बुधवार, 17 सितंबर 2025
राम को लिखते हैं खत बस एक डाकखाना नहीं मिलता
शनिवार, 2 अगस्त 2025
नागा बाबा होना साधू साधू से अच्छा होता है का मतलब समझ में आ जाता है
सारे साधू एक ही होते हैं
पता चल जाता है
एक साधू साधू की खबर
खुद अपने पैसे
दे कर
अखबार में छपवाता है
साधू साधू
किसलिए कहा जाता है
तब समझ में आता है
जब टाई
पहना हुआ एक साधू
सामने से आके
आपसे हाथ मिलाता है
और मुस्कुराता है
साधुओं से मिलकर
अंतरात्मा खुश ही नहीं तृप्त हो जाती है
साधू ही धर्म होता है
साधू ही जाति होती है
साधू ही मानवता होती है
साधू ही कृष्ण साधू ही राम हो जाता है
सबसे बड़ा साधू
आपके आस
पास ही होता है
साधू साधू खेलता है
आपको पता ही नहीं चल पाता है
हम सब कितने भ्रमित होते हैं
कहां जा रहे होते हैं
क्या कर रहे होते हैं
साधू हमें भटकने से बचाता है
समय बदल गया है
साधू
इसे भी समझाता है
साधू साधू जपिए
फायदे गिनाता
है
साधू की एक मुहिम होती है
कुछ भी कर ले जाने के लिए
किसी भी एक साधू को
तीर बनाता
है
एक साधू धनुष हो जाता है
एक साधू अर्जुन हो जाता है
एक साधू मछली की आंख हो जाता
है
साधू साधू है
सभी साधुओं के लिए
‘उलूक’ को गर्व है
कलयुगी ऐसे सारे साधुओं में
उसे
नागा बाबा होना
साधू साधू से अच्छा होता है
का मतलब समझ में आ जाता है |
चित्र साभार:
https://www.vecteezy.com/
बुधवार, 15 मई 2024
सब जानते है सीवर खुला है और आ रही है बदबू सड़न की खुशबू गाने में किसी का क्या चला जाता है
किसी को कुछ कहीं नजर नहीं आता है
ये समझ से बाहर हो जाता है
वो वो नहीं है जो वो बताता है
वो तो बस एक झंडा फहराता है
लिखे में दिख रहा है उनके
राम भी समझ में आता है
एक और केवल एक ही दिन
एक भीड़ से बांच दिया जाता है
कटोरा पकडे हुए एक इंसान की कहानी
उसे कहाँ कोई समझाता है
कहां समय लगता है
दीमक होशियारी अपनी कहाँ छुपाता है
पढकर किसी का पन्ना
ब्लोगिंग में ब्लोगर बहुत बढ़ा
ऐसा कौन हो पाता है
सीवर खुला है और आ रही है बदबू
सड़न की खुशबू गाने में
किसी का क्या चला जाता है |
गुरुवार, 11 अप्रैल 2024
इंतज़ार है है मर्यादा पुरुषोत्तम दिखेगा राम नाम सत्य ज़ुबानी ज़ुबानी
शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024
अवतार है इक चुनाव मैदान में ब्रह्मा विष्णु महेश को कौन बताएगा
मत कहां जा कर गिरेगा पता चल जाएगा
चिंता किसी को हो ना हो क्या फर्क पड़ता है
इतिहास में पक्का दर्ज किया जाएगा |
शनिवार, 4 फ़रवरी 2023
कुछ रूह होती हैं कुछ रूह भूत होती हैं
सोमवार, 14 अक्टूबर 2019
सागर किनारे लहरें देखते प्लास्टिक बैग लेकर बोतलें इक्ट्ठा करते कूड़ा बीनते लोग भी कवि हो जाते हैं
ना
कहना
आसान होता है
ना
निगलना
आसान होता है
सच
कहने वाले
के
मुँह
पर राम
और
सीने पर
गोलियों का
निशान होता है
सच
कहने वाला
गालियाँ खाता है
निशान
बनाने वाले का
बड़ा
नाम होता है
‘उलूक’
यूँ ही नहीं
कहता है
अपने
कहे हुऐ
को
एक बकवास
उसे
पता है
कविता
कहने
और
करने वाला
कोई एक
खास होता है
अभी
दिखी है
कविता
अभी
दिखा है
एक कवि
कूड़ा
समुन्दर
के पास
बीन लेने
वाले को
सब कुछ
सारा
माफ होता है
बड़े
आदमी के
शब्द
नदी
हो जाते हैं
उसके
कहने
से ही
सागर में
मिल जाते हैं
बेचारा
प्लास्टिक
हाथ में
इक्ट्ठा
किया हुआ
रोता
रह जाता है
बनाने
वालों के
अरमान
फेक्ट्रियों
के दरवाजों
में
खो जाते हैं
बकवास
बकवास
होती है
कविता
कविता होती है
कवि
बकवास
नहीं करता है
एक
बकवास
करने वाला
कवि
हो जाता है ।
चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/
गुरुवार, 28 मार्च 2019
जो पगला नहीं पा रहे हैं उनकी जिन्दगी सच में हराम हो गयी है
उतार कर उसके हाथ में थमाने वाले छात्रों की पूजा
गुरुवार, 8 नवंबर 2018
जरूरी होता है निकालना आक्रोश बाहर खुद को अगर कोई यूँ ही काटने को चला आता है
मंगलवार, 18 सितंबर 2018
तू समझ तू मत समझ राम समझ रहे हैं उनकी किसलिये और क्यों अब कहीं भी नहीं चल पा री
तो
पड़ेगा ही
इसको
उसको
ही नहीं
पूरे
विश्व को
तुझे
किसलिये
परेशानी
हो जा री
टापू से
दूरबीन
पकड़े
कहीं दूर
आसमान में
देखते हुऐ
एक गुरु को
और
बाढ़ में
बह रहे
मुस्कुराते हुऐ
उस गुरु के
शिष्य को
जब
शरम नहीं
थोड़ा सा
भी आ री
एक
बुद्धिजीवी
के भी
समझ में
नहीं आती हैंं
बातें
बहुत सारी
उसे ही
क्यों
सोचना है
उसे ही
क्यों
देखना है
और
उसे ही
क्यों
समझना है
उस
बात को
जिसको
उसके
आसपास
हो रहे पर
जब
सारी जनता
कुछ भी
नहीं कहने को
कहीं भी
नहीं जा री
चिढ़ क्यों
लग रही है
अगर
कह दिया
समझ में
आता है
डी ए की
किश्त इस बार
क्यों और
किसलिये
इतनी
देर में आ री
समझ तो
मैं भी रहा हूँ
बस
कह कुछ
नहीं रहा हूँ
तू भी
मत कह
तेरे कहने
करने से
मेरी तस्वीर
समाज में
ठीक नहीं
जा पा री
कहना
पड़ता है
तेरी
कही बातें
इसीलिये
मेरी समझ
में कभी भी
नहीं आ री
‘उलूक’
बेवकूफ
उजड़ने के
कगार पर
किसलिये
और
क्यों बैठ
जाता होगा
किसी शाख
पर जाकर
गुलिस्ताँ के
जहाँ बैठे
सारे उल्लुओं
के लिये
एक आदमी
की सवारी
राम जी की
सवारी हो जा री ।
चित्र साभार: https://store.skeeta.biz
बुधवार, 5 सितंबर 2018
लिखना जरूरी हो जा रहा होता है जब किसी के गुड़ रह जाने और किसी के शक्कर हो जाने का जमाना याद आ रहा होता है
उन सीढ़ियों को
जिस पर चढ़ कर
बहुत ऊपर तक
कहीं पहुँच लिया
जा रहा होता है
नमन
उन कन्धों को
जिन को
सीढ़ियों को
