हम जब
शरीर
नहीं होते हैं
बस मन
और
शब्द होते हैं
तब लगता है
शायद ज्यादा
सुन्दर और
शरीफ होते हैं
आमने सामने
होते हैं
जल्दी समझ
में आते हैं
सायबर की
दुनियाँ में
कितने
कितने भ्रम
हम फैलाते हैं
पर अपनी
आदत से हम
क्योंकी बाज
नहीं आते हैं
इसलिये अपने
पैतरों में
अपने आप ही
फंस जाते हैं
इशारों इशारो
में रामायण
गीता कुरान
बाइबिल
लोगों को
ला ला कर
दिखाते हैं
मुँह खोलने
की गलती
जिस दिन
कर जाते हैं
अपने
डी एन ऎ का
फिंगरप्रिंट
पब्लिक में
ला कर
बिखरा जाते हैं
भ्रम के टूटते
ही हम वो सब
समझ जाते हैं
जिसको समझने
के लिये रोज रोज
हम यहाँ आते हैं
ऎसा भी ही
नहीं है सब कुछ
भले लोग कुछ
बबूल के पेड़ भी
अपने लिये लगाते हैं
दूसरों को आम
की ढेरियों पर
लाकर लेकिन
सुलाते हैं
सौ बातों की
एक बात अंत में
समझ जाते हैं
आखिर हम
हैं तो वो ही
जो हम वहाँ हैं
वहाँ होंगे
कोई कैसे
कब तक बनेगा
बेवकूफ हमसे
यहाँ पर अगर
हम अपनी बातों
पर टाई
एक लगाते हैं
पर संस्कारों
की पैंट
पहनाना ही
भूल जाते हैं ।
शरीर
नहीं होते हैं
बस मन
और
शब्द होते हैं
तब लगता है
शायद ज्यादा
सुन्दर और
शरीफ होते हैं
आमने सामने
होते हैं
जल्दी समझ
में आते हैं
सायबर की
दुनियाँ में
कितने
कितने भ्रम
हम फैलाते हैं
पर अपनी
आदत से हम
क्योंकी बाज
नहीं आते हैं
इसलिये अपने
पैतरों में
अपने आप ही
फंस जाते हैं
इशारों इशारो
में रामायण
गीता कुरान
बाइबिल
लोगों को
ला ला कर
दिखाते हैं
मुँह खोलने
की गलती
जिस दिन
कर जाते हैं
अपने
डी एन ऎ का
फिंगरप्रिंट
पब्लिक में
ला कर
बिखरा जाते हैं
भ्रम के टूटते
ही हम वो सब
समझ जाते हैं
जिसको समझने
के लिये रोज रोज
हम यहाँ आते हैं
ऎसा भी ही
नहीं है सब कुछ
भले लोग कुछ
बबूल के पेड़ भी
अपने लिये लगाते हैं
दूसरों को आम
की ढेरियों पर
लाकर लेकिन
सुलाते हैं
सौ बातों की
एक बात अंत में
समझ जाते हैं
आखिर हम
हैं तो वो ही
जो हम वहाँ हैं
वहाँ होंगे
कोई कैसे
कब तक बनेगा
बेवकूफ हमसे
यहाँ पर अगर
हम अपनी बातों
पर टाई
एक लगाते हैं
पर संस्कारों
की पैंट
पहनाना ही
भूल जाते हैं ।
उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए धन्यवाद!
भरी शरारत है विकट, नटखट बंड सरीर ।
जवाब देंहटाएंशब्द बुद्धि से हीन गर, मुर्दा समझ शरीर।
मुर्दा समझ शरीर, समझदारी बस इतनी ।
ज्यों माथे की मौत, देर में दिल से जितनी ।
सत्यम शिवम् विचार, नाम से न आते हैं ।
सुन्दरता क्या ख़ाक, व्यर्थ पगला जाते हैं ।।
बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग्य विनोद और छीज़न आत्मा का इस रचना में है .
जवाब देंहटाएंखरगोश का संगीत राग रागेश्री
जवाब देंहटाएंपर आधारित है जो कि खमाज थाट
का सांध्यकालीन राग है,
स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं,
पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में
पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे
इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
..
हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत
कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि
चहचाहट से मिलती है.
..
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