उलूक टाइम्स: राम
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बुधवार, 15 मई 2024

सब जानते है सीवर खुला है और आ रही है बदबू सड़न की खुशबू गाने में किसी का क्या चला जाता है

 

उसने ऐसा क्या कर दिया
किसी को कुछ कहीं नजर नहीं आता है
चश्मा पहनाया है या उतार दिया है
ये समझ से बाहर हो जाता है

जो देख रहे हैं महसूस कर रहे हैं
वो वो नहीं है जो वो बताता है
वो वो है वो नहीं है वो तो मासूम है
वो तो बस एक झंडा फहराता है

पढ़े लिखे नाच रहे हैं
लिखे में दिख रहा है उनके
राम भी समझ में आता है
राम नाम सत्य है बस
एक और केवल एक ही दिन
एक भीड़ से बांच दिया जाता है

आदमी लिख रहा है बन कर चम्मच
कटोरा पकडे हुए एक इंसान की कहानी
उसे कहाँ कोई समझाता है
कटोरे से कुर्सी और कुर्सी से देश खाने में
कहां समय लगता है
दीमक होशियारी अपनी कहाँ छुपाता है

 शर्म आती है ‘उलूक’ को
पढकर किसी का पन्ना
ब्लोगिंग में ब्लोगर बहुत बढ़ा
ऐसा कौन हो पाता है
सब को पता है सब जानते है
सीवर खुला है और आ रही है बदबू
सड़न की खुशबू गाने में
किसी का क्या चला जाता है |

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

गुरुवार, 11 अप्रैल 2024

इंतज़ार है है मर्यादा पुरुषोत्तम दिखेगा राम नाम सत्य ज़ुबानी ज़ुबानी

 

कुछ बिल्लियाँ बिल्ले की खरीदी 
कुछ बिल्लियाँ खिसियानी
कुछ करेंगी दीवाली 
कुछ नोचेंगी खम्बे याद करेंगी फिर नानी

शातिर बिल्ला लगा हुआ है 
बाँट रहा है जगह जगह चूहेदानी
सभा कर रहा चूहों की 
जा जा कर बिलों में उनके अभिमानी

अब तो लिख दे लिखने वाले कविता उसपर 
ओ उसकी दीवानी
हम भी लिखेंगे कुछ ना कुछ 
कलम पकड़ कर क्यों है छुपानी

जग जाहिर है बिल्ला नहीं पकड़ रहा है चूहे 
चूहे करते हैं बेइमानी
लगी हुई है खरीदी बिल्लियों की फ़ौज 
कर रही है अपनी मनमानी

शब्द कई हैं बिल्ले पर कहने 
एक नहीं सारे हैं गालियों में नहीं गिनानी
खड़े हो जायेंगे सारे सफेदपोश फर्जी 
समझायेंगे कोर्ट कचहरी दीवानी

‘उलूक’ लिख आईना-ए-लेखक 
देख सकें लिखने वाले सच की कहानी
इंतज़ार है 
है मर्यादा पुरुषोत्तम 
दिखेगा राम नाम सत्य ज़ुबानी ज़ुबानी |

चित्र साभार: https://www.yourquote.in/

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

अवतार है इक चुनाव मैदान में ब्रह्मा विष्णु महेश को कौन बताएगा

 

ये अध्याय बाद में कभी ग्रन्थ में जोड़ा जाएगा
भगवान ने लीला की थी इतिहास ये बताएगा
किये होंगे युद्ध रामायण और गीता में कभी
एक अवतार चुनाव से कलियुग में सब निपटायेगा

गीता और मानस पुरानी कहानी हो गयी है
आगे बातों बातों में बस बातों का जिक्र आयेगा
भगवान कृष्ण ने शंख फूँका होगा मैदान में
अभी तो बिगुल बजा है कहने से काम हो जाएगा

पढ़ा लिखा एक बेवकूफ है ‘उलूक’ ही है केवल
उसको पता है और समझ में भी आ गया है उसके
उसने पढ़ा ही नहीं ना ही लिखा कहा वो जाएगा
भीड़ का उन्माद दिखता नहीं जिसे ज़रा सा भी
कैसे उस की बात पर कोई ध्यान दे पायेगा

राम त्रेता युग में रहे और कृष्ण द्वापरयुग में रहे
तुलसी ने लिखा कुछ भी कैसे मान लिया जाएगा
व्यास ने भी लिखा था कुछ अंड बंड
नहीं था मगर ऐसा समय पर बताया जाएगा

कविता बहुत लिख रहे कवि भी हैं अद्भुद है यहां पर
चिट्ठे खुल के लिख रहे हैं मौसम और बारिश भी
पुलिस चोरों के साथ दिख रही है कौन कह पायेगा
एक जज इस्तीफा देगा और चुनाव लड़ने चले जाएगा

