फिर से फिसल गया एक महिना ही तो था
खुशफहमी क्या बुरी है अपने ही हाथ में तो था
हाथ अपना ही तो था
कितना कुछ पकड़ कर रखा था
वहम ही सही सारा अपने पास में तो था
कितना कुछ पकड़ कर रखा था
वहम ही सही सारा अपने पास में तो था
अभी कौन सा कहां कुछ फिसलना था
बारिश उस पहाड़ में थी
और दूर समुंदर ही तो उफान में था
बारिश उस पहाड़ में थी
और दूर समुंदर ही तो उफान में था
आंखें कमजोर नहीं हुई थी
देखने का जुनून ही तो खत्म हुआ था
सपना तो अपनी ही उड़ान में था
देखने का जुनून ही तो खत्म हुआ था
सपना तो अपनी ही उड़ान में था
शर्म तब भी कौन सा आती थी
जब सुनाई देता था
उजड़ गया अपना नहीं उसका ही मकान तो था
जब सुनाई देता था
उजड़ गया अपना नहीं उसका ही मकान तो था
शहर उजड़ रहे हैं कोई और सुन रहा था
अच्छा हुआ सुनाई नहीं देता बंद है अपना ही कान तो था
अच्छा हुआ सुनाई नहीं देता बंद है अपना ही कान तो था
बहुत कह दिया अब तक
जुबान से निकला था तीर जो भी निकला था
कौन सा कुछ किसी की दुकान से था
जुबान से निकला था तीर जो भी निकला था
कौन सा कुछ किसी की दुकान से था
जुबान भी अब नहीं फिसलती
ना ही कहने को कुछ मचलती
मनचला था
कौन यहां कुरुक्षेत्र के मैदान से था
ना ही कहने को कुछ मचलती
मनचला था
कौन यहां कुरुक्षेत्र के मैदान से था
अभी और फिसलना था
बहुत कुछ बिना चबाए निगलना था
सभी कुछ किसी गांधी के एक बंदर की
नजदीकी पहचान से तो था
बहुत कुछ बिना चबाए निगलना था
सभी कुछ किसी गांधी के एक बंदर की
नजदीकी पहचान से तो था
‘उलूक’ फिर फिर पलट कर के आएंगे
गलतफहमी के दौरे तुझे भी
पता है वो भी जानता है
सब कुछ इसी हमाम से तो था
गलतफहमी के दौरे तुझे भी
पता है वो भी जानता है
सब कुछ इसी हमाम से तो था
चित्र साभार: https://depositphotos.com/