उलूक टाइम्स: बहक
बहक लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
बहक लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 7 जून 2021

किसी को कुछ पता ना चले और लिखे लिखाये के पैदा होने से पहले उसकी मौत हो जाये

 

लिखने की इच्छा है लिखो किसने रोका है 

थोड़ा सा लिखो कुछ छोटा सा लिखो
समझ ले कोई भी कुछ ऐसा लिखो

उस लिखे पर कोई भी कुछ भी लिख ले जाये
भटक ना जाये बहक ना जाये
फिर से दुबारा ढूँढता हुआ आये कुछ ऐसा लिखो

पर कैसे लिखो बिना सोचे समझे

कुछ लिखो या कुछ समझे हुऐ पर कुछ समझाकर लिखो
मुद्दे पर लिखो या कुछ तकिये रजाई और गद्दे पर लिखो

अपने अन्दर के जमा किये हुऐ कूढ़े को थोड़ा सा सरका कर
दिमाग के किसी कोने पर
पड़ोसन के नये खरीदे हुऐ नये ब्राँडेड पर्दे पर लिखो

लेकिन कुछ तो लिखो

क्या पता लिखते लिखते लिखने को समझ आ जाये
खुद ही अपने आप सही सपाट और सीधा सच्चा सा
लिखने लिखाने लायक
 निकल कर दौड़ ले पन्ने पर सफेद
बनाते हुऐ ओल वैदर रोड टाईप की सरकार की
महत्वाकाँक्षी सड़क जैसा कुछ

लिखते ही
बादल हटें कोहरा किनारे से निकलता
शर्माता हुआ खुद ही भाप हो जाये

सजीव लिखते हैं सभी लिखते हैं
जीव लिखते हैं निर्जीव लिखते हैं

लिखने लिखाने की दुनियाँ में
कब कौन कहाँ से कैसे लिखते हैं
किसने सोचना है जमीन हो जाये
 
लिखना जरूरी है
किसी के लिये लिखना मजबूरी है

किसी के लिये
शौक से लिखिये शौक लिखिये मौज हो जाये

कोई नहीं लिखता है
वो सब अपने अंदर का ‘उलूक’
जो वो करता है
बताता नहीं है किसी को

लिखने लिखाने से उसके किसी को पता नहीं चलना है

वो वही लिखता है
जिसके लिखने से किसी को कुछ पता ना चले
और लिखे लिखाये के पैदा होने से पहले
उसकी मौत हो जाये।

चित्र साभार: https://promotionalproductsblog.net/

रविवार, 2 फ़रवरी 2014

कुछ ना इधर कुछ ना उधर कहीं हो रहा था

लिखा हुआ
पत्र एक
हाथ में
कोई लिया
हुआ था

किस समय
और कहाँ पर
बैठ कर
या खड़े होकर
लिखा गया था

शांति थी साथ में
या बहुत से लोगो
की बहस सुनते हुऐ
कुछ अजीब सी
जगह से बिना
सोचे समझे ही
कुछ लिख विख
दिया गया था

कितनी पागल
हो रही थी सोच
किस हाल में 

शरीर बहक
रहा था

नहा धो कर
आया हुआ
था कोई
और खुश्बू से
महक रहा था

बह रही
थी नाक
छींकों
के साथ
जुखाम
बहुत
जोर का
हो रहा था

झगड़ के
आया था
कोई कहीं
आफिस में
बाजार में
या घर की
ही मालकिन से
पंगा हो रहा था

नीरो की
बाँसुरी भी
चुप थी
ना कहीं
रोम ही
जल रहा था

सब कुछ
का आभास
होना इस
आभासी
दुनियाँ में
कौन सा
जरूरी
हो रहा था

अपनी अपनी
खुशी
छान छान
कर कोई
अगर
एक छलनी
को धो रहा था

दुखी और बैचेन
दूसरा कोई कहीं
दहाड़े मार मार
कर रो रहा था

बहुत सी जगह
पर बहुत कुछ
लिखा हुआ पढ़ने
का शायद कुछ
ऐसा वैसा ही
असर हो रहा था

पत्र हाथ में
था उसके
पर पढ़ने का
बिल्कुल भी मन
नहीं हो रहा था

अपने अपने
कर्मो का
मामला होता है

कोई इधर तो
कोई उधर पर
खुद ही
ढो रहा था ।