टिकाने के लिये
प्रयोग किया
जा रहा होता है
नमन
उन बन्दरों को
जिन्हेंं हनुमान
बना कर
एक राम
सिपाही की तरह
मोर्चे पर
लगा रहा होता है
नमन
उस सोच को
जो गाँधी के
तीन बन्दरों
के जैसा
एक में ही
बना ले जा
रहा होता है
नमन
और भी हैं
बहुत सारे हैं
करने हैं
आज ही
के शुभ दिन
हर साल की तरह
जब
अपना अपना सा
लगता दिन
बुला रहा होता है
कैसे करेगा
कितने करेगा
नमन ‘उलूक’
ऊपर
चढ़ गया
चढ़ जाने के बाद
कभी नीचे को
उतरता हुआ
नजर ही नहीं
आ रहा होता है
गुरु
मिस्टर इण्डिया
बन कर ऊपर
कहीं गुड़
खा रहा होता है
चेलों
का रेला
वहीं
सीढ़ियाँ पकड़े
नीचे से
शक्कर
हो जाने के
ख्वाबों के बीच
कहीं
सीटियाँ बजा
रहा होता है।
चित्र साभार: www.123rf.com
सोमवार, 20 अगस्त 2018
खुदा भगवान के साथ बैठा गले मिल कर कहीं किसी गली के कोने में रो रहा होता दिन आज का खुदा ना खास्ता अगर गुजरा कल हो रहा होता
भूगोल हो रहा होता
आदमी ही एक
इतिहास हो रहा होता
पढ़ने की
जरूरत
नहीं हो
रही होती
सब को
रटा रटाया
अभिमन्यु की तरह
एक आदमी
पेट से ही
पूरा याद हो रहा होता
एक आदमी
हनुमान हो रहा होता
एक आदमी
राम हो रहा होता
बाकि
होना ना होना सारा
आम और
बेनाम हो रहा होता
चश्मा
कहीं उधड़ी हुई
धोती में सिमट रहा होता
ग़ाँधी
अपनी खुद की
लाठी से
पिट रहा होता
कहीं हिन्दू
तो कहीं उसे
मुसलमान
पकड़ रहा होता
कबीर
अपने दोहों को
धो धो कर
कपड़े से
रगड़ रहा होता
ना तुलसी
राम का हो रहा होता
ना रामचरित मानस
पर काम हो रहा होता
मन्दिर में
एक आदमी के
बैठने के लिये
कुर्सियों का
इन्तजाम
हो रहा होता
लिखा हुआ
जितना भी
जहाँ भी
हो रहा होता
हर पन्ने का एक
आदमी हो रहा होता
आदमी आदमी
लिख रहा होता
आदमी ही
एक किताब
हो रहा होता
इस से ज्यादा
गुलशन कब
आबाद
हो रहा होता
शाख
सो रही होती
‘उलूक’
खो रहा होता
गुलिस्ताँ
खुद में गंगा
खुद में संगम
और खुद ही
दौलताबाद
हो रहा होता।
चित्र साभार: http://clipartstockphotos.com
सोमवार, 25 दिसंबर 2017
हैप्पी क्रिसमस मेरी क्रिसमस जैसे कह रहे हों राम ईसा मसीह से आज कुछ ऐसी सोच जगायें
ईसा मसीह को
याद कर रही है
जहाँ सारी दुनियाँ
बहुत सी और भी
हैं महान आत्माएं
किस किस को
याद करें
किस किस को
भूल जायें
पराये अपने
होने लगे हैं
बहुत अच्छा है
आईये कुछ
मोमबत्तियाँ
प्यार के
इजहार
की जलायें
रोशनी प्रेम
और भाईचारे
की फैलायें
सीमायें
तोड़ कर सभी
चलो इसी तरह
किसी एक
दिन ही सही
मंशा आदमियत
की बनायें
आदमी हो जायें
सहेज लें
समय को
मुट्ठी में
इतना कि
अपने पराये
ना हो पायें
याद
आने लगे हैं
अटल जी
याद आ रहे हैं
मालवीय
याद आने
शुरु हो गये हैं
और भी अपने
आस पास के
आज एक नहीं
