उलूक टाइम्स: छापना
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बुधवार, 23 अप्रैल 2014

कुछ भी लिखे पर छपने लगे एक किताब क्या जरूरी है ऐसा हो जाये

कुछ
अच्छे पर

कुछ
अच्छा कभी
कहा जाये

और

एक
किताब हो जाये

दिखे
रखी हुई
सामने से कहीं

किताबों की बीच

किताबों की भी
किताब हो जाये

किसकी
चाहत नहीं
होती कभी

बहुत सी

खुश्बू भरी
हुई कुछ
ऐसी ही एक
बात हो जाये

कल
दिखे तो
पढ़े कोई

परसों दिखे
फिर पढ़े कोई

पढ़ते पढ़ते
पता ना चले

दिन
हो कहीं
और कहीं
रात हो जाये

यहाँ
रोज लिखी
देखता है

बेवकूफी
की एक
बाराहखड़ी

सब
अच्छा सा
होता होगा कहीं

उसे
देखने की
आदत होगी
तुझे भी पड़ी

बात बात में
कुछ भी लिखे
को देख कर
बोल देता है

अब
एक किताब
हो जाये

ऐसे में
कुछ नहीं
कहा जाता
किसी से

कहा भी
क्या जाये

अनहोनियाँ
हो रही हैं
जिस तरह
आसपास

तेरे भी
और
मेरे भी

तू ही बता

कितने
दिनों तक
देख देख कर
सब कुछ

चुप रहा जाये

आज फिर
कह दिया
‘उलूक’ से

कह
दिया होगा
बहुत मेहरबानी

अगली
बार से
इसी बात को

फिर
ना कहा जाये

इस
तरह
की बातें
लिखी भी
जायें कहीं

लिखी
जाते ही

मिटा
भी दी जायें

गीता
नहीं लिखी
जा रही हो अगर
कहीं किसी से

फिर
से ना
कह दिया जाये

अब
किताब
हो जाये ।