उलूक टाइम्स: चिढ़
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शनिवार, 31 दिसंबर 2022

लम्हे

 


कुछ लम्हे मुट्ठी के अंदर
कुछ लम्हे मुट्ठी के बाहर
कुछ लम्हे बिछे सड़क में
कुछ लम्हे तो हो गए शायर


लम्हे लम्हे सिमटा जीवन
लम्हे लम्हे बिखरा जीवन
किसने पकड़े किसने जकड़े
लम्हे बहके लम्हे संभले
मन ही मन


लम्हे दर लम्हे पीड़ा
लम्हे दर लम्हे दुख
कर बस कर वंदन
लम्हे दर लम्हे खुशियां
लम्हे दर लम्हे चंदन
चन्दन


लम्हे चिढ़ के लम्हे गुस्सों के
लम्हे मार पीट के
गिन मधुबन
लम्हे चीर फाड़ के
लम्हे प्यार बाँट के
जोड़ घटा
शबनम शबनम


लम्हे के पीछे मन
लम्हे के आगे तन
लम्हों से बिखरा आँगन
लम्हे पाठक के
बस नव वर्ष का स्वागतम |

चित्र साभार: https://www.youtube.com/watch?v=iFHpIMzVO3Y

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रविवार, 12 जनवरी 2014

मिर्ची क्यों लग रही है अगर तेरी दुकान के बगल में कोई नयी दुकान लगा रहा है

माना कि
नयी
दुकान एक

पुरानी
दुकानों के 
बाजार में
घुस कर

कोई
खोल बैठा है

पुराना ग्राहक
इतने से में ही
पता नहीं
क्यों आपा
खो बैठा है

खरीदता है
सामान भी
अपनी ही
दुकान से
धेले भर का

नयी
दुकान के
नये ग्राहकों को

खाली पीली

धौंस
पता नहीं

क्यों
इतना देता है


अपने
मतलब
के समय

एक दुकानदार
दूसरे
दुकानदार को

माल
भी
जो चाहे दे देता है


ग्राहक
एक का

बेवकूफ जैसा

दूसरे के
ग्राहक से

खाली पीली
में
ही
उलझ लेता है


पचास साठ
सालों से

एक्स्पायरी
का सामान

ग्राहकों को
भिड़ा रहे हैं


ऐसे
दुकानदारों के

कैलेण्डर

ग्राहक

अपने अपने
घर पर

जरूर लगा रहे हैं

माल सारा
दुकानदारों

के खातों में ही
फिसल के जा रहा है

बाजार
चढ़ते चढ़ते

बैठा दिया
जा रहा है


नफा ही नफा
हो रहा है


पुरानी
दुकानों को

थोड़ा बहुत
कमीशन


ग्राहकों में
अपने अपने

पहुंचा दिया
जा रहा है


ग्राहक
लगे हैं
अपनी
अपनी
दुकानो के

विज्ञापन
सजाने में


कोई
अपने घर का

कोई
बाजार का
माल
यूं ही
लुटा रहा है


क्या फर्क
पड़ता है

ऐसे में

अगर कोई

एक नई दुकान
कुछ दिन के
लिये
ही सही
यहाँ लगा रहा है


खरीदो
आप अपनी
ही
दुकान का
कैसा भी सामान


क्यों
चिढ़ रहे हो

अगर कोई
नयी दुकान

की तरफ
जा रहा है


बाजार
लुट रही है

कब से
पता है तुम्हें भी


फिर
आज ही
सबको

रोना सा
क्यों आ रहा है


बहुत जरूरी
हो गया है

अब इस बाजार में

एक
अकेला कैसे

सारी बाजार
को लूट कर


अपनो में ही
कमीशन

बटवा रहा हैं

तुम करते रहो धंधा 

अपने इलाके में
अपने हिसाब से

एक नये
दुकानदार की

दुकानदारी

कुछ दिन

देख लेने में
किसी का क्या
जा रहा है ?