कई कई
न्यूटन जैसे
और भी हैं
इन्हीं
कालजयी
लोगों में
आज के दिन
जन्म लिये
महापुरुषों में
सभी
तारों को
एक ही
आकाश में
चाँद सूरज
के साथ
देखने की
इच्छा जतायें
पिरो लें
सभी
फूलों को
एक साथ
एक धागे में
एक माला
एक छोटी
ही सही
यादों को
सहेजने
की बनायें
याद आ रहे हो
बब्बा आज
तुम भी बहुत
इन सब के बीच में
तुम्हारी जन्मशती
के दिन हम सब
मिलकर सब के साथ
दिया एक यादों का
आज चलो जलायें
हैप्पी क्रिसमस
मेरी क्रिसमस
जैसे कह
रहे हों राम
ईसा मसीह से
आज कुछ ऐसी
सोच जगायें।
चित्र साभार: Shutterstock
![]() |
स्व. श्री देवकी नन्दन जोशी 25/12/1917 - 12/02/2007 |
शनिवार, 30 सितंबर 2017
नवाँ महीना दसवीं बात गिनता चल खुद की बकवास आज दशहरा है
हुऐ हैं लोग
राम समझा
रहे हैं लोग
आज दशहरा है
राम के गणित
का खुद हिसाब
लगा रहे हैं लोग
आज दशहरा है
अज्ञानियों का ज्ञान
बढा रहे हैं लोग
आज दशहरा है
शुद्ध बुद्धि हैं
मंदबुद्धियों की
अशुद्धियों को
हटा रहे हैं लोग
आज दशहरा है
दशहरा है
दशहरा ही
पढ़ा रहे हैं लोग
आज दशहरा है
आँख बन्द रखें
कुछ ना देखें
आसपास का
कहीं दूर एक राम
दिखा रहे हैं लोग
आज दशहरा है
कान बन्द रखें
कुछ ना सुने
विश्वास का
रावण नहीं होते
हैं आसपास कहीं
बता रहे हैं लोग
आज दशहरा है
मुंह बन्द रखें
कुछ ना कहें
अपने हिसाब का
राम ने भेजा हुआ है
बोलने को एक राम
झंडे खुद बन कर
राम समझा रहे हैं लोग
आज दशहरा है
दशहरे की
शुभकामनाएं
राम के लोग
राम के लोगों को
राम के लोगों के लिये
देते हुऐ इधर भी
और उधर भी
‘उलूक’ को
दिन में ही
नजर आ
रहे हैं लोग
आज दशहरा है ।
चित्र साभार: Rama or Ravana- On leadership
सोमवार, 3 अप्रैल 2017
खेल भावना से देख चोर सिपाही के खेल
एक साथ
एक जगह
पर रह
रहे होते हैं
लड़ते दिख
रहे होते हैं
झगड़ते दिख
रहे होते हैं
कोई गुनाह
नहीं होता है
लोग अगर
चोर सिपाही
खेल रहे होते हैं
चोर
खेलने वाले
चोर नहीं हो
रहे होते हैं
और
सिपाही
खेलने वाले भी
सिपाही नहीं
हो रहे होते हैं
देखने वाले
नहीं देख
रहे होते हैं
अपनी आँखें
शुरु से
अंत तक
एक ही लेंस से
उसी चीज को
बार बार
अलग अलग
रोज रोज
सालों साल
पाँच साल
कई बार
अपने ही
एंगल से
देख रहे
होते हैं
खेल खेल में
चोर अगर कभी
सिपाही सिपाही
खेल रहे होते है
ये नहीं समझ
लेना चाहिये
जैसे चोर
सिपाही की
जगह भर्ती
हो रहे होते हैं
खेल में ही
सिपाही चोर
को चोर चोर
कह रहे होते है
खेल में ही
चोर कभी चोर
कभी सिपाही
हो रहे होते हैं
खबर चोरों के
सिपाहियों में
भर्ती हो जाने
की अखबार
में पढ़कर
फिर
किस लिये
‘उलूक’
तेरे कान
लाल और
खड़े हो
रहे होते हैं
खेल भावना
से देख
खेलों को
और समझ
रावणों में ही
असली
रामों के
दर्शन किसे
क्यों और कब
हो रहे होते हैं
ये सब खेलों
की मायाएं
होती हैं
देखने सुनने
पर न जा
खेलने वालों
के बीच और
कुछ नहीं
होता है
खेल ही हो
रहे होते हैं ।
चित्र साभार: bechdo.in
सोमवार, 10 अक्टूबर 2016
आदमी एकम आदमी हो और आदमी दूना भगवान हो
गजल हों
कविताएं हों
चाँद हो
तारे हों
संगीत हो
प्यार हो
मनुहार हो
इश्क हो
मुहब्बत हो
अच्छा है
अच्छी हो
ज्यादा
ना हो
एक हो
कोई
सूरत हो
खूबसूरत हो
फेस बुक
में हो
तस्वीर हो
बहुत ही
अच्छा है
दो हों
लिखे हों
शब्द हों
सौ हों
टिप्पणिंयां हों
कहीं कुछ
नहीं हो
उस पर
कुछ नहीं
होना हो
बहुत
अच्छा है
तर्क हों
कुतर्क हों
काले हों
सफेद हों
सबूत हों
गवाह हों
अच्छी सुबह
अच्छा दिन
और
अच्छी रात हो
अच्छा है
भीड़ हो
तालियाँ हो
नाम हो
ईनाम हो
फोटो हो
फूल हों
मालाऐं हों
अखबार हो
समाचार हो
और भी
अच्छा है
झूठ हों
बीज हों
बोने वाले हों
गिरोह हो
हवा हो
पेड़ हों
पर्यावरण हो
गीत हों
गाने वाली
भेड़ हों
हाँका हो
झबरीले
शेर हों
अच्छा है
फर्क नहीं
पड़ना हो
दिखना
कोई
और हो
दिखाना
कोई
और हो
करना
कहीं
और हो
भरना
कहीं
और हो
बोलने वाला
भगवान हो
चुप रहने
वाला
शैतान हो
सबसे
अच्छा है
‘उलूक’ हो
पहाड़ा हो
याद हो
आदमी
एकम
आदमी हो
और
आदमी
दूना
भगवान हो
बाकी
सारा
हो तो
राम हो
नहीं तो
हनुमान हो
कितना
अच्छा है।
चित्र साभार: http://www.shutterstock.com/
शनिवार, 7 नवंबर 2015
किसी के पढ़ने या समझने के लिये नहीं होता है लक्ष्मण के प्रश्न का जवाब होता है बस राम ही कहीं नहीं होता है
मैं तुझे लक्ष्मण
मैं राम होना भी
नहीं चाहता हूँ
आज मेरे अंदर
का रावण बहुत
विकराल भी
हो गया है
और मुझे राम से
डर लगने लगा है
राम आज मुझे
पल पल हर पल
नोच रहा है
किस से कहूँ
नहीं कह सकता
राम राम है
जय श्री राम है
मेरा ही राम है
लक्ष्मण तुम को
शक्ति लगी थी
और तुम्हारे पास
प्रश्न तब नहीं थे
अब हैं बहुत हैं
लक्ष्मण तुम और
तुम्हारे जैसे और
कई अनगिनत
अभिमन्यू हैं
जो तीर नहीं हैं
पर चढ़ाया गया है
जिन्हे कई बार
गाँडीव पर अर्जुन ने
तुम्हें समझा बुझा कर
तुम बने भी हो तीर
चले भी हो तीर
की तरह कई बार
इतना बहुत है कि
आज के जमाने में
कोई ना मरता है
ना घायल होता है
तुम्हारे जैसे तीरों से
कायरों के टायरों पर
सड़क के निशान
नहीं पड़ते हैं लक्ष्मण
रोज बहुत लोगों के
अंदर कई राम मरते हैं
कोई नहीं बताता है
किसी से कुछ नहीं
कह पाता है
बहुत बैचेनी होती है
और तुम भी पूछ बैठे
ऐसे में ऐसा ही कुछ
और पता चला
आजकल राम
तुम्हारे साथ भी
वही करता है जो
सभी के साथ
उसने हमेशा से किया है
सभी को राम से प्रेम है
सभी को जय श्री राम
कहना अच्छा लगता है
कोई खेद नहीं होता है
राम राम होता है लक्ष्मण
प्रश्न करना हमेशा
दर्दमय होता है
उत्तर देना उस से भी
ज्यादा दर्द देता है
जब प्रश्न अलग होता है
राम अलग होता है
और पूछने वाला
लक्ष्मण होता है ।
चित्र साभार: forefugees.com
गुरुवार, 29 अक्टूबर 2015
बंदरों के नाटक में जरूरी है हनुमान जी और राम जी का भी कुछ घसीटा
को नोचा और
हनुमान जी ने
कुछ नहीं सोचा
तुझे ही क्यों
नजर आने
लगा इस सब
में कोई लोचा
भगवान राम जी
के सारे लोगों
ने सारा कुछ देखा
राम जी को भेजा
भी होगा जरूर
चुपचाप कोई
ना कोई संदेशा
समाचार अखबार
में आता ही है हमेशा
बंदर हो हनुमान हो
चाहे राम हो
आस्था के नाम पर
कौन रुका कभी
और किसने है
किसी को रोका
मौहल्ला हो शहर हो
राज्य हो देश हो
तेरे जैसे लोगों
ने ही हमेशा ही
विकास के पहिये
को ऐसे ही रोका
काम तेरा है देखना
फूटी आँखों से
रात के चूहों के
तमाशों को
किसने बताया
और किसके कहने
पर तूने दिन का
सारा तमाशा देखा
सुधर जा अभी भी
मत पड़ा कर
मरेगा किसी दिन
पता चलेगा जब
खबर आयेगी
बंदरों ने पीटा
हनुमान ने पीटा
और उसके बाद
बचे खुचे उल्लू
‘उलूक’ को राम
ने भी जी भर कर
तबीयत से पीटा ।
चित्र साभार: www.dailyslave.com
रविवार, 25 अक्टूबर 2015
राम ही राम हैं चारों ओर हैं बहुत आम हैं रावण को फिर किसलिये किस बात पर जलाया
भगदड़ मचने पर
दो लोगों से
रावण जैसा ही नजर आया
और दूसरे की पहचान
बहुत आसानी से
खुद ही देखने का प्लान
किसी चाहने वाले ने बनाया
पूछने की राय दे कर अपना
बुधवार, 15 जुलाई 2015
चलो ऊपर वाले से पेट के बाहर चिपकी कुछ खाली जेबें भी अलग से माँगते हैं
खाया जाता है
थोड़े से में पेट
ऊपर कहीं
गले गले तक
भर जाता है
महीने भर
का अनाज
थैलों में नहीं
बोरियों में
भरा आता है
खर्च थोड़ा
सा होता है
ज्यादा बचा
घर पर ही
रह जाता है
एक भरा
हुआ पेट
मगर भर ही
नहीं पाता है
एक नहीं बहुत
सारे भरे पेट
नजर आते हैं
आदतें मगर
नहीं छोड़ती
हैं पीछा
खाना खाने
के बाद भी
दोनो हाथों की
मुट्ठियों में भी
भर भर कर
उठाते हैं
बातों में यही
सब भरे
हुऐ पेट
पेट में भरे
रसों से
सरोबार हो
कर बातों
को गीला
और रसीला
बनाते हैं
नया सुनने
वाले होते हैं
हर साल ही
नये आते हैं
गोपाल के
भजनों को सुन
कल्पनाओं में
खो जाते हैं
सुंदर सपने
देखतें हैं
बात करने
वालों में
उनको कृष्ण
और राम
नजर आते हैं
पुराने मगर
सब जानते हैं
इन सब भरे पेटों
की बातों में भरे
रसीले जहर को
पहचानते हैं
ऊपर वाले से
पूछते भी हैं हमेशा
बनाते समय ऐसे
भरे पेटों के
पेटों के
अगल बगल
दो चार जेबें
बाहर से उनके
कारीगर लोग
अलग से क्यों
नहीं टांगते हैं ।
चित्र साभार: theinsidepress.com