जो हो रहा है बहुत अच्छा हो रहा है
जो होगा अच्छा होगा ही कहा जाएगा
मत देने जाना है सभी को
मत कहां जा कर गिरेगा पता चल जाएगा
लोकतन्त्र है बहुत मजबूत भी है
चिंता किसी को हो ना हो क्या फर्क पड़ता है
लेकिन डरपोक का डर
इतिहास में पक्का दर्ज किया जाएगा |

 चित्र साभार: https://pngtree.com/



शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

कुछ रूह होती हैं कुछ रूह भूत होती हैं

कुछ रूह होती हैं
सहला देती हैं रूह को बस यूँ ही
कुछ बदल देती हैं समां
यूँ ही आस पास का
लगता है कहीं होती हैं

गोश्त और गोश्त में
कहां कोई फर्क नजर आता है
गोश्त कुछ रूह से महकी हुई
मगर जरुर होती हैं

शुक्रिया कहने की जरुरत
कहां कब रह जाती है
आसपास एक नहीं
जब चाहने वाली कई रूह होती हैं

अब रूह कहें आत्मा कहें
राम और रहीम की भी होती हैं
बहस कुछ गोश्त पर छपी
हमेशा होती हैं और जरुर होती हैं

हजार रूह के बीच
बस एक दो कुछ अजीब होती हैं
गोश्त और रूह से अलहदा
कुछ थोड़ा सा भूत होती हैं

हजारों ख्वाहिशे होती हैं
रूह भी कभी कभी रोती है
उलूक जाना लकड़ियों में है
जलना लकड़ियों में है
खबरें होती हैं
और हमेशा मगर
किसी गोश्त की होती हैं |

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/ 




सोमवार, 14 अक्तूबर 2019

सागर किनारे लहरें देखते प्लास्टिक बैग लेकर बोतलें इक्ट्ठा करते कूड़ा बीनते लोग भी कवि हो जाते हैं


ना
कहना
आसान होता है

ना
निगलना
आसान होता है

सच
कहने वाले
के
मुँह
पर राम

और

सीने पर
गोलियों का
निशान होता है

सच
कहने वाला
गालियाँ खाता है

निशान
बनाने वाले का

बड़ा
नाम होता है

‘उलूक’
यूँ ही नहीं
कहता है

अपने
कहे हुऐ
को
एक बकवास

उसे
पता है

कविता
कहने
और
करने वाला
कोई एक
 खास होता है

अभी
दिखी है
कविता

अभी
दिखा है
एक कवि

 कूड़ा
समुन्दर
के पास
बीन लेने
वाले को

सब कुछ
सारा
माफ होता है

बड़े
आदमी के
शब्द

नदी
हो जाते हैं

उसके
कहने
से ही
सागर में
मिल जाते हैं

बेचारा
प्लास्टिक
हाथ में
इक्ट्ठा
किया हुआ
रोता
रह जाता है

बनाने
वालों के
अरमान

फेक्ट्रियों
के दरवाजों
में
खो जाते हैं

बकवास
बकवास
होती है

कविता
कविता होती है

कवि
बकवास
नहीं करता है

एक
बकवास
करने वाला

कवि
हो जाता है ।


चित्र साभार:
https://www.dreamstime.com/

गुरुवार, 28 मार्च 2019

जो पगला नहीं पा रहे हैं उनकी जिन्दगी सच में हराम हो गयी है


मरते मरते उसने कहा "हे राम"
उसके बाद भीड़ ने कहा "राम नाम सत्य है"
कितनों ने सुना कितनों ने देखा

देखा सुना कहा बताया बहुत पुरानी बात हो गयी है
जमाना कहाँ से कहाँ पहुँच गया है सत्य अब राम ही नहीं रह गया है

जो समझ लिया है उसकी पाँचों उँगलियाँ घी में घुस गयी हैं
और सर कहीं डालने के लिये कढ़ाईयों की इफरात हो गयी है
वेदना संवेदना शब्दों में उकेर देने की दुकाने गली गली आम हो गयी हैं

एक दिन की एक्स्पायरी का लिखा लिखाया
उठा कर ले जा कर अपनी दीवार पर टाँक लेने वाली दुकाने
हनुमान जी के झंडे में लिखा हुआ जय श्री राम हो गयी हैं

मंदिर राम का रंग हनुमान का
स्कूलों की किताबों के जिल्द में गुलफाम हो गयी हैं

शिक्षक की इज्जत
उतार कर उसके हाथ में थमाने वाले छात्रों की पूजा
राम की पूजा के समान हो गयी है

मंत्री के साथ पीट लेना थानेदार को 
खबर बेकार की एक पता नहीं क्यों सरेआम हो गयी है

छात्रों का कालिख लगाना एक मास्टर के
और चुप रहना मास्टरों की जमात का
मास्टरों की सोच का पोस्टर बन बेलगाम हो गयी है

जरूरी है इसीलिये लिख देना रोज का रोज ‘उलूक’
जनता एक पागल के पीछे पगला गयी है
जो पगला नहीं पा रहे हैं उनकी जिन्दगी सच में हराम हो गयी है ।

चित्र साभार: web.colby.edu

गुरुवार, 8 नवंबर 2018

जरूरी होता है निकालना आक्रोश बाहर खुद को अगर कोई यूँ ही काटने को चला आता है


फेसबुक पर की  गयी किसी की एक टिप्पणी 
“ मन्दिर के स्थान पर अगर कोई अस्पताल की मांग करता है तो वह श्री राम की कृपा से जल्द ही अस्पताल मे भर्ती होकर इसका लाभ ले लेगा”  
पर

कभी कभी

जानवरों के
स्वभाव से भी

बहुत कुछ
सीखा जाता है


अच्छा नहीं होता है

अपनी सीमा से
 बाहर जाकर

जब कोई
भौंक आता है 

आभासी दुनियाँ
 के तीरंदाज

छोड़ते रहते हैं तीर
 अपनी अपनी
माँदों में घुसकर


राम के मन्दिर
बनाने ना बनाने
के नाम पर

हस्पताल में
भर्ती करवा देंगे राम
की गाली
कोई दे जाता है 

समझ में बस
यही नहीं आ पाता है
कि

राम अपना मन्दिर
अपने ही घर में
खुद क्यों नहीं
बनवा पाता है

बन्दर
बहुत पूज्य होते हैं

हनुमान जी के
दूत होते हैं

बन्दर
कह कर
पुकारना
ठीक नहीं

ऐसे
खुराफातियों को 

इस तरह
की गालियाँ

कोई तो
शातिर है
जो इन सड़क छाप
गुण्डों को
 सिखाता है

एक
बच्ची से
माईक पर
गालियाँ
दिलवा रहा था
एक शरीफ कहीं

उसी तरह
की
तालीम पाया

बहस करने
आभासी दुनियाँ में
चला आता है

मन नहीं करता है
भाग लेने का
बहसों में

ऐसे ही
शरीफों
की टोलियों को

शरीफ एक

जगह जगह बैठा कर

कहीं से
उनसे
अपना चिल्लाना

लोगों तक पहुँचाता है

भगवान
पूजने के लिये होता है

हर घर में
बेलाग बेखौफ
पूजा भी जाता है

राजनीति
सब की समझ में आती है

‘उलूक’
हो सकता है
नासमझ हो

लेकिन
इतना भी नहीं
कि

समझ ना पाये

कौन सा कुत्ता
किस गली का

किसके लिये

किसपर
भौंकने
यहाँ
चला आता है ।

चित्र साभार: https://www.graphicsfactory.com



मंगलवार, 18 सितंबर 2018

तू समझ तू मत समझ राम समझ रहे हैं उनकी किसलिये और क्यों अब कहीं भी नहीं चल पा री

मानना
तो
पड़ेगा ही
इसको

उसको
ही नहीं

पूरे
विश्व को

तुझे
किसलिये
परेशानी
हो जा री

टापू से
दूरबीन
पकड़े
कहीं दूर
आसमान में
देखते हुऐ
एक गुरु को

और
बाढ़ में
बह रहे
मुस्कुराते हुऐ
उस गुरु के
शिष्य को

जब
शरम नहीं
थोड़ा सा
भी आ री

एक
बुद्धिजीवी
के भी
समझ में
नहीं आती हैंं
बातें
बहुत सारी

उसे ही
क्यों
सोचना है
उसे ही
क्यों
देखना है
और
उसे ही
क्यों
समझना है

उस
बात को
जिसको

उसके
आसपास
हो रहे पर

जब
सारी जनता
कुछ भी
नहीं कहने को

कहीं भी
नहीं जा री

चिढ़ क्यों
लग रही है
अगर
कह दिया

समझ में
आता है
डी ए की
किश्त इस बार

क्यों और
किसलिये
इतनी
देर में आ री

समझ तो
मैं भी रहा हूँ

बस
कह कुछ
नहीं रहा हूँ

तू भी
मत कह

तेरे कहने
करने से

मेरी तस्वीर
समाज में
ठीक नहीं
जा पा री

कहना
पड़ता है
तेरी
कही बातें
इसीलिये
मेरी समझ
में कभी भी
नहीं आ री

‘उलूक’
बेवकूफ

उजड़ने के
कगार पर
किसलिये

और
क्यों बैठ
जाता होगा
किसी शाख
पर जाकर
गुलिस्ताँ के

जहाँ बैठे
सारे उल्लुओं
के लिये

एक आदमी
की सवारी
राम जी की
सवारी हो जा री ।

चित्र साभार: https://store.skeeta.biz

बुधवार, 5 सितंबर 2018

लिखना जरूरी हो जा रहा होता है जब किसी के गुड़ रह जाने और किसी के शक्कर हो जाने का जमाना याद आ रहा होता है

