किससे कहें क्या कहें
यहाँ तो कुछ भी समझ में ही नहीं आता है
ढूंढना शुरू करते हैं
जहां कोई भी अपना जैसा नजर नहीं आता है
सोच में तेरी ही कुछ खोट है ऐसा कुछ लगता है
सबका तुझे टेढ़ा देखना बताता है
सामने वाला हर एक सोचता है अपनी सोच
तुझे छोड़ हर कोई तालियाँ बजाता है
मतदान करने की बातें सब ने की बहुत की
वोट देने की शपथ लेना दिखाता है
लोग घर से ही नहीं निकले जुखाम हो गया था
ऐसे में वोट देने कौन जाता है
परिवार के लोग ही नहीं दिखे
व्यस्त होंगे प्रचार में कहीं
अपना क्या जाता है
मतदान करवाने वालों की मजबूरी थी
कहना ही था ये भी आता है वो भी आता है
खबर मेरी थी मैंने बुलाये थे मीडिया वाले
चाय नाश्ता कराने में क्या जाता है
छपा बहुत कुछ था घर की फोटो के साथ था
बस मैं ही नहीं था तो क्या हो जाता है
खबर देते हैं
जाने माने खबरची दुनिया जहां की
अपने घर में बैठ कर समझ में आता है
वाह रे ‘उलूक’
तेरे घर तेरे शहर में हो रहे को तू देखता है
और अपना मुंह छुपाता है
शाबाश है खबरचियों की ओर से
खबरची की खबर पर
वाह कह के मगर जरूर आता है
चित्र साभार: https://www.istockphoto.com/
यहाँ तो कुछ भी समझ में ही नहीं आता है
ढूंढना शुरू करते हैं
जहां कोई भी अपना जैसा नजर नहीं आता है
सोच में तेरी ही कुछ खोट है ऐसा कुछ लगता है
सबका तुझे टेढ़ा देखना बताता है
सामने वाला हर एक सोचता है अपनी सोच
तुझे छोड़ हर कोई तालियाँ बजाता है
मतदान करने की बातें सब ने की बहुत की
वोट देने की शपथ लेना दिखाता है
लोग घर से ही नहीं निकले जुखाम हो गया था
ऐसे में वोट देने कौन जाता है
परिवार के लोग ही नहीं दिखे
व्यस्त होंगे प्रचार में कहीं
अपना क्या जाता है
मतदान करवाने वालों की मजबूरी थी
कहना ही था ये भी आता है वो भी आता है
खबर मेरी थी मैंने बुलाये थे मीडिया वाले
चाय नाश्ता कराने में क्या जाता है
छपा बहुत कुछ था घर की फोटो के साथ था
बस मैं ही नहीं था तो क्या हो जाता है
खबर देते हैं
जाने माने खबरची दुनिया जहां की
अपने घर में बैठ कर समझ में आता है
वाह रे ‘उलूक’
तेरे घर तेरे शहर में हो रहे को तू देखता है
और अपना मुंह छुपाता है
शाबाश है खबरचियों की ओर से
खबरची की खबर पर
वाह कह के मगर जरूर आता है
चित्र साभार: https://www.istockphoto.com/
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 22 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंवाह आज के दौर की सच्चाई उकेर दी आपने। बहुत बढ़िया👌
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, लाजवाब
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब !! लाजवाब सृजन !
जवाब देंहटाएंबातें ही बातें है असली मुद्दा हर बार छूट जाता है
जवाब देंहटाएंवोट देते नहीं, पर बाज नहीं आते शिकायत करने से
क्यों नहीं सही वक्त पर सही नेता चुना जाता है
वर्तमान की यथार्थ का सुंदर चित्रण।
जवाब देंहटाएंतेरे घर तेरे शहर में हो रहे को तू देखता है
जवाब देंहटाएंऔर अपना मुंह छुपाता है
-जान बचाने की मजबूरी है : वरना कोतवाल बुलाता है...