उलूक टाइम्स: दारू
दारू लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
दारू लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 24 मई 2015

लिखते लिखते लिखने वाले की बीमारी पर भी लिख

दवा पर लिख
कुछ कभी
दारू पर लिख

दर्द पर लिख
रही है
सारी दुनियाँ
तू भी लिख

कोई नहीं
रोक रहा है
पर कहीं
कुछ कभी
कँगारू पर लिख

चाँद पर लिख
कुछ सितारों
पर लिख
लिखने पर
रोक लगे
तब तक कुछ
बेसहारों पर लिख

लिखने लिखाने
पर पूछना शुरु
करती है जनता
कभी कुछ
समाधान
पर लिख
कभी आसमान
पर लिख

करने वाले
मिल जुल
कर निपटाते हैं
काम अपने
हिसाब से
सिर के बाल
नोच ले अपने
उसके बाद चाहे
बाल उगाने की
कलाकारी
पर लिख

हर कोई बेच
कर आता है
सड़क पर
खुले आम
सब कुछ
तू भी तो बेच
कुछ कभी
और फिर
बेचने वालों
की मक्कारी
पर भी लिख

लिखना
लिखाना ही
एक दवा है
मरीजों की
तेरी तरह के

डर मत
पूछने वालों से
कभी पूछने
वालों की
रिश्तेदारी
पर लिख

हरामखोरों
की जमात
के साथ रहने
का मतलब
ये नहीं होता
है जानम

लिखते लिखते
कभी कुछ
अपनी भी
हरामखोरी
पर लिख ।

चित्र साभार: www.colinsclipart.com

मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

पानी से अच्छा होता अगर दारू पर कुछ लिखवाता


हर कोई तो पानी 
पर लिख रहा है

अभी अभी का 
लिखा हुआ पानी पर
अभी का अभी
उसी 
समय जब मिट रहा है

तुझे ही पड़ी है 
ना जाने क्यों
कहता जा रहा है पानी सिमट रहा है

जमीन के नीचे 
बहुत नीचे को चला जा रहा है

पानी की बूंदे 
तक शरमा रही हैं
अभी दिख रही हैं अभी विलुप्त हो जा रही हैं
उनको पता है 
किसी को ना मतलब है ना ही शरम आनी है

सुबह सुबह की 
ओस की फोटो
तू भी कहीं लगा होगा खींचने में
मुझे नहीं लगता है 
किसी और को पानी की कहीं भी याद कोई आनी है

इधर आदमी लगा है 
ईजाद करने में
कुछ ऐसी पाईप लाइने
जो घर घर में जा कर
पैसा ही पैसा बहाने को बस रह जानी हैं

तू भी देख ना कहीं 
पैसे की ही धार को
हर जगह आजकल 
वही बात काम में बस किसी के आनी है

पानी को भी कहाँ 
पड़ी है
पानी की 
अब कोई जरूरत
आँखे भी आँखो में पानी लाने से
आँखो को ही परहेज करने को
जब कहके 
यहाँ अब जानी हैं

नल में आता तो है 
कभी कभी पानी
घर पर नहीं आता है तो कौन सा गजब ही हो जाना है
बस लाईनमैन की जेब को गरम ही तो करवाना है
तुरंत पानी ने दौड़ कर आ जाना है

मत लिया कर इतनी 
गम्भीरता से किसी भी चीज को
आज की दुनियाँ में 
हर बात नई सी जब हो जा रही है

हवा पानी आग 
जमीन पेड़ पौंधे
जैसी बातें सोचने वाले लोगों के कारण ही
आज की पीढ़ी
अपनी अलग पहचान नहीं बना पा रही है

पानी मिल रहा है पी 
कुछ मिलाना है मिला
खुश रह
बेकार की बातें मत सोच कुछ कमा धमा

होगा कभी 
युद्ध भी अगर
पानी को 
लेकर कहीं
वही मरेगा सबसे पहले
जो पैसे का नल नहीं लगा पायेगा
पैसा होगा तो वैसे भी प्यास नहीं लगेगी

पानी नहीं भी 
होगा कहीं तब भी
कुछ अजब 
गजब नहीं हो जायेगा
ज्यादा से ज्यादा 
शरम से जमीन के थोड़ा और नीचे की ओर चला जायेगा

और फिर
एक बेशरम 
चीर हरण करेगा
किसी को भी कुछ नहीं होगा
बस
पानी ही खुद में पानी पानी हो जायेगा ।

चित्र साभार: http://clipart-library.com/