नमन
उन सीढ़ियों को
जिस पर चढ़ कर
बहुत ऊपर तक
कहीं पहुँच लिया
जा रहा होता है

नमन
उन कन्धों को
जिन को
सीढ़ियों को
टिकाने के लिये
प्रयोग किया
जा रहा होता है

नमन
उन बन्दरों को
जिन्हेंं हनुमान
बना कर
एक राम
सिपाही की तरह
मोर्चे पर
लगा रहा होता है

नमन
उस सोच को
जो गाँधी के
तीन बन्दरों
के जैसा

एक में ही
बना ले जा
रहा होता है

नमन
और भी हैं
बहुत सारे हैं
करने हैं

आज ही
के शुभ दिन
हर साल की तरह

जब
अपना अपना सा
लगता दिन
बुला रहा होता है

कैसे करेगा
कितने करेगा
नमन ‘उलूक’

ऊपर
चढ़ गया
चढ़ जाने के बाद
कभी नीचे को
उतरता हुआ
नजर ही नहीं
आ रहा होता है

गुरु
मिस्टर इण्डिया
बन कर ऊपर
कहीं गुड़
खा रहा होता है

चेलों
का रेला

वहीं
सीढ़ियाँ पकड़े
नीचे से

शक्कर
हो जाने के
ख्वाबों के बीच

कहीं
सीटियाँ बजा
रहा होता है।

चित्र साभार: www.123rf.com

सोमवार, 20 अगस्त 2018

खुदा भगवान के साथ बैठा गले मिल कर कहीं किसी गली के कोने में रो रहा होता दिन आज का खुदा ना खास्ता अगर गुजरा कल हो रहा होता

एक आदमी
भूगोल हो रहा होता
आदमी ही एक
इतिहास हो रहा होता

पढ़ने की
जरूरत
नहीं हो
रही होती


सब को
रटा रटाया
अभिमन्यु की तरह

एक आदमी
पेट से ही
पूरा याद हो रहा होता


एक आदमी
हनुमान हो रहा होता
एक आदमी
राम हो रहा होता

बाकि
होना ना होना सारा
आम और
बेनाम हो रहा होता


चश्मा
कहीं उधड़ी हुई
धोती में सिमट रहा होता


ग़ाँधी
अपनी खुद की
लाठी से
पिट रहा होता


कहीं हिन्दू
तो कहीं उसे
मुसलमान
पकड़ रहा होता
कबीर
अपने दोहों को
धो धो कर
कपड़े से
रगड़ रहा होता


ना तुलसी
राम का हो रहा होता
ना रामचरित मानस
पर काम हो रहा होता

मन्दिर में
एक आदमी के
बैठने के लिये
कुर्सियों का
इन्तजाम
हो रहा होता


लिखा हुआ
जितना भी
जहाँ भी
हो रहा होता
हर पन्ने का एक
आदमी हो रहा होता

आदमी आदमी
लिख रहा होता
आदमी ही
एक किताब
हो रहा होता


इस से ज्यादा
गुलशन कब
आबाद
हो रहा होता


 शाख
सो रही होती
‘उलूक’
खो रहा होता

गुलिस्ताँ
खुद में गंगा
खुद में संगम
और खुद ही
दौलताबाद
हो रहा होता।


चित्र साभार: http://clipartstockphotos.com

सोमवार, 25 दिसंबर 2017

हैप्पी क्रिसमस मेरी क्रिसमस जैसे कह रहे हों राम ईसा मसीह से आज कुछ ऐसी सोच जगायें


ईसा मसीह को
याद कर रही है
जहाँ सारी दुनियाँ
बहुत सी और भी
हैं महान आत्माएं

किस किस को
याद करें
किस किस को
भूल जायें

पराये अपने
होने लगे हैं
बहुत अच्छा है
आईये कुछ
मोमबत्तियाँ
प्यार के
इजहार
की जलायें
रोशनी प्रेम
और भाईचारे
की फैलायें

सीमायें
तोड़ कर सभी
चलो इसी तरह
किसी एक
दिन ही सही
मंशा आदमियत
की बनायें
आदमी हो जायें

