उलूक टाइम्स: खड़ा था खड़ा ही रह पड़ा

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

खड़ा था खड़ा ही रह पड़ा

पत्रकार मित्र ने
पढ़ा जब लिखा
हुआ अखबार में
छपा बड़ा बड़ा
समीक्षा करते हुऐ
कहा जैसा सभी
कह देते हैं अच्छा
बहुत अच्छा है लिखा
और एक बुद्धिजीवी
इससे ज्यादा कभी
कर भी नहीं है सका
कभी कुछ लिख
देने के सिवा
उसके पास नहीं
होता है एक उस्तरा
ना होता है हिम्मत से
लबालब कोई घड़ा
बहुत कायर होता है
लिख लिख कर
करता है साफ
अपने दिमाग से
बेकाम का देखा भोगा
घर का अड़ोस का
या पड़ौस का
हर रगड़ा झगड़ा
परजीवी तो नहीं
कहा जा सकता
पर करने में
लगा रहा हमेशा
कुछ इसी तरह का
खून छोड़िये लाल रंग
को देख कर होता है
कई बार भाग खड़ा
क्रांंति लाया हो कभी
अपने विचारों से
इतिहास में कहीं भी
ऐसा नहीं है देखा गया
मजदूरों ने जब भी
किया कहीं भी कोई
किला इंकलाब का खड़ा
हाँ वहाँ पर जा कर
हमेशा एक बुद्धिजीवी
ही है देखा गया
झंडा फहराता हुआ
एक बहुत बड़ा
पढ़ने वालों से
बहुत है पाला पड़ा
पर ऐ बेबाक मित्र
सलाम है तुझे
तूने मेरे मुँह पर ही
साफ साफ मेरा सच
कड़वा ही सही कहा
कुछ कहते हुऐ
ही नहीं बन पड़ा ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. सलाम है तुझे
    तूने मेरे मुँह पर ही
    साफ साफ मेरा सच
    कड़वा ही सही कहा
    कुछ कहते हुऐ
    ही नहीं बन पड़ा ।
    यह बोध ही बहुत है... वर्ना कितने इस छोटी सी बात के गहरे अर्थ समझ पाते हैं!!

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  2. आपकी इस प्रस्तुति को आज की आज कि बुलेटिन - क्या हिन्दी ब्लॉगजगत में पाठकों की कमी है ? में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. ऐसी स्वीकारोक्ति वास्तव में हिम्मत का काम है , एक सशक्त रचना के लिए बधाई!

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  4. कल 13/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  5. कल 13/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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