उलूक टाइम्स: पूछ
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मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

कुछ भी लिख देना लिखना नहीं कहा जाता है


एक बात पूछूँ

पूछ
पर पूछने से पहले ये बता 
किस से पूछ रहा है पता है 

हाँ पता है 
किसी से नहीं पूछ रहा हूँ 

आदत है पूछने की 
बस यूँ ही
ऐसे ही 
कुछ भी कहीं भी पूछ रहा हूँ 

तुमको
कोई परेशानी है 
तो मत बताना 
बताना
जरूरी नहीं होता है 

कान में
बता रहा हूँ वैसे भी 
कोई 
 कुछ नहीं बताता है 
पूछने से ही
गुस्सा हो जाता है 
गुर्राता है 

कहना
शुरु हो जाता है 

अरे तू भी पूछने वालों में 
शामिल हो गया 
मुँह उठाता है 
और पूछने चला आता है 

ये नहीं कि 
वैसे ही हर कोई
पूछने में लगा हुआ होता है 

एक दो पूछने वालों के लिये 
कुछ जवाब सवाब ही कुछ
बना कर क्यों नहीं ले आता है 

हमेशा 
जो दिखे वही साफ साफ बताना 
अच्छा नहीं माना जाता है 

रोटी पका सब्जी देख दाल बना 
भर पेट खा

खाली पीली अपनी थाली 
अपने पेट से बाहर 
किसलिये फालतू में 
झाँकने चला आता है 

‘उलूक’ 
समाज में रहता है 

क्यों नहीं 
रोज ना भी सही कुछ देर के लिये 
सामाजिक क्यों नहीं हो जाता है 

पूछने गाछने के चक्कर में 
किसलिये प्रश्नों का रायता 
इधर उधर फैलाता है ।

चित्र साभार: serengetipest.com

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

उसके जैसा ही क्यों नहीं सोचता शायद बहुत कुछ बचता

हर आदमी
सोच नहीं रहा
अगर तेरी तरह
तो सोचता
क्यों नहीं
जरुर ही कहीं
खोट होगा
तेरी ही सोच में
सोचने की
कोशिश तो
करके देख
जरा सा
सुना है
कोशिश
करने से
भगवान
भी मिले हैं
किसी किसी
को तो
सोच मिलना
तो बहुत
ही छोटी
सी बात है
कभी कहीं
लिखा हुआ
देखा था
किसी ने
सुनाया था
या पढ़ाया था
याद नहीं है
 पर होता
होगा पक्का
क्योंकी हकीम
लुकमान की
सोचने की दवा
बनाने की विधि
में भी कुछ
ऐसा ही लिखा
हुआ साफ
नजर आता है
विश्वास नहीं होता है
तो थोड़ी देर के लिये
पुस्तकालय में जाकर
पढ़ देख कर क्यों
नहीं आ जाता है
बैठा रहता है
फालतू में
जब देखो कहीं भी
कभी भी किसी
बात पर भी
कुछ भी लिख
देने के लिये
कभी तो कुछ
सोच ही लिया कर
जैसा लोग सोचते हैं
देख तो जरा
किसी और की
तरह सोच कर
फिर पता
चलेगा तुझे भी
सोच और सोच
का फरक
क्या पता इसी
सोच की सोच
को अपना
कर कुछ
तू भी कुछ
सुधर जाये
तेरी सोच को कुछ
उनकी सोच
का जैसा ही
कुछ हो जाये
बहुत कुछ बचेगा
जब हर कोई
एक जैसा
ही सोचेगा
उसी सोच
को लेकर
हर कोई कुछ
कुछ करेगा
अच्छा नहीं
होगा क्या
एक के सोचने
के बाद किसी
और को कुछ
भी नहीं
सोचना पड़ेगा
क्योंकि लिख दिया
जायेगा कहीं पर
कि ये सोचा
जा चुका है
कृपया इस पर
सोचने की अब
कोशिश ना करें
कुछ और सोचने से
पहले भी पता करलें
और पूछ लें
कुछ सोचना
है कि नहीं ।

मंगलवार, 16 जुलाई 2013

पूछ रहा है पता जो खुद है लापता

बहुत दिनों से
कई कई बार
सुन रहा था
नया आया है
एक हथियार
कह रहे थे लोग
बहुत ही काम
की चीज है
कहा जा रहा था
उसको सूचना
का अधिकार
एक आदमी
अपना दिमाग
लगाता है और
एक हथियार
अच्छा बना
ले जाता है
दूसरा आदमी
उसी हथियार
को सही जगह
पर फिट करना
सीख जाता है
कमाल दिखाता है
धमाल दिखाता है
ऎल्फ्रेड नोबल का
डायनामाईट कब
का ये हो जाता है
जिसने बनाया
होता है उसे
भी ये पता
नहीं चल
पाता है
उसके घर का
एक लापता
दस रुपिये
के पोस्टल
आर्डर से
उसको ढूँढने
के लिये उसको
ही आवेदन
थमा जाता है
उस बेचारे को
समझ में ही
नहीं आ पाता है
किस से पूछे
कैसे जवाब
इसका बनाया
जाता है कि वो
रहता है आता है
और कहीं भी
नहीं जाता है
तीस दिन तक
बस ये ही काम
बस हो पाता है
जवाब देने की
सीमा समाप्त
भी हो जाती है
जवाब भी तैयार
किसी तरह
कर लिया जाता है
किसी को भी
ये खबर नहीं
होती है कि
लापता इस
बीच फिर
लापता हो
जाता है
सूचना उसकी
कोई भी नहीं
दे पाता है ।