सहेज लें
समय को
मुट्ठी में
इतना कि
अपने पराये
ना हो पायें

याद
आने लगे हैं
अटल जी
याद आ रहे हैं
मालवीय
याद आने
शुरु हो गये हैं
और भी अपने
आस पास के
आज एक नहीं
कई कई

न्यूटन जैसे
और भी हैं
इन्हीं
कालजयी
लोगों में
आज के दिन
जन्म लिये
महापुरुषों में

सभी
तारों को
एक ही
आकाश में
चाँद सूरज
के साथ
देखने की
इच्छा जतायें

पिरो लें
सभी
फूलों को
एक साथ
एक धागे में
एक माला
एक छोटी
ही सही
यादों को
सहेजने
की बनायें

याद आ रहे हो
बब्बा आज
तुम भी बहुत
इन सब के बीच में
तुम्हारी जन्मशती
के दिन हम सब
मिलकर सब के साथ
दिया एक यादों का
आज चलो जलायें

हैप्पी क्रिसमस
मेरी क्रिसमस
जैसे कह
रहे हों राम
ईसा मसीह से
आज कुछ ऐसी
सोच जगायें।

चित्र साभार: Shutterstock



स्व. श्री देवकी नन्दन जोशी
25/12/1917 - 12/02/2007

शनिवार, 30 सितंबर 2017

नवाँ महीना दसवीं बात गिनता चल खुद की बकवास आज दशहरा है

राम समझे
हुऐ हैं लोग 
राम समझा
रहे हैं लोग
आज दशहरा है

राम के गणित
का खुद हिसाब
लगा रहे हैं लोग
आज दशहरा है

अज्ञानियों का ज्ञान
बढा‌ रहे हैं लोग
आज दशहरा है

शुद्ध बुद्धि हैं
मंदबुद्धियों की
अशुद्धियों को
हटा रहे हैं लोग
आज दशहरा है

दशहरा है
दशहरा ही
पढ़ा रहे हैं लोग
आज दशहरा है

आँख बन्द रखें
कुछ ना देखें
आसपास का
कहीं दूर एक राम
दिखा रहे हैं लोग
आज दशहरा है

कान बन्द रखें
कुछ ना सुने
विश्वास का
रावण नहीं होते
हैं आसपास कहीं
बता रहे हैं लोग
आज दशहरा है

मुंह बन्द रखें
कुछ ना कहें
अपने हिसाब का
राम ने भेजा हुआ है
बोलने को एक राम
झंडे खुद बन कर
राम समझा रहे हैं लोग
आज दशहरा है

दशहरे की
शुभकामनाएं
राम के लोग
राम के लोगों को
राम के लोगों के लिये
देते हुऐ इधर भी
और उधर भी
‘उलूक’ को
दिन में ही
नजर आ
रहे हैं लोग
आज दशहरा है ।

चित्र साभार: Rama or Ravana- On leadership

सोमवार, 3 अप्रैल 2017

खेल भावना से देख चोर सिपाही के खेल

वर्षों से
एक साथ
एक जगह
पर रह
रहे होते हैं

लड़ते दिख
रहे होते हैं
झगड़ते दिख
रहे होते हैं

कोई गुनाह
नहीं होता है
लोग अगर
चोर सिपाही
खेल रहे होते हैं

चोर
खेलने वाले
चोर नहीं हो
रहे होते हैं
और
सिपाही
खेलने वाले भी
सिपाही नहीं
हो रहे होते हैं

देखने वाले
नहीं देख
रहे होते हैं
अपनी आँखें

शुरु से
अंत तक
एक ही लेंस से
उसी चीज को
बार बार

अलग अलग
रोज रोज
सालों साल
पाँच साल

कई बार
अपने ही
एंगल से
देख रहे
होते हैं

खेल खेल में
चोर अगर कभी
सिपाही सिपाही
खेल रहे होते है

ये नहीं समझ
लेना चाहिये
जैसे चोर
सिपाही की
जगह भर्ती
हो रहे होते हैं

खेल में ही
सिपाही चोर
को चोर चोर
कह रहे होते है

खेल में ही
चोर कभी चोर
कभी सिपाही
हो रहे होते हैं

खबर चोरों के
सिपाहियों में
भर्ती हो जाने
की अखबार
में पढ़कर

फिर
किस लिये
‘उलूक’
तेरे कान
लाल और
खड़े हो
रहे होते हैं

खेल भावना
से देख
खेलों को
और समझ
रावणों में ही
असली
रामों के
दर्शन किसे
क्यों और कब
हो रहे होते हैं

