उलूक टाइम्स: टखना
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रविवार, 19 अगस्त 2012

खबर

बहुत से समाचार
लाता है रोज
सुबह का अखबार
कहाँ हुई कोई घटना
किस का टूटा टखना
मरने मारने की बात
लैला मजनूँ की बारात
कौन किसके साथ भागा
कहाँ पड़ गया है डाका
ज्यादातर खबर होती हैं
देखी हुई होती हैं
और पक्की होती हैं
सौ में पिचानवे
सच ही होती हैं
इन सब में से
मजेदार होती है
वो खबर जो कहीं
तैयार होती है
रात ही रात में बिना
कोई बीज को बोये
सुबह को एक ताड़
का पेड़ होती हैं
इस के लिये पड़ता है
किसी को कुछ
कुछ खुद बताना
चार तरह के लोगों से
चार कोनों में शहर के
एक जोर का ऎसा
भोंपू बजवाना
जिसकी आवाज का हो
किसी को भी सुनाई
में ना आना
जोर का हुआ था शोर
ये बात बस अखबार से ही
पता किसी को चल पाना
या कुछ बंदरों को जैसे
केलों के पेडो़ के
सपने आ जाना
बंदरों के सपनो की बातें
सियारों के सोर्स से
पता चल जाना
इसी बात को
गायों का भी
रम्भा रम्भा
कर सुनाना
पर अलग अलग
अखबार में
केलों के साईज का
अलग अलग हो जाना
बता देती है खबर किस
खेत में उगाई गयी है
मूली के बीच को बोकर
गन्ना बनाई गयी है
पर मूली गन्ने
और बंदर के केले को
किसी को भी
कहाँ खाना होता है
पता ये चल जाता है
कि किस पैंतरेबाज को
खबर पढ़ने वालों को
उल्लू बनाना होता है
बेखबर होते हैं ज्यादातर
खबर पढ़ने वाले भी
उनको कुछ समझ में
कहाँ आना होता है
पेंतरेबाजों को तो अपना
उल्लू कैसे भी सीधा
करवाना ही होता है ।