उलूक टाइम्स: चींंटियाँ
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बुधवार, 23 सितंबर 2015

भगदड़ मच जाती है जब मलाई छीन ली जाती है

चींंटियाँ
बहुत कम 
अकेली दौड़ती नजर आती है 

चीटियाँ
बिना वजह लाईन बना कर 
इधर से उधर कभी नहीं जाती हैं 

छोटी चींंटियाँ एक साथ 
कुछ बड़ी अलग कहीं साथ साथ 

और बहुत बड़ी 
कम देखने वाले को भी दूर से ही दिख जाती हैं 

लगता नहीं कभी 
छोटी चींंटियों के दर्द और गमो के बारे में 
बड़ी चीटियाँ
कोई संवेदना जता पाती हैं 

चींंटियों की किताब में लिखे
लेख कविताऐं भी कोई संकेत सा नहीं दे पाती हैं 

चींंटियों के काम कभी रुकते नहीं है 
बहुत मेहनती होती हैं चींंटियाँ हमेशा 
चाटने पर आ गई तो मरा हुआ हाथी भी चाट जाती हैं 

छोटी चींटियों के लिये
बड़ी चीटियों का प्रेम और चिंता 
अखबार के समाचार के ऊपर छपे समाचार 
से उजागर हो जाती है 

पहले दिन छपती है 

चींंटियों से
उस गुड़ के बरतन को छीने जाने की खबर
जिसे लूट लूट कर चींंटियाँ 
चीटियों की लाईन में रख पाती हैं 

खबर फैलती है 
चींंटियों में मची भगदड़ की 
दूसरे किस्म की चीटियों के कान में पहुँच जाती है 

दूसरे दिन

दूसरी चींंटियाँ 
पहली चींंटियों की मदद के लिये
झंडे लहराना शुरु हो जाती है

पूछती हैं 
ऐसे कैसे सरकार
अपनी चींंटियों में भेद कर जाती है 

इधर भी तो लूट ही मची है
चींंटियाँ ही लूट रही हैं 
उधर की चींंटियों को गुड़ छीन कर
दे देने का संकेत देकर
सरकार आखिर करना क्या चाहती है 

ये सब रोज का रोना है
चलता हुआ खिलौना है 
चाबी भरने की याद आती है तभी भरी जाती है 

कुछ समझ में आये या ना आये 
एक बात पक्की सौ आने समझ में आती है 

लाईन में लगी चींंटियों की मदद करने
लाईन वाली चींंटियाँ ही आती है 
लाईन से बाहर
दौड़ भाग कर
लाईन को देखते रहने वाली चींंटियाँ 
गुड़ की
बस खुश्बू दूर से ही सूँघती रह जाती हैं । 

चित्र साभार: www.gettyimages.com

मंगलवार, 20 जनवरी 2015

खुली बहस होने से अच्छा बंद आँखों से देखना होता है किताबों से बाहर की एक बात जब किसी दिन बताई जाती है

एक लम्बे अर्से से
कूऐं की तलहटी
से मुँडेर तक की
छोटी सी उछाल में
सिमटी हुई जिंदगी
रंगीन हो जाती है
जब एक कूऐं से
होते होते सोच
एक दूसरे कूऐं में
दूर जाकर कहीं
डूब कर तैर कर
नहा धो कर आती है
कई नई बातें सीखने
को मिलती हैं और
कई पुरानी बातों की
असली बात निकल
कर सामने आती है
जरूरी होता है पक्ष
में जाकर बैठ जाना
उस समय जब विपक्ष
में बैठने से खुजली
शुरु हो जाती है
बहस करने की
बात कहना ही एक
गुनाह के बराबर होता है
उस समय जब
अनुशाशन के साथ
शाशन के मुखोटे
बैचने वालों के
चनों में भूनते भूनते
आग लग जाती है
आ गया हो फिर
समय एक बार
दिखाने का अक्ल से
घास किस तरह
खाई जाती है
लोकतंत्र का मंत्र
फिर से जपना
शुरु कर चलना
शुरु कर चुकी होती हैं
कुछ काली और
कुछ सफेद चींंटियाँ
अखबार के सामने
के पन्ने रेडियो
दूर दर्शन में
हाथी दिखाई जाती है
बहुत छोटी होती है
यादाश्त की थैलियाँ
चींंटियों के आकार के
सामने कहाँ कुछ
याद रहता है
कहाँ कुछ याद करने
की जरूरत ही रह जाती है
कृष्ण हुऐ थे
किस जमाने में
और इस जमाने में
गीता सुनाई जाती है
कतारें चींंटियों की
फिर लगेंगी युद्ध
होने ना होने की
बातें हो ना हों
दुँदुभी हर किसी
के हाथ में
बिना आवाज
की बजती
दिखाई जाती है
मेंढकी खयाल ही
सबसे अच्छा
खयाल होता है
अपने कुऐं में
वापस लौट कर
आने पर बात पूरी
समझ में आती है ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com