लालिमा सुबह की
चमकती सफेद चाँदी के रंग में
या फिर
या फिर
स्वर्ण की चमक से ढले हुऐ हिमालय
कवि सुमित्रानंदन की तरह सोच भी बने
क्या जाता है सोच लेने में
वरना दुनियाँ ने कौन सी सहनी है
हँसी मुस्कुराहट
किसी के चेहरे की बहुत देर तक
किसी के चेहरे की बहुत देर तक
कहते हैं
समय खुद को ही बदल चुका है
और बढ़ी है भूख भी बहुत
पर
लगता कहाँ है
सारे के सारे
गली मुहल्ले से लेकर
शहर की पौश कौलोनी के
शहर की पौश कौलोनी के
उम्दा ब्रीड के कुत्तों के मुँह से टपकती लार
उनके भरे हुऐ पेटों के आकार से भी प्रभावित कभी नहीं होती
सभी को नोचते चलना है माँस
सूखा हो या खून से सना
पुराना हो सड़ गया हो या ताजा भुना हुआ
बस खुश नहीं दिखना है कोई चेहरा
मुस्कुराता हुआ बहुत देर तक
क्योंकि
जो सिखाया पढ़ाया जा रहा है
वो सब
किताब कापियों तक सिमट कर रह गया
किताब कापियों तक सिमट कर रह गया
और
नहीं तैयार हुई कुछ ममियाँ
नहीं तैयार हुई कुछ ममियाँ
नुची हुई
मुस्कुराहटों के चेहरों के साथ
मुस्कुराहटों के चेहरों के साथ
समय और इतिहास
माफ नहीं करेगा इन सभी भूखों को
जो तैयार हैं
नोचने के लिये कुछ भी कहीं भी
अपनी बारी के इंतजार में
सामने रखे हुऐ कुछ सपनों की लाशों को
दुल्हन बना कर सजाये हुऐ।
चित्र साभार: https://www.istockphoto.com/
चित्र साभार: https://www.istockphoto.com/
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति- -
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय -
बहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (25-02-2014) को "मुझे जाने दो" (चर्चा मंच-1534) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कहाँ प्रकृति
जवाब देंहटाएंकहाँ प्रकृति कवि
तख्ती पलटने की होड़ में
प्रथम रश्मि के आने की आहट
नहीं होती रंगिणी को …
रंगिणी भी है कहाँ
जो कूक उठे
यहाँ तो खून की नदियाँ हैं
सहमे डरे से चेहरे
सुबह मिलेगी या नहीं जैसे प्रश्न
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 30 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
समय और इतिहास
जवाब देंहटाएंमाफ नहीं करेगा इन सभी भूखों को
जो तैयार हैं
नोचने के लिये कुछ भी कहीं भी
अपनी बारी के इंतजार में
सामने रखे हुऐ कुछ सपनों की लाशों को
दुल्हन बना कर सजाये हुऐ।
.. ऐसा ही हो। . सबका हिसाब होता है एक न दिन दिन
बहुत अच्छी चिंतनशील प्रस्तुति
हमेशा की तरह लाजवाब सृजन ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर , सादर चरण- स्पर्श । बहुत ही सशक्त और आत्मा को झकझोर देने वाली रचना । मानव के गिरते हुए मूल्यों और आज के युग में संवेदनहीन आचरण को बहुत ही सशक्तता से दिखाया है । आज मनुष्य अपने आस -पास किसी और मनुष्य की सुख - समृद्धि को सहन नहीं कर पाता और दूसरों के अधिकार और सुख-चैन हड़पने में लगा रहता है। सब कुछ नोच लेने वाले कुत्ते उन क्रूर मनुष्यों का प्रतीक हैं जो अपने स्वार्थ, प्रतिशोध, ईर्ष्या या मद में चूर हो कर राक्षस बन बैठे हैं । पुनः प्रणाम आपको एवं हार्दिक आभार । एक अनुरोध और , मैं ने एक नया ब्लॉग आरंभ किया है , चल मेरी डायरी । यह ब्लॉग मेरी कृतज्ञता डायरी का हिस्सा है । मेरा अनुरोध है कृपया आयें और अपना आशीष दें ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां सृजन
जवाब देंहटाएंहिमालय देखते देखते गंदे नाले की तरफ भटकनेवाली सोच की पौध ही तैयार हो रही है, अब यही सोच मिलेगी सब जगह....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
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