उलूक टाइम्स: लड़खड़ाने
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सोमवार, 9 सितंबर 2013

लड़खड़ाने के लिये पीना जरूरी नहीं है !

तेरा लिखा हुआ
आजकल मुझे
बहका हुआ सा
नजर आता है
तू पता नहीं
क्या करता है
तेरा लिखा हुआ
जरूर कुछ तो
कहीं से पीकर
के आता है
नशे में होना
फिर नशे की
बात पर कुछ
हिलते डुलते
हुऎ लिखना
नहीं पीने वाले
के भी समझ में
आ ही जाता है
लिखा हुआ हो
किसी का और
पढ़ते पढ़ते
पढ़ने वाले को
ही पड़ जाये
हिलना और डुलना
ऎसा तो कहीं भी
नहीं देखा जाता है
बिना पिये भी कोई
शराबी सा कभी
लिख ले जाता है
इसका मतलब
ये नहीं कि उसको
पीना भी आता है
लिखने वाला
लिख रहा है
क्या ये कम नहीं
चारों तरफ उसके
सब कुछ जब
शराबी शराबी
सा हो जाता है
ना बोतल नजर
आती है कहीं
ना कोई गिलास
नजर आता है
शराब भी नहीं
होती है कहीं पर
कुछ माहौल ही
शराबी हो जाता है
होश में रहने वाले
माने जाते हैं
जहाँ के सब लोग
वहाँ के हर आदमी
का हर काम
लड़खड़ाता हुआ
नजर आता है
ऎसे में लिखा
जा रहा है कुछ
लड़खड़ाता हुआ
ही मान लो सही
संभालने के लिये
तू ही थोड़ा सा
आगे क्यों नहीं
खुद आ जाता है ।