सोमवार, 21 अगस्त 2023
कुछ तो सुन संजीदा ऐ डफर
मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021
घर के कुत्ते ने शहर के कुत्ते के ऊपर भौंक कर आज अखबार के पन्ने पर जगह पाई है बधाई है ‘उलूक’ बधाई है
अखबार में
फोटो आई है
सारा घर मगन है
मालिक
कभी दिखाया नहीं जाता है
घर के कुत्ते ने बहुत धूम मचाई है
घर में
भौंकता नहीं है कभी
कटखन्ने होने की मिठाई है
किसी को
कभी काटा नहीं
किसी को कभी भौंका नहीं
अपने को बचाने की कीमत मिली है
या
किसी ने कीमत चुकाई है
बजट
अभी अभी निकला है
जनता समझ नहीं पायी है
कुत्ते कुत्ते
पट्टे पट्टे
खबर किस ने पहुंचाई है
खबर
मगर लाजवाब आई है
मालिक की
खबर की जगह
एक कुत्ते की खबर
हमेशा पव्वे के सहारे
अद्धे ने पहुंचाई है
कुत्ता
घूमता रहता है शहर शहर
मालिक की आज बन आई है
कुत्ते ने
अखबार में जगह पा कर
मालिक को दी बधाई है
जय जय कार है अखबार की
गजब की खबर एक आज बना के दिखाई है
कुत्ते को पता नहीं है कुछ भी
उसने आज भी उसी तरह अपनी पूंछ हिलाई है
मालिक सोच में पड़ा है
उसकी खबर किसने क्यों और कैसे उड़वाई है
‘उलूक’
कुत्ते पाला कर
शहर में भी भेजा कर
अखबारों की जरूरत आज बदल कर
नई सोच उभर कर आई है
अच्छा करना
ठीक नहीं
कुत्ते ने कुत्ते के ऊपर भौंक कर
आज अखबार के पन्ने पर जगह पाई है ।
बुधवार, 30 सितंबर 2020
लिखने की बीमारी है इलाज नहीं है चल रही महामारी है है तो मुमकिन है है कहीं किसी लौज में है
डर है बस कहीं है खबर में है
वीर हैं बहुत सारे हैं सब फौज में हैं
छुपा है घर में और सब की खोज में है
कांटे खुद की सोज में हैं
बात है जो है बस रोज (गुलाब) में है
बात बस खाली हवा में रखनी है
सच है कहीं है किसी हौज में है
तन्खवाह लेकिन
हर पहली तारीख को
खाते में आना बहुत जरूरी है
पर्ची है
चिकित्सक है
बिना बिमारी मरी महामारी है
मुर्दे हैं सारे भोज में हैं
हर आदमी
कहां है पूछता फिर रहा है
उसकी मजबूरी है
सोच है नोज (नाक) में है
‘उलूक’ का
उसकी बीमारी है
इलाज है नहीं
चिकित्सक की कमजोरी है
सारे हैं
सैल्फी की पोज में हैं ।
चित्र साभार: https://www.aegonlif
बुधवार, 16 सितंबर 2020
लाशें जिंदा रहना बहुत जरूरी हैं मरे हुऐ लोगों के जिन्दा समाचारों लिये हमेशा
एक पुड़िया सफेद पाउडर मिला है
उस
जगह पर जहाँ चॉक ही चॉक
पायी जाती रही है हमेशा से डिब्बा बन्द
अलग बात है
कहीं जरा
सा भी नहीं घिसी रखी है इतिहास बनाने के लिये भी
हम सब
उसी को घिसने की रोटियां तोड़ते
रहें हैं सालो साल
और कुछ
इसी की सफेदी को बिना छुवे हो लिये हैं बेमिसाल
खरीदे हैं
जिन्होंने कई सम्मान अपने नाम से
अखबार साक्षी रहे हैं
अपनी नाकामियां लिखना आसान नहीं
है
अखबार वाले के किये गये प्रश्न के उत्तर दिये गये हैं
किस तरह तराशे हुऐ निकलें
कल सुबह
तक कुछ कहना ठीक नहीं है
और वैसे भी जो छपा आ जाता है
उसके बाद कहाँ कुछ किया जाता है
बहुत
कुछ होता है आसपास कुछ अजीब सा हमेशा ही
अब हर बात कहाँ किसी अखबार तक पहुँचती है
