उलूक टाइम्स

सोमवार, 18 जनवरी 2010

मन प्रदूषण

मेरे मन
के
ग्लेशियर
से

निकलने
वाली गंगा

तेरे प्रदूषण
को
घटते बढ़ते

हर पल
हर क्षण
महसूस किया
है मैंने

भोगा है
तेरे गंगाजल
के
काले भूरे
होते हुवे 
रंग को

विकराल 
होते हुवे 

तेरी शांत 
लहरों को

बदलते हुवे
सड़ांध में

तेरी
भीनी भीनी
खुश्बू को

और ऎसे
में अब

मेरी 
सांस्कृ्तिक
धरोहर

मैं खुद
ही चाहूंगा

ये
ग्लेशियर
खुद बा खुद
सूख जाये

ताकि मेरे
मन से 
बहने वाली
पवित्र गंगे

तू मैली
ना कहलाये ।