूँ
कुछ
याद करूँ

हैप्पी
क्रिसमस टू यू
मैरी
क्रिसमस टू यू ।

चित्र साभार: luvly.co

मंगलवार, 30 सितंबर 2014

तोते के बारे में तोता कुछ बताता है जो तोते को ही समझ में आता है


तोते कई तरह के पाये जाते है
कई रंगों में कई प्रकार के
कुछ छोटे कुछ बहुत ही बड़े

तोतों का कहा हुआ तोते ही समझ पाते हैं

हरे तोते पीले तोते की बात समझते हैं
या पीले पीले की बातों पर अपना ध्यान लगाते हैं

तोतों को समझने वाले ही
इस सब पर अपनी राय बनाते हैं

किसी किसी को शौक होता है तोते पालने का
और किसी को खाली पालने का शौक दिखाने का

कोई मेहनत कर के
तोतों को बोलना सिखा ले जाता है
उसकी अपनी सोच के साथ
तोता भी अपनी सोच को मिला ले जाता है

किसी घर से सुबह सवेरे
राम राम सुनाई दे जाता है
किसी घर का तोता चोर चोर चिल्लाता है

कोई सालों साल
उल्टा सीधा करने के बाद भी
अपने तोते के मुँह से
कोई आवाज नहीं निकलवा पाता है

‘उलूक’ को क्या करना इस सबसे

वो जब उल्लुओं के बारे में ही कुछ
नहीं कह पाता है

तो हरों के हरे
और पीलों के पीले
तोतों के बारे में कुछ पूछने पर

अपनी पूँछ को अपनी चोंच पर चिपका कर
चुप रहने का संकेत जरूर दे जाता है

पर तोते तो तोते होते हैं
और तोतों को तोतों का कुछ भी कर लेना
बहुत अच्छी तरह से समझ में आ जाता है ।

चित्र साभार: http://www.www2.free-clipart.net/

रविवार, 27 अप्रैल 2014

कुछ दिन के लिये ही मान ले हाथ में है और एक कीमती खिलौना है

आज को भी
कल के लिये
एक कहानी
ही होना है
ना उसमें कोई
राम होना है
ना किसी रावण
को होना है
हनुमान दिख रहे
चारों तरफ पर
उन्हे भी कौन सा
एक हनुमान
ही होना है
राम की एक
तस्वीर होनी है
बंदरों के बीच
घमासान होना है
ना कौरव
को होना है
ना पाँडव
को होना है
शतरंज की बड़ी
बिसात होनी है
सेना को बस
एक लाईन में
खड़ा होना है
ना तलवार
होनी है
ना कोई
वार होना है
अंगुली स्याही
से धोनी है
बस एक काला
निशान होना है
बड़े मोहरों
को दिखना है
बिसात के
बाहर होना है
इसे उसके लिये
वहाँ कुछ कहना है
उसको इसके लिये
यहाँ कुछ कहना है
रावण को लंका
में ही रहना है
राम को अयोध्या
में ही कहना है
आस पास का
रोज का सब ही
एक सा तो रोना है
‘उलूक’ दुखी इतना
भी नहीं होना है
जो कुछ आ जाये
खाली दिमाग में
यहाँ लिख लिखा
के डुबोना है ।

शनिवार, 19 अप्रैल 2014

गजब की बात है वहाँ पर तक हो रही होती है

आशा और
निराशा की
नहीं हो
रही होती है

शमशान घाट
में जब
दुनियादारी
की बात
हो रही होती है

मोह माया
त्याग करने
की भावना की
जरूरत ही
शायद नहीं
हो रही होती है

बदल गया
है नजरिया
देखिये इस
तरह कुछ

वहाँ पर अब
जीने और
मरने की
कोई नहीं

राहुल रावत
और मोदी
की बात
हो रही होती है

राम के
सत्य नाम
से उलझ
रही होती है

जब तक
चार कंधों में
झूलते चल
रही होती है

चिता में
रखने तक की
सुनसानी हो
रही होती है 

आग लगते
ही बहुत
फुर्सत में
हो रही होती है

कुछ कहने
सुनने की
नहीं बच
रही होती है

ये बात भी बस
एक बात ही है

आज के
अखबार के
किसी पन्ने
में ही कहीं पर
छप रही होती है

मरने वाले
की बात
कहीं पर
भी नहीं
हो रही होती है

इस बार
उसकी वोट
नहीं पड़
रही होती है

जनाजों में
भीड़ भी
बहुत बढ़
रही होती है

किसी के
मरने की खबर
होती है कहीं
पर जरूर

चुनाव पर
बहस पढ़ने पर
कहीं बीच
में खबर के
कहीं पर घुसी
ढूंढने से
मिल रही होती है । 