ये सब खेलों
की मायाएं
होती हैं

देखने सुनने
पर न जा
खेलने वालों
के बीच और
कुछ नहीं
होता है
खेल ही हो
रहे होते हैं ।

चित्र साभार: bechdo.in

सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

आदमी एकम आदमी हो और आदमी दूना भगवान हो

गीत हों
गजल हों
कविताएं हों
चाँद हो
तारे हों
संगीत हो
प्यार हो
मनुहार हो
इश्क हो
मुहब्बत हो
अच्छा है

अच्छी हो
ज्यादा
ना हो
एक हो
कोई
सूरत हो
खूबसूरत हो
फेस बुक
में हो
तस्वीर हो
बहुत ही
अच्छा है

दो हों
लिखे हों
शब्द हों
सौ हों
टिप्पणिंयां हों
कहीं कुछ
नहीं हो
उस पर
कुछ नहीं
होना हो
बहुत
अच्छा है

तर्क हों
कुतर्क हों
काले हों
सफेद हों
सबूत हों
गवाह हों
अच्छी सुबह
अच्छा दिन
और
अच्छी रात हो
अच्छा है

भीड़ हो
तालियाँ हो
नाम हो
ईनाम हो
फोटो हो
फूल हों
मालाऐं हों
अखबार हो
समाचार हो
और भी
अच्छा है

झूठ हों
बीज हों
बोने वाले हों
गिरोह हो
हवा हो
पेड़ हों
पर्यावरण हो
गीत हों
गाने वाली
भेड़ हों
हाँका हो
झबरीले
शेर हों
अच्छा है

फर्क नहीं
पड़ना हो
दिखना
कोई
और हो
दिखाना
कोई
और हो
करना
कहीं
और हो
भरना
कहीं
और हो
बोलने वाला
भगवान हो
चुप रहने
वाला
शैतान हो
सबसे
अच्छा है

‘उलूक’ हो
पहाड़ा हो
याद हो
आदमी
एकम
आदमी हो
और
आदमी
दूना
भगवान हो
बाकी
सारा
हो तो
राम हो
नहीं तो
हनुमान हो
कितना
अच्छा है।

चित्र साभार: http://www.shutterstock.com/

शनिवार, 7 नवंबर 2015

किसी के पढ़ने या समझने के लिये नहीं होता है लक्ष्मण के प्रश्न का जवाब होता है बस राम ही कहीं नहीं होता है

क्या जवाब दूँ
मैं तुझे लक्ष्मण
मैं राम होना भी
नहीं चाहता हूँ
आज मेरे अंदर
का रावण बहुत
विकराल भी
हो  गया है
और मुझे राम से
डर लगने लगा है
राम आज मुझे
पल पल हर पल
नोच रहा है
किस से कहूँ
नहीं कह सकता
राम राम है
जय श्री राम है
मेरा ही राम है
लक्ष्मण तुम को
शक्ति लगी थी
और तुम्हारे पास
प्रश्न तब नहीं थे
अब हैं बहुत हैं
लक्ष्मण तुम और
तुम्हारे जैसे और
कई अनगिनत
अभिमन्यू हैं
जो तीर नहीं हैं
पर चढ़ाया गया है
जिन्हे कई बार
गाँडीव पर अर्जुन ने
तुम्हें समझा बुझा कर
तुम बने भी हो तीर
चले भी हो तीर
की तरह कई बार
इतना बहुत है कि
आज के जमाने में
कोई ना मरता है
ना घायल होता है
तुम्हारे जैसे तीरों से
कायरों के टायरों पर
सड़क के निशान
नहीं पड़ते हैं लक्ष्मण
रोज बहुत लोगों के
अंदर कई राम मरते हैं
कोई नहीं बताता है
किसी से कुछ नहीं
कह पाता है
बहुत बैचेनी होती है 

और तुम भी पूछ बैठे
ऐसे में ऐसा ही कुछ
और पता चला
आजकल राम
तुम्हारे साथ भी
वही करता है जो
सभी के साथ
उसने हमेशा से किया है
सभी को राम से प्रेम है
सभी को जय श्री राम
कहना अच्छा लगता है
कोई खेद नहीं होता है
राम राम होता है लक्ष्मण
प्रश्न करना हमेशा
दर्दमय होता है
उत्तर देना उस से भी
ज्यादा दर्द देता है
जब प्रश्न अलग होता है
राम अलग होता है
और पूछने वाला
लक्ष्मण होता है ।

