उलूक टाइम्स: समझदारी समझने में ही होती है अच्छा है समय पर समझ लिया जाये

शुक्रवार, 15 मई 2015

समझदारी समझने में ही होती है अच्छा है समय पर समझ लिया जाये



छलकने तक आ जाये कभी कोई बात नहीं
आने दिया जाये
छलके नहीं जरा सा भी बस इतना ध्यान दिया जाये
होता है और कई बार होता है
अपने हाथ में ही नहीं होता है
निकल पड़ते हैं चल पड़ते हैं
महसूस होने होने तक भर देते हैं
जैसे थोड़े से में गागर से लेकर सागर
रोक दिया जाये 
बेशकीमती होते हैं
बूँद बूँद सहेज लिया जाये
इससे पहले कोशिश करें
गिर जायें मिल जायें
धूल में मिट्टी में लौटा लिया जाये
समझ में आती नहीं कुछ धारायें
मिलकर बनाती भी नहीं
नदियाँ कहीं  ऐसी कि सागर में जाकर ही मिल जायें ।


चित्र साभार: www.clipartpanda.com

15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर शब्दो से आसु को कविता मे छिपा दिया है ।

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  2. छलकने तक
    आ जायें कभी
    कोई बात नहीं
    आने दिया जाये
    छलकें नहीं ,
    जरा सा भी
    बस इतना
    ध्यान दिया जाये
    बहुत सुंदर आदरणीय।

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  3. वाह जोशी जी...आपका ब्लॉग अलग ही ऊर्जावर्धक है एक अच्छी कृति

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    1. हर्ष जी आप जैसे पाठक टिप्पणीकार ही एक ब्लागर के उर्जा के श्रोत होते हैं । आभार ।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-05-2015) को "धूप छाँव का मेल जिन्दगी" {चर्चा अंक - 1978} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
    ---------------

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  5. khubsurat shabdon me aapne bund-bund ko paribhashit kiya.....

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  6. भाई साब क्या कमाल की पंक्तियाँ हैं। से लगा जैसे किसी ने मेरे अंदर की बेचैनी को शब्दों में बाँध दिया हो। ये जो "गागर से लेकर सागर" तक की बात है न, बस वही तो हमारी जिंदगी है, थोड़ा-थोड़ा करके सब कुछ भरते रहते हैं, और पता भी नहीं चलता कब छलक पड़ते हैं। सच्चाई ये है की हम सब अपनी-अपनी दिशा में बहते रहते हैं, कभी-कभी बिना ये जाने कि हमारी मंज़िल कौन सी है।

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