उलूक टाइम्स: चार सौ बीसवीं
चार सौ बीसवीं लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
चार सौ बीसवीं लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 10 सितंबर 2013

चार सौ बीसवीं प्रविष्टि उलूक कर रहा है

वो कुछ ना बता
जो मुझको पता है
एक दो शुरु जाने
कब से किया है
होना ही था जो
आज हो गया है
आधा नहीं पूरा
चार सौ बीस
हो गया है
बात चार सौ बीस
होने की ही नहीं है
बात कुछ पाने या
कुछ खोने की नहीं है
कौन कितना चार सौ
बीस हो गया है
ये उसके माथे पर
ही छप गया है
दिखाना किसी को
कहीं कुछ नहीं है
बताना किसी को
कहीं कुछ नहीं है
जितना जिसका
जो हो गया है
पर्दे में लाकर
उसे रख दिया है
पता भी किसी को
कहाँ चल रहा है
एक दिन का जा
कर के जब एक
ही जुड़ रहा है
चार सौ बीस जुड़ा
कर चार सौ
बीस कर रहा है
मुझे जो पता है
वो अपना पता है
तूने किया है जो
तुझको पता है
उसका पता हाँ
उसको पता है
किसका पता पर
किसको पता है
यही बस मुझको
नहीं कुछ पता है
कोई आज कुछ है
कोई कल हो रहा है
अपने समय में
हर कोई हो रहा है
कोई दस हो रहा है
कोई सौ हो रहा है
कोई धीरे धीरे
कोई तेज हो रहा है
होना सभी को
ही हो रहा है
किसी की करनी
कोई भर रहा है
किसके लिये कौन
क्या कर रहा है
क्यों कर करा है
होने को हर रोज
कुछ हो रहा है
इतना लिखा है
लिखते रहा है
खुश हो रहा है
बहुत हो रहा है
एक दो से होकर
कोई गुजर रहा है
कोई चार सौ बीस
पर इधर हो रहा है ।