मंगलवार, 4 मार्च 2014

तेरी कहानी का होगा ये फैसला नही था कुछ पता इधर भी और उधर भी

वो जमाना
नहीं रहा
जब उलझ
जाते थे
एक छोटी सी
कहानी में ही
अब तो
कितनी गीताऐं
कितनी सीताऐं
कितने राम
सरे आम
देखते हैं
रोज का रोज
इधर भी
और उधर भी
पर्दा गिरेगा
इतनी जल्दी
सोचा भी नहीं था
अच्छा किया
अपने आप
बोल दिया उसने
अपना ही था
अपना ही है
सिर पर हाथ रख
कर बहुत आसानी से
उधर भी और इधर भी
हर कहाँनी
सिखाती है
कुछ ना कुछ
कहा जाता रहा है
देखने वाले का
नजरिया देखना
ज्यादा जरूरी होता है
सुना जाता है
उधर भी और इधर भी
कितना अच्छा हुआ
मेले में बिछुड़ा हुआ
कोई जैसे बहुत दूर से
आकर बस यूँ ही मिला
दूरबीन लगा कर
देखने वालों को
मगर कुछ भी
ना मिला देखने
को सिलसिला कुछ
इस तरह का
जब चल पड़ा
इधर भी और उधर भी
उसको भी पता था
इसको भी पता था
हमको भी पता था
होने वाला है
यही सब जा कर अंतत:
इधर भी और उधर भी
रह गया तो बस
केवल इतना गिला
देखा तुझे ही क्योंकर
इस तरह सबने
इतनी देर में जाकर
तीरंदाज मेरे घर में
भी थे तेरे जैसे कई
इधर भी और उधर भी
खुल गया सब कुछ
बहुत आसानी से
चलो इस बार
अगली बार रहे
ध्यान इतना
देखना है सब कुछ
सजग होकर तुझे
इधर भी और उधर भी । 

सोमवार, 14 अक्तूबर 2013

राम का नहीं पता रावण को जिंदा रखना चाहते हैं

हर साल ही तो हम
बुराई पर अच्छाई की
विजय का पर्व मनाते हैं
ऐक दिन के खेल के लिये
तेरा ही नहीं तेरे पूरे
खानदान के पुतले
हम बनाते हैं
साल दर साल
मैंदानो और सड़को पर
तेरा मजमा हम लगाते हैं
राम के हाथों आज के
दिन मारे गये रावण
विजया दशमी के दिन
हमें खुद पता नहीं होता है
कि हम क्या जलाते हैं
कितनी बार जल चुका है
अभी तक नहीं जल सका है
जिंदा रखने के लिये ही
उस चीज को हम
एक बार फिर जलाते हैं
आज के दिन को एक
यादगार दिन बनाते हैं
राम के हाथों हुआ था
खत्म रावण या रावणत्व
इतनी समझ आने में
तो युग बीत जाते हैं
शिव के लिये रावण की
अगाध श्रद्धा और उसके
लिखे शिव तांडव स्त्रोत्र की
बात किसी को कहाँ बताते हैं
किस्से कहाँनियों तक
रहती हैं बातें जब तक
सभी लुफ्त उठाने से
बाज नहीं आते हैं
पुतले जलाने वाले ही
पुतले जलाने के बाद
खुद पुतले हो जाते हैं
रावण की सेना होती है
उसी के हथियार होते हैं
सेनापति की जगह पर
राम की फोटो लगा कर
अपना काम चलाते हैं
बहुत कर लेते हैं जब
कत्लेआम उल्टे काम
माहौल बदलने के लिये
एक दिन पुतले जलाते हैं
रावण तेरी अच्छाईयां
कहीं समझ ना आ जायें
किसी को कभी यहां पर
आज भी राम को
आगे कर हम खुद
पीछे से तीर चलाते हैं ।

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

राम तुलसी को कोस रहा होता अगर वो सब तब नहीं आज हो रहा होता



हुआ तो 
बहुत कुछ है 

एक
मोटी 
किताब में 
सब कुछ लिखा गया है

कुछ
समझ में 
आ जाता है
जो
नहीं आता है
सब समझ चुके विद्वानो से
पूछ 
लिया जाता है

मान
लिया 
जाता है
पढ़ा लिखा आदमी कभी भी
किसी को
बेवकूफ 
नहीं बनाता है

वही सब 
अगर आज हो रहा होता
तो राम 
तुलसी को बहुत कोस रहा होता

क्या कर रहा है 
पता नहीं इतने दिनो से

अभी तक 
तो
पूरी 
रामचरित मानस छपने  को दे चुका होता

प्रोजेक्ट 
इस पर भी भेजने के लिये बोला था
आवेदन तो कम से कम कर ही दिया होता

आपदा के फंड से
दीर्घकालीन अध्ययन के नाम पर
कुछ 
किसी से कहलवा कर
अब तक 
दे दिलवा भी दिया होता