और जो पहुँचाई जाती है कुछ दस्तखतों के साथ
उसकी तसदीक करने कभी कोई आता भी नहीं है
हमाम
के अन्दर के कपड़े के बारे में पूछे गये प्रश्न
नाजायज हैं कह कर
खुद अपनी तस्वीर अपने
ही आइने की
किसी को भी दिखा लेने की
आदत कभी बनी भी नहीं है
‘उलूक’
चिड़िया कपड़े ना पहना करती है
ना उसे आदत होती है बात करने की नंगई की
उसकी
जरूरत भी नहीं होती है
हम सब कर लेते हैं खास कर बातें कपड़ों की
और ढकी हुई उन सारी
लाशों की
जिनकी खुश्बू पर कोई प्रश्न नहीं उठता है
आज के समाज में
लाशें जिंदा रहना
बहुत जरूरी हैं
मरे हुऐ लोगों के जिन्दा समाचारों के लिये हमेशा ।
चित्र साभार: https://twitter.com/aajtak
शनिवार, 7 दिसंबर 2019
खुदने दो कब्र चारों तरफ अपने दूर देश की खबर में मरे को जिंदा कर देने का बहुत कुछ छुपा होता है
आवारा
हैं नहीं
और
हाथ में है
आने जाने
कि
यहाँ से वहाँ
बहुत दूर तक
नहीं आती है
‘उलूक’
पूरी जिंदगी
शनिवार, 31 अगस्त 2019
ठीक नहीं ‘उलूक’ थोड़ा सा समझने के लिये इतने सारे साल लगाना
अब हर कोई एक खुली हुयी किताब है
हर पन्ना जिसका
झक्क है सफेद है और साफ है
सभी लिखते हैं
आज कुछ ना कुछ
बहुत बड़ी बात है
कलम और कागज ही नहीं रहे बस
बाकी सब इफरात है
कोई नहीं लिखता है कहीं
किसी भी अन्दर की बात को
ढूँढने निकलता है
एक सूरज को मगर
वो भी किसी रात को
सोचता है साथ में
सब दिन दोपहर में
कभी आ कर उसे पढ़ें
कुछ वाह करें
कुछ लाजवाब
कुछ टिप्पणी
कुछ स्वर्णिम गढ़ें
समझ में
सब के सब कुछ
बहुत अच्छी तरह से आता है
जितने से
जिसका काम चलता है
उतना समझ गया होता है
उसे
ढोल नगाड़े साथ ला कर
खुल कर
जरूर बताता है
जहाँ फंसती है जान
होता है
बहुत बड़ी जनसंख्या से जुड़ा
कोई उनवान
शरमाना दिखा कर
अपने ही किसी डर के खोल में
घुस जाता है
किस अखबार को
कौन कितना पढ़ता है
सारे आँकड़े
सामने आ जाते हैं
किस अखबार में
कैसे अपनी खबर कोई
हर हफ्ते छपवा ले जाता है
कैसे हो रहा है होता है
ऐसा कोई
पूछने ही नहीं जाता है
कोई
नजर नहीं आता है का मतलब
नहीं होता है
कि
समझ में नहीं आता है
बस
एक राय
रविवार, 24 फ़रवरी 2019
हुवा हुवा का शोर हुवा कहीं हुवा कुछ जैसे और बड़ा जबरजोर हुवा
हुवा हुवा
का शोर हुवा
इधर से
गजब का
जोर हुवा
उधर से
जबरजोर हुवा
हुवा हुवा
सुनते ही
मिलने लगी
आवाजें
हुवा हुवा की
हुवा हुवा में
हुवा हुवा से
माहौल
सारा जैसे
सराबोर हुवा
चुटकुला एक
एक
बार फिर
अखबार में
खबर
का घूँघट ओढ़
दिखा आज
छपा हुवा
खबरों
को उसके
अगल बगल की
पता ही
नहीं चला
कब हुवा
कैसे हुवा
और
क्या हुवा
पानी
नदी का
बहने लगा
खुद ही
नहा धोकर
सब कुछ
सारा
आस पास
ऊपर नीचे का
पवित्र हुवा
पावन हुवा
पापों
के कर्ज में
डूबों का
सब कुछ
सारा माफ हुवा
ना
बम फटे
ना
गोली चली
ना
युद्ध हुवा
बस
चुटकुला
खबर
बन कर
एक बार
और
शहीद हुवा
इन्साफ हुवा
जंगल उगे
कागज में
मौसम भी
कुछ
साफ हुवा
हवा
चली
जोर की
फोटो में
बादल उतरा
पानी
बरसा
रिमझिम
रिमझिम
गिरते गिरते
भाप हुवा
पकाने
परोसने
खिलाने
वाले