मंगलवार, 19 नवंबर 2013

ये तो होना ही था


जो हो रहा था अच्छा हो रहा था 
जो हो रहा है अच्छा हो रहा है 
जो आगे होगा वो अच्छा ही होगा 

बस तुझे
एक बात का 
ध्यान रखना होगा 

बंदर के बारे में 
कुछ भी कभी भी नहीं सोचना होगा 

बहुत पुरानी कहावत है 
मगर बड़े काम की कहावत नजर आती है 
जब मुझे
अपने 
दिमाग में घुसी भैंस नजर आती है 

अब माना कि 
अपनी ही होती है 
पर भैंस तो भैंस होती है 
उसपर
जब वो किसी के 
दिमाग में घुसी होती है 

जरा जरा सी बात पर 
खाली भड़क जाती है 
कब क्या कर बैठे 
किसी को बता कर भी नहीं जाती है 

दूसरों को देख 
कर लगता है 
उनकी भी कोई ना कोई 
भैंस 
तो 
जरूर होती होगी 

तो मुझे खाली
क्यों 
चिंता हो जाती है 
अपनी अपनी भैंस होती है
जिधर करेगा मन 
उधर को चली जाती है

अब इसमें मुझे 
चिढ़ लग भी जाती है 
तो कौन सी बड़ी बात हो जाती है 

लाईलाज हो बीमारी
तब 
हाथ से निकल जाती है 

अखबार की खबर से 
जब पता चलता है 
कोई भी ऐसा नहीं है 
मेरे सिवाय यहाँ पर 
जिसके साथ इस तरह की कोई अनहोनी होती हुई
कभी यहां 
पर देखी जाती है 

होती भी है
किसी के 
पास एक भैंस 
वो हमेशा तबेले में ही बांधी जाती है 

सुबह सुबह से
इसी 
बात को सुनकर 
दुखी हो चुकी
मेरे 
दिमाग की भैंस 
पानी में चली जाती है 

तब से भैंस के जाते ही 
सारी बात जड़ से खतम हो जाती है 

परेशान होने की 
जरूरत नहीं 
अगर आपके समझ में
'उलूक' 
की बात बिल्कुल भी नहीं आती है । 

चित्र साभार: http://wazaliart.blogspot.com/

गुरुवार, 5 जनवरी 2012

चिढ़

लगती है चिढ़

हो जाती है चिढ़

हंसी में भी
साफ साफ नजर
आती जाती
दिख जाती है चिढ़

बहुत सारे गुल
खिलाती है चिढ़

कोई क्या करे
लग रही है
समझ में भी
आती है चिढ़

बहुत लगती है
खुद को भी
चिढ़ाती है

बहुत चिढ़ाती
है चिढ़

फेवीकौल
नहीं होती है
फिर भी चिपक
जाती है चिढ़

कई कई बार
लग जाती है चिढ़

बहुत जोर की
लगती है
बता कर नहीं
आती है चिढ़

घरवालों से
हो जाती है चिढ़
घरवाली भी
दिखलाती है चिढ़
रिश्तेदारों से
हो जाती है चिढ़

पड़ोसी को
पड़ोसन से
करवाती है चिढ़

दोस्तों के बीच में भी
घुस आती है चिढ़

नौकरी में
सतरंगी रंग
दिखाती है चिढ़

कहाँ नहीं जाती है चिढ़

यहां तक की
फोटो में भी
आ जाती है चिढ़

पेंट का रंग
बन जाती है चिढ़
जीन्स की लम्बाई
कराती है चिढ़
साड़ी की कीमत
सुनाती है चिढ़

किस किस से
नहीं हो जाती है चिढ़

कई तरीकों से
घुस जाती है चिढ़

हर एक की
एक अलग
हो जाती है चिढ़

सबको ही
कभी तो
लग ही
जाती है चिढ़

कब कैसे किस को
कहाँ लग जाती चिढ़

छोटी सी बात पर
उठ जाती है चिढ़

पहले से नहीं
रहती है कहीं
बता कर भी
नहीं आती जाती है चिढ़

क्या आप को
अपना कुछ पता
बताती है चिढ़

चिढ़ थी चिढ़ है
और रहेगी भी चिढ़

समझते समझते
आग में डाले
घीं की तरह से
और भी भड़क
जाती है चिढ़ ।