हनुमान जी आये थे
खोद कर ले गये थे संजीवनी का पहाड़
केदारनाथ में जो हुआ 
उसी के कारण हुआ
इतना ही तो लिखना होता

लिख ही दिया होता
पर ये सब आज के दिन कैसे हो रहा होता

थोड़ा सा भी समझदार होता
तो तुलसीदास 
नहीं कुछ और हो रहा होता

बिना
कुछ 
लिये दिये
एक 
कालजयी ग्रन्थ
लिख लिखा कर ऐसे ही
बिना
कोई 
अ‍ॅवार्ड लिये
दुनिया से 
थोड़ा विदा हो गया होता ।

चित्र साभार: 
https://www.clipartkey.com/

बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

राम का भरोसा रख बहुत कुछ होने वाला है

सुनाई
दे रहा है
बहुत बड़ा
परिवर्तन
जल्दी ही
होने वाला है

चुनाव
की जगह
सरकार के
नुमाइंदो
और
अध्यक्षों के
पदों के लिये
समाचार पत्रों
में विज्ञापन
आने वाला है

ना भी
हो रहा हो
ऐसा मान लिया
सोचने में
ऐसी बात को
किसी का क्या
जाने वाला है

इस सब
के लिये
सबसे पहले
कुछ बीच के
लोगों का
चुनाव किया
जाने वाला है

उसके लिये
सबसे पहले
देख लिया
जाने वाला है
कि कौन है
ऐसा जो
इधर भी
और
उधर भी
आने जाने
वाला है

पूजा पाठ
मंदिर
आने जाने से
कुछ नहीं
कहीं होने
वाला है

अगर डंडे
पर लगे हुऐ
झंडे को
अपने घर
और
अपने सर
पर नहीं
लगाने वाला है

मंदिर की
घंटियों को
बेचने वाले को
पुजारी
छांटने के लिये
बुलाया
जाने वाला है

जमाना
बदल रहा है
बहुत तेजी से
देखता रह

कपड़े पहने
हुऐ दिखेगा
जो भी शहर
की गलियों में
अंदर कर दिया
जाने वाला है

समय की
बलिहारी है
छुप छुपा
के हो रहा है
जो भी जहां भी
खुले आम होते हुऐ
जल्दी ही दिखाई
देने वाला है ।

