उलूक टाइम्स: ना आना
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सोमवार, 8 सितंबर 2014

जो भी उसे नहीं आता है उसे पढ़ाना ही उसको बहुत अच्छा तरह से आता है

रसोईया नहीं है
पर कुछ ना कुछ
जरूर परोसता है
मेरे आस पास ही है
कोई बिना मूँछ का
जो अपनी
मूँछे नोचता है
उसे देख कर ही
मुझे पता नहीं
क्या हो जाता है
और वो है कि
मेरे पास ही
आ आ कर
कुछ ना कुछ
गाना शुरु
हो जाता है
महिलाओं को
देखते ही उसकी
बाँछे खिल जाती हैं
बहुत अच्छी तरह
पता होता है उसे
बीबी उसकी
घर पर ही दिन में
दिन भर के लिये
सो जाती है
सारी दुनियाँ के
ईमानदारों में
उसका जैसा ईमान
नहीं पाया जाता है
बस यही बात जोर
जोर से बताता है
और बाकी बातों
को दूसरों की बातों
के शोर में दबाता है
दुकान बातों की
कहीं भी खोल
कर बैठ जाता है
उसकी दुकान के
तराजू के पलड़े
के नीचे चिपकाया
हुआ चुम्बक
वैसे भी कोई नहीं
देख पाता है
उसकी हरकतों का
पता इसको भी है
और उसको भी है
जानते बूझते हुऐ भी
इसके साथ मिलकर
वो भी उसके गिरोह में
शामिल हो जाता है
दुनियाँ के दस्तूर
रोज बदल रहे हैं
बड़ी तेजी के साथ
एक चार सौ बीस
चार सौ बीस को
बस मोरल पढ़ाता है
जयजयकार होती है
आजकल कुछ ऐसे ही
सफेदपोशों की सब जगह
सबको पता होता है
बंदर ही बिल्लियों को
लड़ा लड़ा कर
रोटियाँ कुतर जाता है
‘उलूक’ तेरी किस्मत
ही है खराब कई सालों से
गुलशन उजाड़ता है
कोई और ही हमेशा
और उल्लू को फालतू में ही
बदनाम कर दिया जाता है ।

चित्र साभार: https://www.etsy.com