शुरु हुऐ
समझाना
ऐसा हुवा
हुवा
जो भी
सदियों
बाद हुवा
‘उलूक’
पूछना
नहीं हुवा
कुछ भी बस
करते
रहना हुवा
हुवा हुवा
हो गया
हो गया
सच्ची
मुच्ची में
है हुवा हुवा ।
चित्र साभार: https://www.123rf.com
बुधवार, 30 जनवरी 2019
जरूरत नहीं है समझने की बहुत लम्बे समय से इकट्ठा किये कूड़े की उल्टी आज आ ही जा रही है
कई
दिन हो गये
जमा करते करते
कूड़ा
फैलाने की
हिम्मत ही नहीं
आ पा रही है
दो हजार
उन्नीस में
सुना गया है
चिट्ठाकारी
पर कोई
ईनाम
लेने के लिये
लाईन लगाइये
की मुनादी
करवायी
जा रही है
कई दिन से
ख्वाब में
मक्खियाँ ही
मक्खियाँ
नजर आ रही हैं
गिनना शुरु
करते ही
पता
चल रहा है
कुछ मकड़ी
हो चुकी हैं
खबरची
की खबर
बता रही है
मक्खियाँ
मकड़ी होते ही
मेज की
दूसरी ओर
चली जा रही हैं
साक्षात्कार
कर रही हैं
सकारात्मकता
के पाठ
कैसे
पढ़ाये जायेंगे
समझा रही हैं
मक्खियों
का राजा
मदमस्त है
लग रहा है
बिना अफीम
चाटे ही
गहरी नींद
आ रही है
खून
चूसने में
मजा नहीं है
खून
सुखाने के
तरीके
सिखा रही हैं
मकड़ियाँ
हो चुकी
मक्खियों के
गिरोह के
मान्यता प्राप्त
होने का सबूत
खबरचियों
की टीम
जुटा रही है
मकड़ी
नहीं हो सकी
मक्खियाँ
बुद्धिजीवियों
में अब
गिनी
जा रही हैं
इसलिये
उनके
कहने सुनने
लिखने पढ़ने
की बात
की बात
करने की
जरूरत ही
नहीं समझी
जा रही है
अखबार में
बस
मकड़ियों
की खबर
उनके
सरदार
के इशारों
से ही
छापी
जा रही है
गिरोह
की बैठकों
में तेजी
आती हुयी
नजर आ रही है
फिर किसी
बड़ी लूट की
लम्बी योजना पर
मुहर लगवाने के लिये
प्रस्ताव की
कापियाँ
सरकार
के पास
भेजी
जा रही हैं
अंग्रेजों के
तोड़ो और
राज करो
के सिद्धांत का
नया उदाहरण
पेश करने
की तैयारी है
एक
पुरानी दुकान की
दो दुकान बना कर
दो दुकानदारों
के लिये दो कुर्सी
पेश करने की
ये मारामारी है
गिरोह
की खबरें
छापने के लिये
क्या
मिल रहा है
खबरची को
खबर
नहीं बता रही है
हो सकता है
लम्बी लूट
की योजना में
उनको भी
कहा गया हो
उनकी भी
कुछ भागीदारी है
थाना कोतवाली
एफ आई आर
होने का
कोई डर हो
ऐसी बात
के लिये
कोई जगह
छोड़ी गयी हो
नजर
नहीं आ रही है
गिरोह
के मन मुताबिक
लुटने के लिये तैयार
प्रवेश
लेने वाले
अभ्यर्थियों की
हर साल
एक लम्बी लाईन
खुद ही
खुदकुशी
करने के लिये
जब
आ ही जा रही है
‘उलूक’
तू लिख
‘उलूक’
तू मत लिख
कुछ अलग
नहीं होना है
किसी भी जगह
इस देश में
सब वही है
सबकी
सोच वही है
तेरी खुजली
तुझे ही
खुजलानी है
इतनी सी अक्ल
तुझे पता नहीं
क्यों नहीं
आ पा रही है ।
चित्र साभार: https://www.canstockphoto.com
गुरुवार, 17 जनवरी 2019
सेब को अनार है कह देने वालों की भर्ती गिरोह का सरदार करवा रहा है
पर्दे के
पीछे से
जल्दी ही
कुछ उल्टा
करने
जा रहा है
सामने से
हो रही
अच्छी
सीधी
बातों से
समझ
आ रहा है
अखबार
सरदार की
भेजी खबर को
सजा कर
दिखा रहा है
जरूरत मंदों
के लिये
संवेदना
देख कर
सब गीला
हो जा रहा है
शहर में
कुछ नया
अजूबा होने
के आसार
मौसम विभाग
सुना रहा है
आंकड़े
बगल के देश