 चित्र साभार: forefugees.com

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

बंदरों के नाटक में जरूरी है हनुमान जी और राम जी का भी कुछ घसीटा

बंदर ने बंदर
को नोचा और
हनुमान जी ने
कुछ नहीं सोचा
तुझे ही क्यों
नजर आने
लगा इस सब
में कोई लोचा
भगवान राम जी
के सारे लोगों
ने सारा कुछ देखा
राम जी को भेजा
भी होगा जरूर
चुपचाप कोई
ना कोई संदेशा
समाचार अखबार
में आता ही है हमेशा
बंदर हो हनुमान हो
चाहे राम हो
आस्था के नाम पर
कौन रुका कभी
और किसने है
किसी को रोका
मौहल्ला हो शहर हो
राज्य हो देश हो
तेरे जैसे लोगों
ने ही
हमेशा ही
विकास के पहिये
को ऐसे ही रोका
काम तेरा है देखना
फूटी आँखों से
रात के चूहों के
तमाशों को
किसने बताया
और किसके कहने
पर तूने दिन का
सारा तमाशा देखा
सुधर जा अभी भी
मत पड़ा कर
मरेगा किसी दिन
पता चलेगा जब
खबर आयेगी
बंदरों ने पीटा
हनुमान ने पीटा
और उसके बाद
बचे खुचे उल्लू

उलूक को राम
ने भी जी भर कर
तबीयत से पीटा ।

चित्र साभार:
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रविवार, 25 अक्तूबर 2015

राम ही राम हैं चारों ओर हैं बहुत आम हैं रावण को फिर किसलिये किस बात पर जलाया


विजया दशमी के जुलूस में
भगदड़ मचने पर 
पकड़ कर थाने लाये गये
दो लोगों से 
जब पूछताछ हुई 

एक ने अपने को लंका का राजा रावण बताया 

दस सिर तो नहीं थे 
फिर भी हरकतों से सिर से पाँव तक
रावण जैसा ही नजर आया 

और दूसरे की पहचान
बहुत आसानी से 
अयोध्या के भगवान राम की हुई 

जिनको बिना देखे भी 
सारे के सारे रामनामी दुपट्टे ओढ़े भक्तों ने 
आँख नाक कान बंद कर के 
जय श्री राम का नारा जोर शोर से लगाया 

दोनो ने अपना गाँव 
इस लोक में नहीं 
परलोक में कहीं होना बताया 

मजाक ही मजाक में उतर गये 
उस लोक से इस लोक में 
इस बार दशहरा 
पृथ्वी लोक में आकर
खुद ही देखने का प्लान 
उन्होने खुद नहीं 
उनके लिये ऊपर उनके ही
किसी चाहने वाले ने बनाया 
ऊपर वालों ने नीचे आने जाने में अड़ंगा भी नहीं लगाया 

भीड़ से पल्ला पड़ा जब 
राम और रावण का नीचे उतर कर 

भीड़ में से किसी ने अपने आप को राम का भाई 
किसी ने चाचा 
किसी ने बहुत ही नजदीक का ताऊ बताया 

रावण के बारे में पूछने पर 
किसी ने कोई जवाब नहीं दिया 
इसने उससे और उसने किसी और से
पूछने की राय दे कर अपना 
मुँह इधर और उधर को किया 
सभी ने अपना अपना पीछा रावण को देखते ही छुड़ाया 

राम की बाँछे खिली 
सामने खड़ी सारी जनता से उनकी 
खुद की रिश्तेदारी मिली 

और 
रावण बेचारा
सोच में पड़े खड़ा रह पड़ा 
किसलिये और किस मुहूर्त में 

राम के साथ रामराज्य की ओर 
ऊपर से नीचे एक बार 
और 
अपनी जलालत देखने निकल पड़ा ? 

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बुधवार, 15 जुलाई 2015

चलो ऊपर वाले से पेट के बाहर चिपकी कुछ खाली जेबें भी अलग से माँगते हैं

कुछ भी नहीं
खाया जाता है
थोड़े से में पेट
ऊपर कहीं
गले गले तक
भर जाता है
महीने भर
का अनाज
थैलों में नहीं
बोरियों में
भरा आता है
खर्च थोड़ा
सा होता है
ज्यादा बचा
घर पर ही
रह जाता है
एक भरा
हुआ पेट
मगर भर ही
नहीं पाता है
एक नहीं बहुत
सारे भरे पेट
नजर आते हैं
आदतें मगर
नहीं छोड़ती
हैं पीछा
खाना खाने
के बाद भी
दोनो हाथों की
मुट्ठियों में भी
भर भर कर
उठाते हैं
बातों में यही
सब भरे
हुऐ पेट
पेट में भरे
रसों से
सरोबार हो
कर बातों
को गीला
और रसीला
बनाते हैं
नया सुनने
वाले होते हैं
हर साल ही
नये आते हैं
गोपाल के
भजनों को सुन
कल्पनाओं में
खो जाते हैं
सुंदर सपने
देखतें हैं
बात करने
वालों में
उनको कृष्ण
और राम
नजर आते हैं
पुराने मगर
सब जानते हैं
इन सब भरे पेटों
की बातों में भरे
रसीले जहर को
पहचानते हैं
ऊपर वाले से
पूछते भी हैं हमेशा
बनाते समय ऐसे
भरे पेटों के
पेटों के
अगल बगल
दो चार जेबें
बाहर से उनके
कारीगर लोग
अलग से क्यों
नहीं टांगते हैं ।

