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शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

उसके जैसा ही क्यों नहीं सोचता शायद बहुत कुछ बचता

हर आदमी
सोच नहीं रहा
अगर तेरी तरह
तो सोचता
क्यों नहीं
जरुर ही कहीं
खोट होगा
तेरी ही सोच में
सोचने की
कोशिश तो
करके देख
जरा सा
सुना है
कोशिश
करने से
भगवान
भी मिले हैं
किसी किसी
को तो
सोच मिलना
तो बहुत
ही छोटी
सी बात है
कभी कहीं
लिखा हुआ
देखा था
किसी ने
सुनाया था
या पढ़ाया था
याद नहीं है
 पर होता
होगा पक्का
क्योंकी हकीम
लुकमान की
सोचने की दवा
बनाने की विधि
में भी कुछ
ऐसा ही लिखा
हुआ साफ
नजर आता है
विश्वास नहीं होता है
तो थोड़ी देर के लिये
पुस्तकालय में जाकर
पढ़ देख कर क्यों
नहीं आ जाता है
बैठा रहता है
फालतू में
जब देखो कहीं भी
कभी भी किसी
बात पर भी
कुछ भी लिख
देने के लिये
कभी तो कुछ
सोच ही लिया कर
जैसा लोग सोचते हैं
देख तो जरा
किसी और की
तरह सोच कर
फिर पता
चलेगा तुझे भी
सोच और सोच
का फरक
क्या पता इसी
सोच की सोच
को अपना
कर कुछ
तू भी कुछ
सुधर जाये
तेरी सोच को कुछ
उनकी सोच
का जैसा ही
कुछ हो जाये
बहुत कुछ बचेगा
जब हर कोई
एक जैसा
ही सोचेगा
उसी सोच
को लेकर
हर कोई कुछ
कुछ करेगा
अच्छा नहीं
होगा क्या
एक के सोचने
के बाद किसी
और को कुछ
भी नहीं
सोचना पड़ेगा
क्योंकि लिख दिया
जायेगा कहीं पर
कि ये सोचा
जा चुका है
कृपया इस पर
सोचने की अब
कोशिश ना करें
कुछ और सोचने से
पहले भी पता करलें
और पूछ लें
कुछ सोचना
है कि नहीं ।

शनिवार, 21 सितंबर 2013

सजाये मौत पहले बहस मौत के बाद !


अलग अलग जगहें
अलग अलग आदमी
कई किताबों में
कई जगह लिखी
हुई कुछ इबारतें
समय के साथ
बदलते हुऐ उनके मायने
मरती हुई एक लड़की
कोख में सड़क में
ससुराल में घर में
कभी एक औरत
कभी अर्धांगिनी
कभी बेटी कभी बहन
कहीं दुपट्टे से लटकी हुई
कहीं कटी हुई टुकड़ों में
कहीं जलती हुई खेत में
कहीं बीच सड़क पर
टी वी के एक प्रोग्राम
के बहस का मुद्दा
एक लाश एक फोटो
एक अखबार के लिये
बस एक खबर
सड़क पर एक भीड़
हर मौत पर एक गुस्सा
पता नहीं किस पर
मौत भी ऐसी जो
दे दी जाती है
बिना किसी
सजा के सुनाये
समय के साथ
इबारत नहीं बदली
ना ही आदमी बदला
मौत की सजा जारी है
अपनी जगह बादस्तूर
दे दी जाती है
बहस भी होती है
हमेशा की तरह पर
सजाऐ मौत के बाद
आदमी के पास
कानून नहीं है
पता नहीं क्यों
नहीं है अभी तक
पता चलती है ये बात
अगर देखेने लगे कोई
कितनी लड़कियों को
मारा गया सजाये
मौत देने के बाद ।