के मेलों में बिके
गधों के
ला ला कर
दिखा रहा है
जमीने
किस की
खरीदी हुई हैं
किस के
हैं मकान
मैदान के
शहर में
जायजा
लिया
जा रहा है
पहाड़
से उतार
मैदान में
राजा के
दरबार को
ले जाने का
आदेश
जल्दी ही
आने जा रहा है
पहाड़ों
को वीरान
करने की
एक नयी
कोशिश है
किसी
को बहुत
मजा
आ रहा है
गिरोह
पढ़ा रहा है
सेब को
अनार
कहलवाना किसी को
कोई
‘उलूक’ को
अनार है
अनार है
कह कर
एक सेब
रोज
दिखा रहा है ।
चित्र साभार: www.kisspng.com
शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018
दिसम्बर ने दौड़ना शुरु कर दिया तेजी से बस जल्दी ही साल की बरसी मनायी जायेगी
गुरुवार, 22 नवंबर 2018
पता ही नहीं चलता है कि बिकवा कोई और रहा है कुछ अपना और गालियाँ मैं खा रहा हूँ
लिखते होंगे
शेर
सुनते होंगे
शेर
समझते भी होंगे
शेर हैं
कहने नहीं
जा रहा हूँ
एक शेर
जंगल का देख कर
लिख देने से शेर
नहीं बन जाते हैं
कुछ
लम्बी शहरी
छिपकलियाँ हैं
जो आज
लिखने जा रहा हूँ
भ्रम रहता है
कई सालों
तक रहता है
कि अपनी
दुकान का
एक विज्ञापन
खुद ही
बन कर
आ रहा हूँ
लोग
मुस्कुराहट
के साथ मिलते हैं
बताते भी नहीं है
कि खुद की नहीं
किसी और की
दुकान चला रहा हूँ
दुकानें
चल रही हैं
एक नहीं हैं
कई हैं
मिल कर
चलाते हैं लोग
मैं बस अपना
अनुभव बता रहा हूँ
किस के लिये बेचा
क्या बेच दिया
किसको बेच दिया
कितना बेच दिया
हिसाब नहीं
लगा पा रहा हूँ
जब से
समझ में आनी
शुरु हुई है दुकान
कोशिश
कर रहा हूँ
बाजार बहुत
कम जा रहा हूँ
जिसकी दुकान
चलाने के नाम
पर बदनाम था
उसकी बेरुखी
इधर
बढ़ गयी है बहुत
कुछ कुछ
समझ पा रहा हूँ
पुरानी
एक दुकान के
नये दुकानदारों
के चुने जाने का
एक नया
समाचार
पढ़ कर
अखबार में
अभी अभी
आ रहा हूँ
कोई कहीं था
कोई कहीं था
सुबह के
अखबार में
उनके साथ साथ
किसी हमाम में
होने की
खबर मिली है
वो सुना रहा हूँ
कितनी
देर में देता
है अक्ल खुदा भी
खुदा भगवान है
या भगवान खुदा है
सिक्का उछालने
के लिये जा रहा हूँ
‘उलूक’
देर से आयी
दुरुस्त आयी
आयी तो सही
मत कह देना
अभी से कि
कब्र में
लटके हुऐ
पावों की
बिवाइयों को
सहला रहा हूँ ।
चित्र साभार: https://www.gograph.com
सोमवार, 23 जुलाई 2018
अपना वित्त है अपना पोषण है ‘उलूक’ तेरी खुजली खुद में किया तेरा अपना ही रोपण है
पहले से
पता था
कुछ नया
नहीं होना था
खाली टूटी
मेज कुर्सियाँ
सरकार की
दुकान में
सरकारी
हिसाब किताब
जैसा ही
कुछ होना था
सरकारी
दुकान थी
सरकार के
दुकानदार थे
सरकारी
सामान था
किसी के
अपने घर का
कौन सा
नुकसान
होना था
दुकानदार
को भी
आदेशानुसार
कुछ देर
घड़ियाली
ही तो रोना था
दुकान
फिर से
खुलने की
खुशखबरी
आनी थी
दो दिन बस
बंद कर रहे हैं
की खबर
फैलानी थी
दुकान
बंद हो रही है
दुकानदारों की
फैलायी खबर थी
अखबार वाले
भी आये थे
अच्छी पकी
पकायी खबर थी
दस्तखत की
जरूरत नहीं थी
दुकान वालों
की लगायी
दुकान की
ही मोहर थी
सरकारी
दुकान के अन्दर
खोली गयी
व्यक्तिगत
अपनी अपनी
दुकान थी
बन्द होने की
खबर छपने से