 चित्र साभार: theinsidepress.com

शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

जोकर बनने का मौका सच बोलने लिखने से ही आ पायेगा

व्यंग करना है
व्यंगकार
बनना है
सच बोलना
शुरु कर दे
जो सामने से
होता हुआ दिखे
उसे खुले
आम कर दे
सरे आम कर दे
कल परसों में ही
मशहूर कर
दिया जायेगा
इसकी समझ में
आने लगा है कुछ
करने कराने वाला
भी समझ जायेगा
पोस्टर झंडे लगवाने
को नहीं उकसायेगा
नारे नहीं बनवायेगा
काम करने के
बोझ से भी बचेगा
और नाम भी
कुछ कमा खायेगा
 बातों में बोलना
अच्छा नहीं
लगता हो
तो सच को
सबके सामने
अपने आप करना
शुरु कर दे
खुद भी कर और
दूसरों को करने
की नसीहत भी
देना शुरु कर दे
एक दो दिन भी
नहीं लगेंगे
तेरे करने
करने तक
जोकर तुझे
कह दिया जायेगा
किसी ना किसी
अखबार में
छप छपा जायेगा
अपने आस पास
के सच को देख कर
आँख में दूरबीन
लगा कर चाँद को
देखने वालों को
चाँद का दाग
फिर से नजर आयेगा
बनेगी कोई गजल
कोई गीत देश प्रेम
का सुनायेगा
 प्रेम और उसके दिन
की बात भूलकर
रामनामी दुप्ट्टा
ओढ़ कर
कोई ना कोई
संत बाबा जेल
भी चला जायेगा
बचेगी संस्कृति
बचेगा देश
कुछ नहीं भी बचा
तब भी तेरे खुद का
थोड़ा बहुत किसी
छोटे मोटे अखबार
या पत्रिका में
बिकने बिकाने
का जुगाड़ हो जायेगा ।

चित्र साभार: www.picturesof.net

शनिवार, 31 जनवरी 2015

एक को चूहा बता कर हजार बिल्लियों ने उसे मारने से पहले बहुत जोर का हल्ला करना है


बाअदब
बामुलाहिजा
होशियार

बाकी
सब कुछ
तो ठीक है
अपनी अपनी
जगह पर

तुम एक
छोटी
सी बात
हमको भी
बताओ यार

शेर के खोल
पहन कर
कब तक करोगे
असली शेरों
का शिकार

सबसे
मनवा
लिया है
सब ने मान
भी लिया है
कबूल कर
लिया है

सारे के सारे
इधर के भी
उधर के भी
हमारे और
तुम्हारे
तुम जैसे

जहाँ कहीं
पर जो भी
जैसे भी हो
शेर ही हो

उसको
भी पता है
जिसको
घिर घिरा
कर तुम
लोगों के
हाथों
बातों के
युद्ध में
मरना है

मुस्कुराते हुऐ
तुम्हारे सामने
से खड़ा है

गिरा भी लोगे
तुम सब मिल
कर उसको

क्योंकि एक के
साथ एक के युद्ध
करने की सोचना
ही बेवकूफी
से भरा है

अब बस एक
छोटा सा काम
ही रह गया है

एक चूहे को
खलास करने
के लिये ही

सैकड़ों
तुम जैसी
बिल्लियों को
कोने कोने से
उमड़ना है

लगे रहो
लगा लो जोर

कहावत भी है
वही होता है जो
राम जी को
पता होता है

जो करना
होता है
वो सब
राम जी ने ही
करना होता है

राम जी भी
तस्वीरों में तक
इन दिनों कहाँ
पाये जाते हैं

तुम्हारे
ही किसी
हनुमान जी
की जेबों
में से ही
उन्होने भी
जगह जगह
अपना झंडा
ऊँचा करना है

वो भी बस
चुनाव तक

उसके बाद
राम जी कहाँ
हनुमान जी कहाँ

दोनो को ही
मिलकर
एक दूसरे
के लिये
एक दूसरे के
हाथों में
हाथ लिये

विदेश
का दौरा
साल
दर साल
हर साल
करना है ।

चित्र साभार: www.bikesarena.com