शनिवार, 13 जुलाई 2013

विभीषण या हनुमान बता किसको है चाहता

सारा का सारा  जैसे का तैसा
नहीं सब कह दिया
है जाता

बहकते और भड़कते हुऎ में से
कहने लायक ही उगल दिया
है जाता

कहानिया
तो बनती ही हैं 
मेरे यहाँ भी तेरे यहाँ भी 

बारिशों का मौसम भी होता है माना 
सैलाब लेकिन हर रोज ही नहीं
है आता 

हर आँख
देखती है एक ही चीज को 
अपने अलग अंदाज से 

मुझे दिखता है कुछ
जो 
उसको कुछ और ही
 है नजर आता

राम की कहानी है एक पुरानी 
विभीषण
सुना रावण को छोड़ राम के पास 
है चला जाता 

क्या सच था ये वाकया
तुलसी से कहाँ अब ये किसी से
है पूछा जाता

आज भी तो दिखता है विभीषण 
उधर जाता इधर आता

राम के काम में
है आता
रावण के भी काम भी
है लेकिन आता 

हनुमान जी
क्या कर रहे होते होंगे आज
जिसकी समझ में 
आ गयी होगी मेरी ये बात 

वो भी कुछ यहाँ 
कहाँ कह कर चला
है जाता 

क्योंकि
सारा का सारा 
जैसे का तैसा नहीं सब कह दिया
है जाता ।

सोमवार, 21 जनवरी 2013

राम नहीं खोल सकता कोई वैंडर तेरे नाम का टेंडर

सोच रहा था
कल से

इस पर
कुछ भी नहीं
लिखना
विखना चाहिये

करने
वाले को
कौन सा इसे
पढ़ ही लेना है

मुझे भी
बस चुप ही
रहना चाहिये

पर
मिर्ची खाने पर
पानी पीना कभी
 ही जाता है

सू सू
की आवाज
बंद भी
कर ली जाये

तब भी
मुँह लाल
होना तो
सामने वाले को
दिख ही जाता है

इसलिये
रहा नहीं गया

जब देखा
स्वयंवर
टाला ही
जा चुका है

सारे के सारे

बनाये गये
रामों को

दाना
डाला जा चुका है

बेशरम
राम बनने का
जुगाड़ लगा रहे थे

देख
भी नहीं रहे थे

राम
की मुहर जब

ना
जाने कब से

वो
अपने पास ही
दिखा रहे थे

अब जब राम
भगवान होते हैं
पता था इन सबको

फिर
ये कैसे
सीता को
पाने के सपने
देखे जा रहे थे

खेमे पर खेमे
किसलिये बना रहे थे

सुग्रीव
भी बेचारे
इधर से उधर
जाने में अपना
समय पता नहीं
क्यों गंवा रहे थे

रावण
के परिवार की तरह
राज काज जब
संभाला जा रहा था

लोगों को
दिखाने के लिये
रावण का पुतला भी
निकाला जा रहा था

सीता के
अपहरण के लिये
राम बनकर ही मौका
निकाला जा रहा था

कैसे
हो जायेगा
स्वयंवर
उसके बिना मूर्खो

जब
उसने अभी तक

अपना
रामनामी चोला
अभी नहीं उतारा था ।

सोमवार, 20 अगस्त 2012

पूरी बात

शर्ट की
कम्पनी
सामने
से ही
पता चल
जाती है
पर
अंडरशर्ट
कौन सी
पहन कर
आता है
कहाँ 
पता 
चल पाता है

अंदर
होती है
एक
पूरी बात
किसी के
पर वो
उसमें से
बहुत
थोडी़ सी
ही क्यों
बताता है

सोचो तो
अगर
इस को
गहराई से
बहुत से
समाधान
छोटा सा
दिमाग
ले कर
सामने
चला
आता है

जैसे
थोड़ी 
थोड़ी
पीने से
होता है
थोड़ा सा
नशा
पूरी
बोतल
पीने से
आदमी
लुढ़क
जाता है

शायद
इसीलिये
पूरी बात
किसी को
कोई नहीं
बताता है

थोड़ा थोड़ा
लिखता है
अंदर की
बात को
सफेद
कागज
पर अगर
कुछ
आड़ी तिरछी
लाइने ही
खींच पाता है

सामने वाला
बिना
चश्मा लगाये
अलग अलग
सबको
पहचान ले
जाता है

पूरी बात
लिखने की
कोशिश
करने से
सफेद
कागज
पूरा ही
काला हो
जाता है

फिर कोई
कुछ भी
नहीं पढ़
पाता है

इसलिये
थोड़ी
सी ही
बात कोई
बताता है

एक
समझदार
कभी भी
पूरी रामायण 
सामने नहीं
लाता है

सामने वाले
को बस
उतना ही
दिखाता है
जितने में
उसे बिना
चश्में के
राम सीता
के साथ
हनुमान भी
नजर आ
जाता है

सामने
वाला जब
इतने से
ही भक्त
बना लिया
जाता है

तो

कोई
बेवकूफी
करके
पूरी
खिचड़ी
सामने
क्यों कर
ले आता है
दाल और
चावल के
कुछ दानों
से जब
किसी का
पेट भर
जाता है ।

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

हे राम !

राम की कहानी
तुलसी की जुबानी
बहुत है पुरानी

दादी से माँ तक
आते आते लगता है
अब चैन की
नींद सो रही है

बच्चों के
भारी भारी बस्तों में
स्कूल की रेलमपेल में
सीता भी उनींदी सी
किसी किताब
किसी कापी
के किसी मुढ़े तुढ़े पन्ने में
कहीं खो रही है

घर में भी फुरसत में
बातों बातों में कभी
राम भी भूले से भी
नहीं आना चाह रहे हैं

कर्म और
फल वाली
कहावत में भी
मजे अब उतने
नहीं आ रहे हैं

फलों के पेड़ भी
अब लोग गमलों में
तक कौन सा
लगाना चाह रहे हैं

बोते हुवे वैसे
बहुत से लोग
बहुत सी चीजें बस
दिखाने के लिये
दिखा रहे हैं

आम का बीज
दिख रहा है
उसी बीज से बबूल
का पेड़ उगा ले
जा रहे हैं

दादी और माँ ने भी
ऎसा कुछ कभी
क्यों नहीं बताया
जो दिखाया भी
इस जमाने के
हिसाब से बड़ा
अजीब सा ही दिखाया

अब वो सब पता नहीं
कहां खोता जा रहा है
जमाना जो कुछ
दिखा रहा है
पता नहीं चल रहा है
वो किस खेत में
बोया जा रहा है

बड़ी बैचेनी है
कोई इस बात
को क्यों नहीं
समझा रहा है

जब राम का
हो रहा है ये हाल है
तो बतायें
क्या फिर बच्चों को
कृ्ष्ण कबीर तुलसी
रहीम के बारे में

जब राम की कहानी
तुलसी की जुबानी
बहुत ही पुरानी
जैसी हो रही है

दादी से
माँ तक होकर
मुझ तक आते आते
जैसे कहानी
के अन्दर ही
किसी कहानी में
ही कहीं खो रही है।