दुकानदारों की
निकल रही जान थी
तनखा
सरकारी थी
काम सरकारी था
समय सरकारी
के बीच कुछ
अपना निकाल
ले जाने की
मारामारी थी
‘उलूक’
देख रहा था
उल्लू का पट्ठा
उसे भी देखने
और देखने
के बाद लिखने
की बीमारी थी
बधाई थी
मिठाई थी
शरीफों की
बाँछे फिर से
खिल आयी थी
दुकान की
ऐसी की तैसी
पीछे के
दरवाजों में
बहुत जान थी ।
चित्र साभार: www.gograph.com
रविवार, 15 जुलाई 2018
किसी किसी आदमी की सोच में हमेशा ही एक हथौढ़ा होता है
जोड़ कर
चार ही तो
पढ़ा रहा है
किसलिये रोता है
दो में एक
इस बरस
जोड़ा है उसने
एक अगले बरस
कभी जोड़ देगा
दो और दो
चार ही सुना है
ऐसे भी होता है
एक समझाता है
और चार जब
समझ लेते हैं
किसलिये
इस समझने के
खेल में खोता है
अखबार की
खबर पढ़ लिया कर
सुबह के अखबार में
अखबार वाले
का भी जोड़ा हुआ
हिसाब में जोड़ होता है
पेड़
गिनने की कहानी
सुना रहा है कोई
ध्यान से सुना कर
बीज बोने के लिये
नहीं कहता है
पेड़ भी
उसके होते हैं
खेत भी
उसके ही होते हैं
हर साल
इस महीने
यहाँ पर यही
गिनने का
तमाशा होता है
एक भीड़ रंग कर
खड़ी हो रही है
एक रंग से
इस सब के बीच
किसलिये
उछलता है
खुश होता है
इंद्रधनुष
बनाने के लिये
नहीं होते हैं
कुछ रंगों के
उगने का
साल भर में
यही मौका होता है
एक नहीं है
कई हैं
खीचने वाले
दीवारों पर
अपनी अपनी
लकीरें
लकीरें खीचने
वाला ही एक
फकीर नहीं होता है
उसने
फिर से दिखानी है
अपनी वही औकात
जानता है
कुछ भी कर देने से
कभी भी यहाँ कुछ
नहीं होना होता है
मत उलझा
कर ‘उलूक’
भीड़ को
चलाने वाले
ऐसे बाजीगर से
जो मौका मिलते ही
कील ठोक देता है
अब तो समझ ले
बाजीगरी बेवकूफ
किसी किसी
आदमी की
सोच में
हमेशा ही एक
हथौढ़ा होता है ।
चित्र साभार: cliparts.co
सोमवार, 30 अप्रैल 2018
नकारात्मकता फैला कर सकारात्मकता बेचने वालों के लिये सजदे में सर झुका जा रहा था
अखबार में
बिल्लियों ने
फिर छ्पवाया
सुबह का
अखबार
रोज की तरह
आज भी
सुबह सुबह
उसी तरह से
शर्माता हुआ
जबर्दस्ती
घर के दरवाजे से
कूदता फाँदता
हुआ ही आया
खबर
शहर के कुछ
हिसाब की थी
कुछ किताब की थी
शरम लिहाज की थी
शहर के पन्ने में ही
बस दिखायी गयी थी
चूहों की पढ़ाई
को लेकर आ रही
परेशानियों की बात
बिल्लियों के
अखबार नबीस के द्वारा
बहुत शराफत के साथ
रात भर पका कर
मसाले मिर्च डाले बिना
कम नमक के साथ
बिना काँटे छुरी के
सजाई गयी थी
मुद्दा
दूध के बंटवारे
को लेकर हो रहे
फसाद का नहीं है
खबर में
समझाया गया था
बिल्लियाँ
घास खाना
शुरु कर जी रही हैं
बिल्लियों का
वक्तव्य भी
लिखवाया गया था
सफेद
चूहों को अलग
और
काले चूहों को
कुछ और अलग
बताया गया था
खबर जब
कई दिनों से
सकारात्मक सोच
बेचने वालों की
छपायी जा रही थी
पता नहीं बीच में
नकारात्मक उर्जा
को किसलिये
ला कर
फैलाया जा रहा था
बात
चूहों के
शिकार की
जब थी ही नहीं
बेकार में
दूध के बटवारे
को लेकर पता नहीं
किस बात का
हल्ला
मचवाया जा रहा था
चूहे चूहों को गिन कर
पूरी गिनती के साथ
बिल से निकल कर
रोज की तरह वापस
अपने ही बिल में
घुस जा रहे थे
दूध और
मलाई के निशान
बिल्लियों की मूँछों
में जब आने ही
नहीं दिये जा रहे थे
बिल्लियों के
साफ सुथरे धंधों को
किसलिये
इतना बदनाम
करवाया जा रहा था
ईमानदारी की
गलतफहमियाँ
पाला ‘उलूक’
बेईमानी के
लफड़े में
अपने हिस्से का
गणित लगाता हुआ
रोज की तरह
चूहे बिल्ली के
खेल की खबर
खबरची
अखबार की गंगा
और डुबकी
सोच कर
हर हर गंगे
मंत्र के जाप के
एक हजार आठ
पूरे करने का
हिसाब लगा रहा था।
चित्र साभार: www.dreamstime.com
रविवार, 21 जनवरी 2018
‘बीस साल तक आपके घर का कुछ नहीं बिगाड़ पायेगी दीमक’ : जब इस तरह के समाचार को देखते हैं
अखबार
को देखते हैं
कभी
अखबार
में छपे
समाचार
को देखते हैं
पन्ने
कई होते हैं
खबरें
कई होती हैं
पढ़ने वाले
अपने
मतलब के
छप रहे
कारोबार
को देखते हैं
सीधे चश्मे से
सीधी खबरों
पर जाती है
सीधे साधों
की नजर
केकड़े कुछ
टेढ़े होकर
अपने जैसी
सोच पर
असर डालने
वाली
टेढ़ी खबर
के टेढ़े
कलमकार
को देखते हैं
रोज ही कुछ
नया होता है
हमेशा खबरों में
आदत के मारे
कुछ पुरानी
खबरों
से बन रहे
सड़
रही खबरों
के अचार
को देखते हैं
‘हिन्दुस्तान’
लाता है
कभी कभी
कुछ
सदाबहार खबरें
कुछ
आती हैं
समझ में
कुछ
नहीं आती हैं
समझे बुझे
ऐसी खबरों
के खबरची
खबर छाप कर
जब अपनी
असरदार
सरकार को
देखते हैं
‘उलूक’
और
उसके
साथी दीमक
आसपास की
बाँबियों के
चिलम
लिये हाथ में
फूँकते
समय को
उसके धुऐं से
बन रहे छल्लों
की धार
को देखते हैं ।
चित्र साभार: दैनिक ‘हिंदुस्तान’ दिनाँक 21 जनवरी 2018
शुक्रवार, 24 नवंबर 2017
दूरबीन सोच वाले कुछ कुछ ना कुछ पा जाते हैं
'आह' से
लेकर
'आहा'
तक की
होती हैं
कोशिश
करने वाले
भवसागर
पार कर
ही जाते हैं
खबर रोज
का रोज छपे
ताजी छपे
तभी तक
ठीक है
कुछ आदत
से मजबूर
होते हैं ठंडी
भी करते हैं
फिर धूप भी
दिखाते हैं
लिखना
मजबूरी
होती है
पढ़ना नहीं
होती है
रास्ते में
लिखे संदेश
आने जाने
वालों से
ना चाहकर
भी पढ़े जाते हैं
दो चार
कहते ही हैं
'वाह'
देखकर
दीवारों पर
बने चित्रों पर
बहुत होता है
कुछ ही सही
होते तो हैं जो
सब कुछ
समझ जाते हैं
'वाह' की आरजू
होती भी है
लिखने वाले को
समझ गये हैं
या नहीं समझे हैं
भी समझ में
आ जाता है
टिप्प्णियों की भी
नब्ज होती है
लिखने
पढ़ने वाले
चिकित्सक
साहित्यकार
नाप लेते हैं
कलम से ही
अपनी एक
आला बना
ले जाते हैं
लिखे गये की
कुन्जियाँ भी
उपलब्ध होती
हैं बाजार में
पुराने लिखे
लिखाये को
बहुत से लोग
कक्षाओं में
पढ़ते पढ़ाते हैं
कवि कविता
अर्थ प्रश्न और
उत्तर बिकते हैं
बने बनाये
दुकानों में
जिसे पढ़कर
परीक्षा देकर
पास फेल होने
वाले को मिलती
हैं नौकरियाँ
बताने वालों की
मजबूरी होती है
लिखे लिखाये
की ऊँच नीच
कान में चुपचाप
बता कर
चले जाते हैं
नौकरी कविता
नहीं होती है
किताबों में
सिमटे हुऐ
लिखे हुऐ और
लिखने वाले के
इतिहास भी
नहीं होते हैं
दो चार
लिखते ही हैं
सच अपने
आस पास के
जिनके बारे में
कुछ भी नहीं
लिखने वाले
लिख रहा है
लिख दिया है
