घर को सुन्दर
बनाना भी
जरूरी है
घर की खिड़कियों
के शीशों को
चमकाना भी
जरूरी है
बाहर का खोल
ना खोल दे
कहीं पोल
तेज धूप और
बारिश के पानी
से बचाना भी
जरूरी है
बढ़िया कम्पनी
का महँगा पेंट
चढ़ाना भी
जरूरी है
रोशनी तेज रहे
बाहर की
दीवारों पर
देख ना पाये
कोई नाम
किसी का
इश्तहारों पर
आँखों को
थोड़ा सा
चौधियाँना
भी जरूरी है
शीशों के बाहर
से ही लौट लें
प्रश्न सभी के
अंदर के दृश्यों को
पर्दों के पीछे
छिपाना भी
जरूरी है
बुराई पर
अच्छाई की
जीत दिखानी
भी जरूरी है
अच्छाई को बुराई
के साथ मिल बैठ
कर समझौता
कराना भी जरूरी है
रावण का
खानदान है
अभी भी
कूटने पीटने
के लिये भगवान
राम का आना
और जाना
दिखाना भी
जरूरी है
फिर कोई नाराज
हो जायेगा और
कहेगा कह रहा है
क्या किया जाये
आदत से मजबूर है
नकारात्मक सोच
की नालियों में
पल रहा ‘उलूक’ भी
उसे भी मालूम है
घर के अंदर चड्डी
चल जाती है
बाहर तो गांंधी कुर्ते
और टोपी में आना
भी जरूरी है
नहीं कहना चाहिये
होता कुछ नहीं है
पता होता है
फिर भी उनकी
सकारात्मक
झूठ की आंंधियों
में उड़ जाना
भी जरूरी है ।
चित्र साभार: http://www.beautiful-vegan.com
बनाना भी
जरूरी है
घर की खिड़कियों
के शीशों को
चमकाना भी
जरूरी है
बाहर का खोल
ना खोल दे
कहीं पोल
तेज धूप और
बारिश के पानी
से बचाना भी
जरूरी है
बढ़िया कम्पनी
का महँगा पेंट
चढ़ाना भी
जरूरी है
रोशनी तेज रहे
बाहर की
दीवारों पर
देख ना पाये
कोई नाम
किसी का
इश्तहारों पर
आँखों को
थोड़ा सा
चौधियाँना
भी जरूरी है
शीशों के बाहर
से ही लौट लें
प्रश्न सभी के
अंदर के दृश्यों को
पर्दों के पीछे
छिपाना भी
जरूरी है
बुराई पर
अच्छाई की
जीत दिखानी
भी जरूरी है
अच्छाई को बुराई
के साथ मिल बैठ
कर समझौता
कराना भी जरूरी है
रावण का
खानदान है
अभी भी
कूटने पीटने
के लिये भगवान
राम का आना
और जाना
दिखाना भी
जरूरी है
फिर कोई नाराज
हो जायेगा और
कहेगा कह रहा है
क्या किया जाये
आदत से मजबूर है
नकारात्मक सोच
की नालियों में
पल रहा ‘उलूक’ भी
उसे भी मालूम है
घर के अंदर चड्डी
चल जाती है
बाहर तो गांंधी कुर्ते
और टोपी में आना
भी जरूरी है
नहीं कहना चाहिये
होता कुछ नहीं है
पता होता है
फिर भी उनकी
सकारात्मक
झूठ की आंंधियों
में उड़ जाना
भी जरूरी है ।
चित्र साभार: http://www.beautiful-vegan.com
अच्छी सच्ची बात !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (05-10-2014) को "प्रतिबिंब रूठता है” : चर्चा मंच:1757 पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत अच्छी प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंआभार !
जवाब देंहटाएंपर लोग गंदे सच को देखने ,कहने और सुनने से बचते-फिरते हैं -उसका क्या ?
बहुत खुबसुरत .......आपकी हर पोस्ट पढना भी जरूरी है पर ब्लॉग को खोलने की सही जानकारी अभी अधूरी है ...हमारी :)
जवाब देंहटाएंशायद सीख गये है अब थोडा थोडा
Bahut sahi likha hai aapne .....ekdum zabardast !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएं