उलूक टाइम्स: नयी
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शनिवार, 9 दिसंबर 2017

अचानक से सूरज रात को निकल लेता है फिर चाँद का सुबह सवेरे से आना जाना शुरु हो जाता है


जब भी
कभी
सैलाब आता है 

लिखना
भी 
चाहो
अगर कुछ

नहीं
लिखा जाता है 

लहरों
के ऊपर 
से
उठती हैं लहरें 
सूखी हुई सी कई

बस सोचना सारा
पानी पानी सा 
हो जाता है 

इसकी
बात से 
उठती है जरा 
सोच एक नयी 

उसकी याद 
आते ही सब  
पुराना पुराना 
सा हो जाता है 

अचानक
नींद से 
उठी दिखती है 

सालों से सोई 
हुई कहीं की
एक भीड़ 

फिर से
तमाशा 
कठपुतलियों का 

जल्दी
ही कहीं 
होने का आभास 
आना शुरू
हो जाता है 

जंक
लगता नहीं है 
धागों में
पुराने 
से पुराने
कभी भी 

उलझी हुई
गाँठों 
को सुलझाने में 
मजा लेने वालों का
मजा दिखाना 
शुरु हो जाता है  

पुरानी शराबें 
खुद ही चल देती हैं 
नयी बोतल के अन्दर 

कभी
इस तरह भी 
‘उलूक’ 

शराबों के
मजमें 
लगे हुऐ

जब कभी 
एक
लम्बा जमाना 
सा हो जाता है ।

चित्र साभार: recipevintage.blogspot.com

सोमवार, 18 जून 2012

नयी कबड्डी

पता ही नहीं
लग पा रहा है
मेरे घर में क्या
होने जा रहा है
हर महीने विपक्ष
से एक पक्ष में
आ कर मिल
जा रहा है
वोटर तेरे वोट
का ये सिलसिला
तेरे को दिया
जा रहा है
क्या तेरी समझ में
ये सब साफ साफ
आ रहा है
तेरा नेता तेरे को
कोई धोखा सीधे
सीधे दिये जा रहा है
सुना है तीन महीने
के अंदर विपक्ष भी
पक्ष के अंदर सेंध
लगाने के लिये
जा रहा है
बड़ा छेद करके
खुद सरकार अपनी
बनाने जा रहा है
वोटर तेरे को
सांप क्यों सूंघ
जा रहा है
तू कुछ क्यों नहीं
बोल पा रहा है
मेरी समझ में
तेरा इस
तरह शर्माना
बिल्कुल भी नहीं
आ पा रहा है
आइडियोलोजी के
कालर खडे़ करने
वालों को पसीना
क्यों आ रहा है
मुझे तो किसी पर
क्या कमेंट करूंं
कुछ कहना ही
नहीं आ रहा है
पर क्या
यह व्यवहार
वेश्यावृति से
सौ प्रतिशत मेल
नहीं खा रहा है।