की हवा
फैलाते हैं
सच ही है
हो तो रहा है
लिखना
है करके
कुछ भी
लिख
लिया जाये
लिखे गये और
हो रहे में
कोई रिश्ता
होना तो चाहिये
चिल्ला चिल्ला
कर बताते हैं
गुड़ गुरु लोग
अपनी अपनी
बनायी गयी
शक्करों को
पीठ थपथपा कर
मंत्र सच्चाई का
पढ़ा ले जाते हैं
दुनियाँ जहाँ
‘वाह’
पर लिख रही है
अपनी मर्जी से
अपनी मर्जी
लिखते चलने वाले
बेवकूफ
‘उलूक’ की
‘आह’
पर लिखने
की आदत
ठीक नहीं है
हर समय
अपनी
और अपने
घर की बातें
गलत बात है
कभी कभी
चाँद या मंगल
की बातें भी तो
लिखी जाती हैं
घर की बात
करने वाले
अपने घर में
रह जाते हैं
दूरबीन सोच
के लोग ही
घर गली
मोहल्ले शहर
रोटी कपड़ा
मकान और
पाखाने की
सोच से बाहर
निकल पाते हैं
कुछ
कुछ ना कुछ
पा जाते हैं
कुछ
तर जाते हैं
कुछ
अमर
हो जाते हैं ।
चित्र साभार : http://www.geoverse.co.uk
रविवार, 30 अप्रैल 2017
समझदारी है लपकने में झपटने की कोशिश है बेकार की “मजबूर दिवस की शुभकामनाएं”
बेचारे
शिक्षा
अधिकारी
लेते हुऐ
रिश्वत
मात्र पन्द्रह
हजार की
खबर छपी है
एक जैसी है
फोटो के साथ है
मुख्य पृष्ठ पर है
इनके भी है
और
उनके भी है
अखबार की
चर्चा
चल रही है
जारी
रहेगी बैठक
समापन की
तारीख रखी
गयी है अगले
किसी रविवार की
खलबली मची है
गिरोहों गिरोहों
बात कहीं भी
नहीं हो रही है
किसी के भी
सरदार की
सुनने में
आ रहा है
आयी है कमी
शेयर के
दामों में
रिश्वत के
बाजार की
यही हश्र
होता है
बिना
पीएच डी
किये हुओं का
उसूलों को
अन्देखा
करते हैं
फिक्र भी
नहीं
होती है
जरा सा भी
इतने
फैले हुऐ
कारोबार की
अक्ल
के साथ
करते हैं
व्यापार
समझदार
उठाईगीर
उठाते हैं
बहुत थोड़ा
सा रोज
अँगुलियों
के बीच
मुट्ठी नहीं
बंधती है
सुराही के
अन्दर कभी
किसी भी
सदस्य की
चोरों के
मजबूत
परिवार की
सालों से
कर रहे हैं
कई हैं
हजारों
पन्द्रह
भर रहे हैं
गागर भरने
की खबर
पहुँचती नहीं
फुसफुसाती
हुई डर कर
मर जाती है
पीछे के
दरवाजे में
कहीं आफिस
में किसी
समाचार की
उबाऊ ‘उलूक’
फिर ले कर
बैठा है एक
पकाऊ खबर
मजबूर दिवस
की पूर्व संध्या
पर सोचता हुआ
मजबूरों के
आने वाले
निर्दलीय एक
त्यौहार की ।
चित्र साभार: Shutterstock
बुधवार, 12 अक्तूबर 2016
हत्यारे की जाति का डी एन ए निकाल कर लाने का एक चम्मच कटोरा आज तक कोई वैज्ञानिक क्यों नहीं ले कर आया
नाले में मिला
एक कंकाल
बेकार हो गया
एक छोटी
सी ही बस
खबर बन पाया
किस जाति
का था खुद
बता ही
नहीं पाया
खुद मरा
या मारा गया
निकल कर
अभी कुछ
भी नहीं आया
किस जाति
के हत्यारे
के हाथों
मुक्ति पाया
हादसा था
या किसी ने
कुछ करवाया
समझ में
समझदारों के
जरा भी नहीं
आ पाया
बड़ी खबर
हो सकती थी
जाति जैसी
एक जरूरी
चीज हाथ में
लग सकती थी
हो नहीं पाया
लाश की जाति
और
हत्यारे की जाति
कितनी जरूरी है
जो आदमी है
वो अभी तक
नहीं समझ पाया
विज्ञान और
वैज्ञानिकों को
कोई क्यों नहीं
इतनी सी बात
समझा पाया
डी एन ए
एक आदमी
का निकाल कर
उसने कितना
बड़ा और बेकार
का लफ़ड़ा
है फैलाया
जाति का
डी एन ए
निकाल कर
लाने वाला
वैज्ञानिक
अभी तक
किसी भी
जाति का
लफ़ड़े को
सुलझाने
के लिये
आगे निकल
कर नहीं आया
‘उलूक’
कर कुछ नया
नोबेल तो
नहीं मिलेगा
देश भक्त
देश प्रेमी
लोग दे देंगे
जरूर
कुछ ना कुछ
हाथ में तेरे
बाद में मत
कहना
किसी से
इतनी सी
छोटी सी
बात को भी
नहीं बताया
समझाया ।
चित्र साभार: Clipart Kid
बुधवार, 31 अगस्त 2016
मरे घर के मरे लोगों की खबर भी होती है मरी मरी पढ़कर मत बहकाकर
मुख्य पृष्ठ पर
दिख रही थी
घिरी हुई
राष्ट्रीय
खबरों से
सुन्दरी का
ताज पहने हुऐ
मेरे ही घर की
मेरी ही
एक खबर
हंस रही थी
बहुत ही
बेशरम होकर
जैसे मुझे
देख कर
पूरा जोर
लगा कर
खिलखिलाकर
कहीं पीछे के
पन्ने के कोने में
छुप रही थी
बलात्कार की
एक खबर
इसी खबर
को सामने
से देख कर
घबराकर
शरमाकर
घर के लोग सभी
घुसे हुऐ थे घर में
अपने अपने
कमरों के अन्दर
हमेशा की तरह
आदतन
इरादातन
कुंडी बाहर से
बंद करवाकर
चहल पहल
रोज की तरह
थी आँगन में
खिलखिलाते
हुऐ खिल रहे
थे घरेलू फूल
खेल रहे थे
खेलने वाले
कबड्डी
जैसे खेलते
आ रहे थे
कई जमाने से
चड्डी चड़ाये हुए
पायजामों के
ऊपर से
जोर लगाकर
हैयशा हैयशा
चिल्ला चिल्ला कर
खबर के
बलात्कार
की खबर
वो भी जिसे
अपने ही घर
के आदमियों
ने अपने
हिसाब से
किया गया
हो कवर
को भी कौन सा
लेना देना था
किसी से घर पर
‘उलूक’
खबर की भी
होती हैं लाशें
कुछ नहीं
बताती हैं
घर की घर में
ही छोड़ जाती हैं
मरी हुई खबर
को देखकर
इतना तो
समझ ही
लिया कर ।
चित्र साभार: worldartsme.com
शुक्रवार, 1 जुलाई 2016
होता है उलूक भी खबर लिये कई दिनों तक जब यूँ ही नदारत हो रहा होता है
सभी के
साथ होता है
कोई
गा देता है
कोई रो देता है
कोई
खुद के
खो गये होने के
आभास जैसा
मुँह बनाये लटकाये
शहर
की किसी
अंधेरी गली
की ओर
घूमने जाने
की बात करते हुए
चौराहे
की किसी
पतली गली
की ओर
हो रहा होता है
कोई
रख देता है
बोने के लिये बीज
सभी
चीजों के
नहीं
बनते हैं
जानते हुए
बूझते हुए
पेड़ पौंधे
जिनके
कुछ को
आनन्द आता है
जूझते हुए
हुए के साथ
होने
ना होने का
बही खाता बनाये
हर खबर
की कबर
खोदने वाला
भी भूल सकता है
खबरें
भी लाशें
हो जाती है
सड़ती हैं
फूलती हैं
गलती हैं
पड़ी पड़ी
अखबार
समाचार टी वी
रेडियो पत्रकार
निकल निकल
कर गुजर जाते हैं
उसके
अगल बगल से
कुछ
उत्साहित
उसे
उसी के
होंठों पर
बेशरमी
के साथ
सरे आम
भीड़ के
सामने सामने
चूमते हुए भी
अपनी
अपनी ढपली
पीटते सरोकारी लोग
झंडे
दर झंडे जलाते
पीटते
फटी आवाज
के साथ
फटी
किस्मत के
कुछ घरेलू बीमार
लोगों की
तीमारदारी
के रागों को
शहर भी
इन सब
सरोकारों के साथ
जहाँ लूला काना
अंधा हो चुका होता है
सरोकारी
‘उलूक’ भी
अपनी चोंच को
तीखा करता हुआ
एक
खबर को
बगल में दबाये हुए
एक
कबर को
खोदने में
कई दिनों से
लगा होता है
सब को
सब मालूम
सब को
सब पता होता है
मातम होना है
पर मातम होने
तक का इंतजार
किसी
को भी
नहीं होता है
ना खून होता है
ना आँसू होते हैं
ना ही
कोई होता है
जो जार जार
रोता है ।
चित्र साभार: www.123rf.com